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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, January 10, 2010

अनाथ बच्चों के लिए

आवश्यक तो नहीं कि
मेरी-तुम्हारी मां भी एक होती
नालबद्ध होते हम
जुड़वा भाइयों की तरह...
आवश्यक तो नहीं कि...
हमने एक साथ
घुट्टी नहीं पी
इतना कम तो नहीं की...
जब-जब तुम्हारे एकांत में-
खड़ा था मैं-
तुम भी मेरे एकांत में खडे थे।
सुनो भाई...
जितने बहे तुम्हारे आंसू
जितनी-जितनी रातों में तुमने
ढूंढा मां को...
उतनी-उतनी बार
रोया मैं भी
और...रोये मेरे गर्भ में
असंख्य शिशु-
मगर...अब हम आंसुओं को दें देगें...
बादलों को-
ताकि! बरस वह सकें
बंजर धरती पर...।

जगमोहन "आज़ाद"

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