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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 27, 2011

गढ़वाली कविता : पहाड़

मी पहाड़ छोवं
बिल्कुल शान्त
म्यार छजिलू छैल
रंगिलू घाम
और दूर दूर तलक फैलीं
मेरी कुटुंब-दरी
मेरी हैरी डांडी- कांठी
फुलौं की घाटी
गाड - गधेरा
स्यार -सगोडा
और चुग्लेर चखुला
जौं देखिक तुम
बिसिर जन्दो सब धाणी
सोचिक की मी त स्वर्ग म़ा छौंव
और बुज दिन्दो आँखा फिर
पट कैरिक
सैद तबही नी दिखेंदी कैथेय
मेरी खैर
मेरी तीस

म्यारू मुंडरु

म्यारू उक्ताट
और मेरी पीड़ा साखियौं की
जू अब बण ग्याई मी
जण
म्यार ही पुटूग
एक ज्वालामुखी सी

जू कबही भी फुट सकद !


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित
स्रोत : मेरे अप्रकाशित गढ़वाली काव्य संग्रह " घुर घूघुती घूर " से

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