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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 20, 2011

गढ़वाली कहानी : उक्काल काटी क सरपट

झंकरी बोडी कु नौनु बोडी थेय घार भटेय दिल्ली लिजाणु छाई , भारी उकाल काटी की जब वू धार मा पहुंची त बोडिल ब्वाल बुबा जरा बिसाई दयोला यम्मा |

नौनु किस्सा उन्द भटेय एक सिगरेट निकाली की सुलगाण बैठी ग्या और फिर दानी बुढडि ब्व़े थेय सम्झाणु छाई की ब्वे बस अब उकाल त कटेय ग्या पर बोडी कु मनं क्वान्सू छाई ,वेंकी आँखौं मा त बस घार - गौं -गुठीयार ,स्यार - पुन्गडा , बल्द- बखरा ,घास -भ्याल , पंदेरा -छन्छडा ही रिटणा छाई ,वींकू मन टपराणु छाई और आँखा उन्देय देखि की टुप टुप रूणा छाई |

सिगरेट कु धुँवा उड़ा की नौनल बोडी मा ब्वाल - ब्वे बस दिल्ली जा की ज़रा
त्गा ध्यान रखि की जै कै दगडी गढ़वली मा ना बचेय और घार मा आण - जाण वाला नौना -नौनियों की घार-गौं जण भुक्की न प्ये और जै कै मा अपड़ी खैरी का बिठ्गा ना लग्ये क्याच की दिल्ली मा लोगों मा सब कुछ च पर टैम नि च |

बोडिल कुछ नि ब्वाल बस खंडेला ल आँखा फुन्जिक खोलैय की तडतड़ी उक्काल और उन्दू गौं जन्हेय दैख्यंण बैठी ग्या|

नौनल ब्वाल - ब्वे क्या देखणी छई ? उकाल त अब कटेय ग्या , बस अब त हम सरपट दिल्ली पहुंचला |

ब्वे ल ब्वाल - हाँ बुबा मी भी बस इही सोच्णु छोवं |

पर बगत कुछ भंडिया ही लग्गी ग्या सम्झण मा ?
म्यार लाटा ६० बरस कम नि हुन्दा ,इतरी छोटी धाण थेय
बिंग्णा खुण ?
सैद बोडी भोत कुछ ब्वलूंण चाहणी छाई ,पर नौना ल बोडी की बात अणसुणी कैरी की ब्वाल
चल ब्वे अब भोत देर व्हेय ग्या , नथिर हमरी बस छुट जाण !




लेखक : गीतेश सिंह नेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित ,स्रोत : म्यार ब्लॉग हिमालय की गोद से
(http://geeteshnegi.blogspot.com/2011/06/blog-post_18.html )

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