बुल्दन बल कि, कै भी , घर, दफ्तर या सरकार थै चलाण का वास्ता एक समझदार ( याने बड़ो ) आदिमे की जरुरत हुन्द ! अर , उ आदिम अपणा कामो से जणे जांद, पछ्याणे जांद ! वेकु अहोदा , वेकु रूतबा सब वे कुर्सी पर निर्भर करद, जेमा उ बैठ्यु रैनद ! कुर्शी अर काम, द्वी वे आदिम थै क्या नि कराइ दिदिनी , इ त, बादम पत् चलद जब वो वी से उत्तर जाद !
हमरा गौ कु पधान , भजरामल जब तक चुनो नि लड़ी छो, वे थै कवी घास ही गिर्दु छो ! जनि वो चुनो लड़ी अर प्रधान बणी ! सबी वेकी जय जैकार करण बैठा ! अबत रोजा कुकड़ी अर बोतल , कभी तिबरिम , त कभी चौक्म , नचण बैठी ! चाटुकारू कु त पुछे ऩा ! अगर वो ( प्रधानजी ) बोल ..., कि , दिनम रात च , त वो बुलिनी ... " हां .. जी .. हां रात ही च ! अर बाजा बाजा त औरी भी वे थै काचा झयडोम धरी बुल्दा छा "
अजी पधान्जी ...... रात ही नी, बल्कि वो....... अफार , गैणा भी छंन चमकाणा " ! अपणा बीरानो कि पो बाहर ! ये दौरान पधान जी थै , उनका ग्राम उठाना का कार्य क्रममा , न जणी कथगा इनाम मैडल यख तक कि उन को नौ पध्म श्ररी तक चली गे छो ! बी डि यो जिला अधिकारी , बिधायक छेत्रिय, प्रांतीय याख्तक सेंटेरल सर्कार्ल उमठी कै अवार्द्ल नवाजी ! पर जनी पधान जी का द्वी साल पूरा हुवेनी , अर, वो उत्तरा
अपणी कुर्शी से ! कुर्शी गे अब पधान्न जी आया कुर्शी का मूड !
ह्या भै... , जब तक वो पधान छो , कैल भी गिचू नि उभारी ! वो , जू , वेका हर कामम दगडा रैनी ! चाहे , रोड कु ठयेका ह्वेनी ! या , डिगी बाणाणे बात रै हो , ! या बाटोमा खडिनचा बिछाण कि बात रै हो ! या फिर, बिलोक बीटी लोंन दीलाणे कि बात हो ,! बुनो मतलब यो च कि, जब तक भजराम पधान छो ! वेंल अपणा पद कु सदपिओग या दूरपिओग खूब कै ! जू भी बुरु काम कै ! वो सब वैक पूठ मूड !
साब..., जनी पधमचारी गे ! लुखुका गिचा उभना शुरू हवे ! कैल बोली कुछ त , कैल बोली कुछ ! कैल कुछ लाछन लगैनी त , कैल माँ बैनी गाली देनी ! सबसे चोंकावाली बात त , मुरखवाली कि बात से ह्वै ! जैन भारी पंचैत माँ , पधान जी पर चरित्र हनन कि बात कै .. " .. रुद रुद, व बोली , ये पधान्ला, ... अब क्या बोलू .. बिलोको कर्जा माफ़ काना वास्ता मी थै अपणा घोर बुलाई अर .......... ये सुणी सब सन ... ! गौम त
जन , व भुच्यालू एगे छो भुच्य्लू ... ! हमारा इलाका क , गौ गौ , पट्टी पट्टी म एक ही छुई. एक ही बात ..अर अखबारों माँ रोज , वेका बारम्म आये दिन एक नयी खबर ! अखबार फुन्डू फुका , जतका गिचा उत्की बात ! अर जैल जनी मिसी की लगै ! भजराम जी थै जनता माँ मुख दिखाणु मुश्किल ह्वैगी ! बात पटवारी, कानून गु से हुन्द हुन्द सरकार तक भी पहुंची ! सब्युन एक स्वर म बोली " जतका अवार्ड्स ,तक्मा छन ,
सब वापस लिए जावा ! " बिचारा क्या कैरू .. बड़ा कामू नतीजा बड़ो ही हुन्द ! अबतक त भीतरी भीतर च ! अब द्याखा , कख वे का उ काम वे थै कख लिजन्दीन !
पराशर गौर
बेटियां
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वो बोते हैं बेटे
पैदा होती है...बेटियां
वो मांगते हैं मन्नते
मंदिर-मस्ज़िद-चर्च-गुरूद्वारों में-
बेटों के लिए-
फिर भी पैदा होती है बेटियां...
वो...संजोते हैं सपने बेटों के
इसके बाद भी पैदा
हो ही जाती हैं बेटियां,
वो...जवान होते देखते हैं-
बेटों को-
लेकिन जवान होती बेटियों में
दिखती हैं मुसीबतें उनको...
वो...जवान होते बेटो में
देखते हैं कल के सपने...
मगर उनका कल संवारती है...बेटियां
वो...फिर भी समेटते हैं...बेटों को
बेटे जवान होकर
ठोकर मार गिराते हैं उन्हें-
तब उनका सहारा बनती हैं...बेटियां
जवान होकर जलायी-छोड़ी जाती है...बेटियां
इसके बाद भी
संवारती हैं,संभालती है-
बुढ़ापे का सहारा बनती है बेटियां
फिर भी वो...
बोते हैं...हर रोज...बेटे...।
- जगमोहन 'आज़ाद'
महानगरों में पहाड़
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महानगरों की भीड़ में
धक्का-मुक्की के बीच
दौड़ता-भागता...पहाड़,
सोचता हैं...चिंता भी करता है
पहाड़ों की,
बातें भी करता है-
इनके हालात के बारे में-
विकास के बारे में
सम्मान के बारे में
रीति-रिवाज-संस्कारों के बारे में,
झुकी कमर...
बूढ़ी नम आंखों के बारे में
और
दफ्तर पहुंचकर
खो जाता है फाइलों में
घर वापसी पर
सब्जी-मण्डी की तरकारियों में
और...उम्र यों ही-
जाती हैं गुज़र...पहाड़ों की
महानगरों में...।
- जगमोहन 'आज़ाद'
Jagmohon ji dono kavitayen bahut achhi lagi. Na jane hamara samaj kab betiyon ki keemat samjhega..... Likhate rahiyega. Kabhi na kabhi to ahsas hoga.
ReplyDeleteShubhkanayen.