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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, January 7, 2010

डिसकबरी !

रूप
और
धूप
कभी भी
ठल सालती है !

देखने वालो की
सोच
और आँख
कभी भी बदल सकती है !

लेकिन ,

रूप और धुप
एक बार ढली तो ..
ढली ...............
लाख जतन करने पर भी
वो , वापस नहीं आयेगी
आकाश ने खोई
डिसकबरी की तरह !

पराशर गौर
jan. 7 2010 raat 8.11 pr

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