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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, January 4, 2018

पूस माने ढांगू मा गिंदी म्याळा तयारी

सौज सौज मा समळौण   :::   भीष्म कुकरेती   
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हमर गाँव ऋषिकेश -गूमखाळ -कोटद्वार सड़क पर ऋषिकेश से 60 किलोमीटर अर कोटद्वार से 65 -67 किलोमीटर पर च।  अच्काल पूसौ मैना च त पुरण जमन मा कुमुहर्तौ  मैना हूण से व खेती काम काज नि हूण से कुछ इन काम नि हूंद छौ जखमा मर्द मनिखों जरवत ह्वा।  गंगासलाण मा तब पूसौ सेक क दिन हिंगोड़  (हॉकी जन ) अर मकरैणी  दिन हथगिंदी (रग्बी जन ) खिलणो रिवाज छौ।  डाडामंडी  ; दिख्यत ; थलनदी , कटघर हथगिंदि का बड़ा केंद्र छा अर इख मकरैणी दिन म्याळा बि लगद छौ जख बिगरैली बांद गोबिंदा चरखी मा बैठदि छे। अर हौर लोक 'चरखी मा नि बैठ गोबिंदा  ' गीत लगांद छा।  
    हां  त मि छौ छ्वीं लगाणु बल पूस माने ये मैना जनमजाति मर्द कौम मुख्य काम से दूर हूणों बहाना खुज्यांदी छै।  पूसम हमर जिना हिंगोड़ अर हथगिंदी प्रैक्टिसौ मैना हूंद थौ। अब पूस क्रिकेट प्रैक्टिसौ मैना ह्वे गे।  हॉकी मा ओलम्पिक मा पिछड़ण से हमर गंगासलाणम बि क्रिकेटन हिंगोड़ की विकेट उखाड़ दे।  अब हिंगोड़ अर हथगिंदी इतिहासुं किताब , लोककथाओं अर फेसबुक मा हि मिल्दी।  
  हिंगोड़ खिलणो स्टिक जरूरी हूंद अर प्राकृतिक रूप से हॉकी स्टिक केवल बांस से ही मिल सकद।  हमर गां बांसौ मामला मा इनि कमजोर च  जन नेता ईमानदारी मामला मा निहंग छन ।  तीन मुंडितुं बांस छौ किन्तु इथगा अधिक नि छा कि बच्चों तै हिंगोड़ निर्माण की इजाजत मिल जावो।  द्वी चार बांस की हिंगोड़ छे गां मा किन्तु यी हिंगोड़ केवल सेकौ दिन ही गांवक हुणत्याळ ध्यानचंदुं तै दिए जांद छौ। 
     आवश्यकता आविष्कार की जननी या नेसेसिटी इज द मदर ऑफ इन्वेंसन से अधिक गरीबी आविष्कार की जननी हूंद।  त बांसौ मामला मा गरीब गाँव का बच्चा हिंगोड़ निर्माण मा इन्नोवेटिव तरीका अपण्यांद था।    
     तब कखि बि हॉकी स्टिक बजारम नि मिल्दी छे।  हरेक अपण बच्चा तैं ध्यानचंद बणानो आतुर छौ किन्तु क्वी बि हॉकी स्टिक पर इन्वेस्टमेंट करणो तयार नि छौ इक तक कि खेल मंत्रालय बि।  त हॉकी स्टिक स्व निर्मित ही हूंदी छे।  मंगसिर माने हिंगोड़ (हॉकी स्टिक ) खुज्याणो मैना।  चार दर्जा से लेकि दस दर्जा का युवा मंगसिरम महान खोजी बण जांद छौ।  ये मैना बालक -युवा जंगळ का हरेक तूंग , गींठी , बांज , इक तलक कि बसिंगौ बुट्या सर्वेक्षण करदा मिलदा छा।  फिर बड़ी मुश्किलात से टेड़ी बांगी हिंगोड़ मिल ही जांदी छे।  
 गिंदी त झुल्ला की बणदी छे त दादा का जमानों का झुल्लाओं बळी दिए जांद छे।  गिंदी बणाण  सौंग छे तो पांच छै गिंदी गां मा ह्वै इ जांद छा। 
    पूसम हम कबि बि कखिम बि हिंगोड़ अर फिर वीं इ गिंदीन हथगिंदी बि खिल्दा छा। चौक से लेकि खाली पड़्यां खेत हमर ओलम्पिक ग्राउंड  हूंद था। नियम हम तब बि नि जाणदा छा ना ही आज बि हम संवैधानिक नियम जणदा तो बस हम खिल्दा छा बस खिल्दा ही छा। 
      बड़ा बड़ा बैक जौन सेकक दिन सौड़ हिंगोड़ अर हथगिंदी खिलण छे और मकरैणी दिन कटघरम हथगिंदी खिलण छौ वो सेक से केवल चार या पांच दिन पैल ही प्रैक्टिस मा आंद छा।  
    तब हमर हरेक त्यौहार , हरेक गीत अर हरेक खेल सीजन का हिसाब से हूंद छा अब त हर शहर अर गां मा हर सीजन मा केवल क्रिक्यटाण ही फैली रौंद।  

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