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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 20, 2011

गढ़वाली कविता : बिचरी

बिचरी तू
अर
त्यारा वू दिन
अज्जी तक नि बदला
वा बात हैंकि च
की जू त्यारा छाई
वू बदली गीईं
एक -एक कैरिक |


रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से
(http://geeteshnegi.blogspot.com/2011/06/blog-post.html )

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