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देवस्थल तो रचनाधर्मिता कत्ल करने के 'खबेश' हैं
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चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
चबोड़ , चखन्यौ , ककड़ाट ::: भीष्म कुकरेती
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ब्याळि लोकसभा मा 'तीन तलाक ' बिल पास ह्वे गे। बिलन पास नि हूण छौ पर कॉंग्रेस अर यार पार्टी अचकाल हिंदुऊं तै बि सेकुलर समजण मिसे गे त कॉंग्रेस अर यींक यारी पार्ट्युं न मुसलमानुं तैं तिरैक बिल पास हूण दे। पर ओवैसी साब कुछ बुलणा छा अर हरेक 'देशभक्त' नेता जनाब ओवैसी क स्टेटमेंट तैं बकबास बुलणु छौ। जब कि ओवैसी की बातुं म स्वार्थ हो किन्तु तर्क बि छौ। तीन तलाक बंद करण त ठीक च पर तलाक लीणो तरीका अर तलाकौ ऐथर पैथर पर बि त क़ानून स्पष्ट हूण चयेंद निथर GST तरां रात मा बार बार घसीटा राम की दूकान खुलण पोड़ल 'देशभक्तों ' तैं।
बकबास , कुतर्क मा बि तर्क हूंद।
हमर गाँव एक मूळी माई आंदि छै अर सुबेराक चाय पीणो हमर ड्यार आंदि छे। चाय पेकि माई बुल्दी छे , "चा त झंग्वर जोग बणी च "
उन त बात बेतुकी लगद , तर्कहीन दिखेंद किन्तु यदि झंग्वर चाय मा खाये बि जावो त भंगुल त नि जाम जाल ? अरे प्रयोग करणम हमर क्या जाणु च भै। ज्वा बात हमर संस्कृति या धारणा विरुद्ध हूंद हम वीं बात तैं बकबास , निरर्थक , उटपटांग नाम देकि रचनाधर्मिता तैं रुकणो पुठ्या जोर लगांदा। बकबास पर ऐक्सिपरिमेंट की जगा हम क्रिएटिविटी का ही कत्ल कर दींदा। आम मनिख क्रिएटिविटी कु कतल करण मा इ तर्क समजद।
अब झंग्वर पर बात आयी त मुंबई की छ्वीं लगै दींदु। मेरी मा सन 71 मा मुंबई ऐ गे छै। अर मां क वजै से आज बि मेरी घरवळि , मेरी द्वी ब्वारी झंग्वर पकांदी छन। मैना मा एक दिन त झंग्वर पकद इ च। अर मीन कत्ति दैं अपण घरवळी कुण ब्वाल (रिक्वेस्ट ) बल एक दिन झंग्वरै बिरयानी या पुलाव बणै दे, निथर खिचड़ी ही पकै दे । जब बि मि झंग्वरै पुलाव या बिरयानी पकाणो रिक्वेस्ट कौरु ना कि मेरी माँ , म्यार बच्चा इ ना आस पड़ोसी बि घरवळि तरफ ह्वे जांद छा अर मि तैं तून दींद छा बल अरे लाटो -कालों छ्वीं मुंबई मा बर्जित च। दुसर ढंग से सुचण समाज मा अमूनन बुरु माने जांद। जब ब्वारी ऐ गेन त झंग्वर पकण बंद त नि ह्वे किन्तु अब उथगा दैं नि पकद पर झंग्वर हमर डाइट का एक अंग छैं इ च। जब मीन ब्वार्युं से झंग्वर बिरयानी या पुलाव पकाणौ दरख्वास्त कार तो उंकी भाव भंगिमा से मि समज ग्यों बल उ मि तैं दुनिया का मूर्खों का सम्राट समजणा छन। क्वी बि अपण धारणा नि तुड़ण चाँद अर जु ऊंकी धारणा तुड़ण चांद वै तैं मूर्ख , पागल या बकबास करंदेर करार दिए जांद।
मंदिर , मस्जिद , गिरिजाघर या गुरुद्वारा तो रचनाधर्मिता रुकणो सबसे बड़ा खबेश छन , रागस छन। जी हाँ देवस्थल रचनाधर्मिता निजन्मणो बान ही बणाए जांदन। देवस्थलों काम ही एक च कै बि तरां से रचनाधर्मिता यीं पृथ्वी मा नि जनम। मनुष्य की रचनाधर्मिता तबि विकसित हूंद जब हम कै चीज तैं ऐथर इ ना पैथर बिटेन बि देखां। रचनाधर्मिता मा गलत दिशा से दुनिया दिखण आवश्यक हूंद। किन्तु जरा देवस्थलों पर नजर तो मारो अधिसंख्य देवस्थल मा एकी दरवज हूंद जु समिण हूंद। देवस्थलों मा तीन तरफ से द्वार /आवाजावी का रस्ता बंद रौंदन। अर देवस्थलों मा तीन तरफ से रस्ता बंद करणो ख़ास कारण हूंद कि भक्तों या अवालंबियूं की सुचणा सकती खतम करे जावो। धर्मावलम्बी चौतरफान दुनिया दिखणो नि स्वाच यो ही मकसद हूंद मंदिर , मस्जिदों , गिरिजाघरों या देवस्थलों का। इख तलक कि निरंकार समर्थकों देवस्थल बि तीन तरफ से बंद हूंदन। पैथर बिटेन दिखण मतलब दूरबीन से उल्टा तरफ से दुनिया दिखण किन्तु समाज , देवस्थल , अर अन्य इनि माध्यम नि चांदन कि मनुष्य अलग तरह से संसार द्याख तो मनुष्य की सोच शक्ति पर तरह तरह का पहरा लगाए जांदन।
क्या आप बि अपण बच्चों की रचनाधर्मिता तैं उटपटांग , निरर्थक , बकबास नाम तो नि दीणा छा ? क्या आप बि झंग्वरौ बिरयानी पकाणम रोड़ा अटकाणा छंवां ? क्या आप बि रचनाधर्मिता रुकणो बान तीन तरफ से दीवाल धरणा छा ?
29/12 / 2017, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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----- आप छन सम्पन गढ़वाली -----
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