त कैल अज्जी तलक द्याखी नि च
कैक्का जोग -भाग़ मा लेख्यीं ही नि छाई
ता कैल अज्जी तलक चाखी ही नि च
जौंकी राई टिकईं टोप दिंण रात
उन्थेय मिली त च पर
वू भी रैं बस अट्गा -अटग मा
उन्दू जाणा की
बिसुध बणया
घार-गौं बौडिक आणा की
सुध उन्थेय फिर कब्भी आई नि च ?
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
(म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से , http://geeteshnegi.blogspot.
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