फुटपाथ पर बैठे एक पंडित जी ने,
देखा एक उत्तराखंडी का हाथ,
भटक रहे हो देवभूमि से दूर,
नहीं है सुन्दर बात.
सच बताऊँ तो तुम पर,
भगवान शनि का है प्रकोप,
कुल देवताओं का भी है,
तुम्हारे ऊपर कुछ कोप.
वो उत्तराखंडी झट्ट से,
पंडित जी से प्यार से बोला,
बेरोजगार हूँ क्या करुँ,
भेद अपना खोला.
तब पंडित जी बोले,
जिस दिन तुम इस शहर को आये,
प्रकोप हुआ शनिदेव का उस दिन से,
किस प्रकार तुम्हें समझाये.
और कहा तुम जल्दी से,
अपने उत्तराखण्ड लौट जाओ,
नरेगा आपके गाँव पहुँच गई है,
रोजगार वहां पर पाओ.
दूर के ढोल होते सुहानें,
अपने गाँव को जाओ,
जो कुछ चाहिए आपको,
सब कुछ वहां पर पाओ.
उस उत्तराखंडी के मन को,
पंडित जी का कहना भाया,
सोचा परिवार के साथ रहूँगा,
जन्मभूमि लौटने का मन बनाया.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
13.7.2009

No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments