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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, January 13, 2010

मेरा गाँव

समुद तट
बनती बिगदती लहरें
कूदती फन्दाती मछलियाँ
दूर एक नांव
कंही नजर नहीं आता
मेरा गाँव......

वही गाँव
जिसके खेतों से
चुराते थे
मटर-मसूर
ठन्क्रों से कख्डीयाँ
पेड़ों से
चकोतरे..... अखरोट..
आदू.....आलूबुखारे..
लाल-लाल नारंगियाँ
दादी......काकी की
मोटी-मोटी गलियां
कभी-कभी खाते मार भी...

बर्शाती कुयेड
रिमझिम बारिश
बन्जरौ में गाय बाछी चुगाना
एक बहाना
क्योंकि इन दिनों
नहीं खेल सकते
कब्बडी... गुली डंडा...
खेल लुका छुपी
न जा सकते गदन
मारने दुबकी
पकड़ने गडयाल
जिन्हें अब
बड़ी मछलियाँ
निगल गयी.

मकान-दूकान
खेत... खलियान
पेड़..पौधे..
धारा.... पंदेरा..
मंदिर..श्मशान
के ऊपर अब
प्रय्तकों से भरी
नावें तैरेंगी....

सुनसान तट पर
जगमगानेगे
आलीशान होटल
थडिया-छोफ्ला
झ्हुमैलो की पैरौदी पर
थिरकेंगी बालाएं....

चारों तरफ रौनक ही रौनक
मिल भी सकती है नौकरी
चला भी सकता हूँ नाव
क्या हुआ अगर
नहीं आता नजर
मेरा गाँव...........

*******विजय कुमार "मधुर"

6 comments:

  1. Gaon ki baat hi nirali hoti hai. lekin afsos hota hai ki aaj wah bhaichara or apnapan simatta ja raha hai, jiske liye hum jane jaate the. Sundar chitramayee prastuti ke liye dhanyavaad.

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  2. gaon ki baat hi nirali hai wo bhi pahadi gaon ki. chaaro aur haryali aur apnapan. thanx for this site

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  3. jo sapna tha kabi wahi hakikat chai parantu jise trha se insan badal raha hai use to lag raha hai ki pahar bhi sapana hai bhut acha laga

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  4. jub sahar jaek log apur boli ni baulda, apur yakha k logo dagad ni ghulda milda thi kel yaad karan apur gavn aaj kal ka nauni nauna tha apur bhasa bhi ni aand tha kya haul humr sanskriti dagad.... kavita badiya laag... buchpana ka din yaad aaege ni..... dhanyawad.

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments