द,
लुंगी ब्वारी ले नखरा
पुटुग पर बांदी छ क्वे कपड़ा
बुलद
मिथाई पीड उठीगे,
पौड़ी लिकरा ............. !
उफू ...
पोडिगे उबरा
देलिम दे दे धुई
भैर गाडी देनी
गोर बाछुरु डिबरा !
बीकुत कुछ नि ह्वया
अर न हुणु .....
पर सुणम आय कि
भैर भीटर गडद
गोडी गे तुई ...
बियेगी द्वी चार डिबरा ...
द लूगी ब्वारी ले नखरा !
parashar gaur
पहाड़ पर इतना समावेश...पराशर जी ने जो व्यक्त किया है...वास्तव में...श्रेष्ठ है...इसके लिए बधाई..जगमोहन आज़ाद
ReplyDelete(1)
ReplyDeleteअनाथ बच्चों के लिए
----------------
आवश्यक तो नहीं कि
मेरी-तुम्हारी मां भी एक होती
नालबद्ध होते हम
जुड़वा भाइयों की तरह...
आवश्यक तो नहीं कि...
हमने एक साथ
घुट्टी नहीं पी
इतना कम तो नहीं की...
जब-जब तुम्हारे एकांत में-
खड़ा था मैं-
तुम भी मेरे एकांत में खडे थे।
सुनो भाई...
जितने बहे तुम्हारे आंसू
जितनी-जितनी रातों में तुमने
ढूंढा मां को...
उतनी-उतनी बार
रोया मैं भी
और...रोये मेरे गर्भ में
असंख्य शिशु-
मगर...अब हम आंसुओं को दें देगें...
बादलों को-
ताकि! बरस वह सकें
बंजर धरती पर...।
(2)
उस पार
-----
इस पार
बस रहा है
सेटेलाइट शहर
तेजी के साथ
जिसमें-
रिश्ते-नाते-संस्कार
भाषा-बोली-गीत-संगीत
रीति-रिवाज
और भी बहुत कुछ
बदल रहा है
तेजी के साथ...।
और
उस पार
नदी के किनारे
पहाड़ की तलहटी में-
बसे गांव-घर
खेत-खलिहान
पेड़-पौधे-बूढ़ी नम् आंखें
हो रहे हैं तब्दील खंडहर में
तेजी के साथ...।
parasar g is graet kavi hamari shub kamnayen unki sath hai
ReplyDelete