गढ़वाली कविता : कट्गल
पहाड़ मा
धरु - धारौं मा - नेतौं की
गौं-गौं मा - आपदौं की
दफ्तरौं मा - सरकरी फईलौं की
घर -घरौं मा - उन्दु रडदा बेरोज्गरौं की
सैण-बज़ारौं मा - नेपली डुटीयलौं की
बिलोक मा - टवटगी बिगास योजनौं की
गाड - गद्नियों मा - भ्रष्ट परियोजनौं की
राजधानी मा - बारामषी झूठी घोषणऔं की
जिला कार्यालय मा - निकज्जू अफसरौं की
और क्वलण - कुम्च्यरौं मा - दारू का ठेक्कौं की
कट्गल लग्यीं चा !
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
(http://geeteshnegi.blogspot.com/ )
धरु - धारौं मा - नेतौं की
गौं-गौं मा - आपदौं की
दफ्तरौं मा - सरकरी फईलौं की
घर -घरौं मा - उन्दु रडदा बेरोज्गरौं की
सैण-बज़ारौं मा - नेपली डुटीयलौं की
बिलोक मा - टवटगी बिगास योजनौं की
गाड - गद्नियों मा - भ्रष्ट परियोजनौं की
राजधानी मा - बारामषी झूठी घोषणऔं की
जिला कार्यालय मा - निकज्जू अफसरौं की
और क्वलण - कुम्च्यरौं मा - दारू का ठेक्कौं की
कट्गल लग्यीं चा !
रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
(http://geeteshnegi.blogspot.
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments