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south Asian Poetries
वीणा पाणी जोशी की कविताओं में बिम्ब विधान
Critical and Chronological History of
Modern Garhwali (Asian) Poetry –-68
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विश्लेषण – भीष्म कुकरेती
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आधुनिक गढवाली कविताओं के समालोचक ,
समीक्षक और प्रसन्नता की बात है कि अन्वेषक अब विषय ,
रस ,
सामन्य कवित्व विश्लेष्ण के अतिरिक्त कवि की गढवाली कविताओं में बिम्ब विधान पर ध्यान देने लगे हैं .
अबोध बन्धु बहुगुणा ,
कन्हैया लाल डण्डरियाल, नेत्र सिंह असवाल की आधुनिक शिल्पयुक्त कविताओं में नये शिल्प ,
विषय व कवित्व को नई दिशा आने से समीक्षकों में भी नई परख नीति आई तथापि डा शिवानन्द नौटियाल द्वारा गढवाली लोकगीतों को बिम्बों की दृष्टि से अवलोकन करने के पश्चात समीक्षकोंमें आधुनिक गढवाली कविताओं में प्रतीक –बिम्ब को गंभीरता पूर्वक टटोलने की प्रवृति भी देखि गयी है . प्रसिद्ध काव्य समीक्षक , विश्लेषक व इतिहासकार डा. जगदम्बा प्रसाद कोटनाला ने अपने शोध ग्रन्थ में सभी युगों के कई मूर्धन्य आधुनिक कवियों की मीमांशा प्रतीक –बिम्बों को आधार बनाकर पर भी की है. भीष्म कुकरेती ने भी अपने अंग्रेजी समीक्षाओं में गढवाली कवियों की समीक्षा प्रतीक- बिम्बों को ध्यान रखकर की है व गढवाली कविताओं मे प्रतीक –बिम्बों की तुलना विदेशी भाषाई कविताओं में पाए गये प्रतीक –बिम्बों से भी की है .
लिविस अनुसार कविता बिम्ब एक भावयुक्त शब्द चित्र होते हैं .
केदार सिंह अनुसार बिम्ब बिम्बों में १- पूर्व स्मृति जगाने , २ –नवीनता और तीब्रता आवश्यक हैं .
गढवाली की वरिष्ठ कवित्री वीणा पाणी जोशी की गढवाली कवितायें भी सुंदर बिम्बात्मक कविताएँ हैं .
वीणा पाणी जोशी की कविताओं में बिम्ब के निम्न उदाहरण साबित करते हैं कि वीणा पाणी ने बिम्बों का सफलतापुर्वक प्रयोग किया है –
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प्रकृति बिम्ब
मौळयार जग्वाळआ भायुं
..
ऋतू बौडी आली
सौजणया बसंत
फुल्लूं तैं खिले दे
२- अमलतास का खिल्यां फुल्लु का घौणा झुम्पा न
घाम बिनसर मुं आये , घाम बिनसर मुं आये ,
(वण विनास कविता मा )
रंग फूलों कू बणीकि
( आवा होली खेला रे कविता से )
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रूप बिम्ब
बोडा जी कि कमर झुके , लाठी टेकि आणा
(कौथिग मा तिबरि, कविता से )
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दृश्य बिम्ब
देखा ! कनु फ़ोळयूं उजास
सुरजो जनु प्रकाश
(बसिंगो कविता मा )
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ध्वनि बिम्ब
चैत बैशाखा मैनो
बुलेंद बसणु होलू क्फ्फु
कुक , कुक , कुक , कुक , कुक
( घराट कविता से )
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आस्वाद्य बिम्ब
जरा सि घुट्टी घट्ट
तुम बि लगा धौं
xx
काळई च्या दगड़ी गुड़े
कुटकि कट्ट. लगौंदा साब
xx
देसी ठर्रा पाउचै
सुटकि सट्ट लगा दों साब
( विकासै गति कविता )
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गंध बिम्ब
सर्प लिपट्यां चन्दनै डाली सि
सुगंध उड़ानै रह्याँ .
(कुनस इन ज्वानि, कविता से )
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स्थिर बिम्ब
पर्या जख्यो तखि छ
xx
जनु भितर धर्युं
छांछ कु पर्या
बरसू बाद
आज भी
(छांछ कु पर्या कविता )
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गति बिम्ब
भक्तों का साथ
संसेक्स कु सांड चल्दु
कम्प्यूटरी इन्टरनटिया चाल
संसेक्स कु सांड , उफ्फ !
(संसेक्स कु सांड ,
कविता से )
झझकि झझकि हिटणु छ
ऐंसू को बसंत
(कौथिग मा तिबरि, कविता से )
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-लोक सांस्कृतिक बिम्ब -
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छज्जा मा टंगी छ टोफरी गौडी बाछी दौsण
बिनसिर मा घासौ जाण, पटाई जान्द मौsण
(कौथिग मा तिबरि, कविता से )
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-भाव बिम्ब -
तीर का मछेर ,
रैबासी हर्चिने
त्रासदी देखि की
जगे जिकुड़ी मयळदू
(कालै कर्छुलि , कविता से )
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- अलंकृत बिम्ब -
मनख्यूं बूकैगि रै बिकराल
समुदरी रागस
(कालै कर्छुलि , कविता से )
इस तरह हम पाते हैं कि वीणा पाणी जोशी की कविताओं में बिम्ब विधान का उपयोग सुंदर ढंग से हुआ है .
Copyright@ Bhishma Kukreti 2016
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