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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, June 26, 2011

तडतडी उकाल छै जेठ कु छौ मास

तडतडी उकाल छै जेठ कु छौ मास

ना खखि डाली बौटी कू छैल छो न खखि छौ घास

पसिनन तरमर बणयूं लगि छै में प्यास

दूर देखी पंदेरी ज्युकुड़ी मा जागी आस

हिट्द हिट्द गयो मि वीं पंदेरी का पास

बोली बोल मिन ये पंदेरी त्वेमा च जलास

सुणी की वीं पंदेरिन मेरी बाच

कैरी गगरी टोटकी वीन हुयो मि निरास

बोल्दी बोल वा ये बटोई मी भी कनु पाणी तलाश

सूणी की विंकि बात मिन मन ही मन मा सोची

ये मनखी अपड़ा भोग का वास्ता तिन यूँ पहाड़ू की आस्म्मिता किले नोची

अधिकार तेरु ही नीचा यूँ डाई बौटयूँ पर बौण

पंछयुं कू भी चा यूँ मा वास

अपड़ा मतलब का खातिर किले कनि छै तू यूँ जंगलूं कू नाश


प्रदीप सिंह रावत "खुदेड़"

"फ्योली की आँख्यूं मा आंसू" पुस्तक बटि सर्वाधिकर सुरक्षित

फोन नंबर ९९७११२४५७८

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