छाण निराळ - भीष्म कुकरेती
दीनदयाल सुन्दरियाल जी चंडीगढ़ मा एक सांस्कृतिक अर सामजिक हस्ती छन। बिना फोकट की अपणी पब्लिसिटी का सुन्दरियाल जी चंडीगढ़ मा गढ़वळि नाटकुं मंचन मा व्यस्त रैन अर भौत सा नाटक मंचन करैन। चंडीगढ़ मा गढ़वाली साहित्य वर्धन अर संबालण मा सुंदरियाल जीक योगदान अविस्मरणीय च।
सुन्दरियाल जी भौत सालों से कविता गंठ्याणा रैन पर कविता खौळ (संग्रह ) छपाणो मौक़ा अब पायी। स्वतंत्रता उपरान्त गढ़वळि पद्य मा सकारात्मक शैलीगत बदलाव ऐन अर आज गढ़वाली कविता शैली का हिसाब से अंतर्राष्ट्रीय थौळ मा खड़ी ह्वे सकदी। सुन्दरियाल जीक कविता संग्रह मा बि कविता तीन प्रकार की कविता छन -छंदमय कविता ,गीत अर गजल जु सिद्ध करदन कि दीनदयाल जी गढ़वळि कविता तैं अंतराष्ट्रीय स्तर तक लिजाणो आतुर छन। 'बिसर्याँ बाटा बिर्ड्यां मनिख ' कविता खौळ ( संग्रह ) की कविता , गीत या गजल का विषय सब मानवता, पहाड़ अर गढ़वाल से संबंधित छन अर संग्रह बतांदो कि कवि स्वांत सुखाय का वास्ता नि लिखणु च अपितु कवि को उद्देश्य मानवता च।
कवि सबसे पैल अपणी कविता सीमाप्रहरी रक्षकों तै समर्पित करदो अर देशप्रेम की सूचना दीन्दो। संग्रह मा भौं भौं विषय छन जन कि -प्रकृति अर पर्यावरण अलग अलग नि छन (म्यरो भै ), गढ़वाल की जनान्युं योगदान अर उनको योगदान (मीकू तो नि बदले अादि कविता ), पलायन से गढ़वाल की बुरी स्थिति (ब्वे आदि ) , धार्मिक अंधविश्वास (राम कि नाउ की अठ्वाड़ ) , राजनैतिक उठापटक। जातिगत बैमनश्य -छुवा छूत , भ्रष्टाचार, आदि जन ज्वलंत विषयों से कविता भर्यां च अर शीर्षक कखि ना कखि विषयों सूचना दे दींदन।
कवि का पद्य विषय प्रेम , वीरता , भौगोलिक , प्रकृति वर्णन से अछूतों नी च। याने कि कविन जीवन का सबि क्षेत्र सामजिक , राजनैतिक , आर्थिक , धार्मिक , प्रकृति चित्रण , प्रेम व अन्य भँवनाएं , आध्यात्मिक क्षेत्रों मा अपण सजग दृष्टि से दिखणो बाद शब्द चित्रों तैं कल्पना से सहज चित्रित करणो भौत सुंदर प्रयास कार ।
हम सब जाणदा छंवां कि कविता कवि की हृदय की भावनाओं कलात्मक संहाविका हूंदी। कवि एक सामजिक प्राणी हूंद अर वु समाज का एक विशेष जागरूक व्यक्ति हूंद तो समाज मा परिवर्तन अर परिवर्तन से जु बि अच्छो -बुरो हूणु च वै पर कवि की नजर फटाक से पड़दि। कवि सुन्दरियाल का यु सामाजिक पक्ष कविता संग्रह मा अधिक सजग ह्वेक आयीं छन। पहाड़ का गांवुं असली भार उखाकि स्त्री उठान्दन अर ऊँ जनान्युं दुःख /पीड़ा का सामयिक, सही , स्वाभाविक चित्रण तबि ह्वे सकद जब कविना या पीड़ा देखि हो और हृदय से अनुभव करी हो अर तब जन्मिन्दन 'खैरी की बिठगी अर ब्वे श्रीका कविता -
तुम लिखदा रैग्यों
पहाड़ै जनानी कथा
तुम रैग्यों नाउ छपाण पर
तुम रैग्यों पैसा कमाण पर
कबि जाण छ वीं जनानी s व्यथा।
सरा भारत मा विद्रूपताएं , बिड़ंबनाये भरीं छन अर यूँ मादे एक च छुवा छूत को कोढ़,भ्रस्टाचार कु कैंसर, दारु पीणो चमळा । कोढ़ , कैंसर अर चमळा कविता मा कवि सजग करदो कि यदि यी बिमारी नि जाली तो विकास असल मा विकास नि रै जालो।
कवि रूढ़िवादी कृत्यों पर वैज्ञानिक दृष्टि मारदन अर फिर 'राम की नाउ की अठ्वाड़ ' मा चकड़ैतों द्वारा राम पूजा पर ही प्रश्न चिन्ह लगै दींदन।
बिडम्ब्नाओं पर व्यंग्य की चोट करण मा कवि पैथर नि हटद जन 'नेता ' कविता मा -
ब्याळि तक
हथ ज्वड़ना रैनि
चुनौ जीति
चुसणा बथै गैनि
'कुळबुळाणु च प्राण म्यरो ', गीत पंक्ति , "ज्यु त ब्वनु चा यखि ऐ जौं" जन गजल की पंक्ति सब जीवंत अर सजीव छन।
विषय गांवका छन अर अनुभवगत छन।
कविता संग्रह मा सामाजिक यथार्थ , स्थानीयता , जनपक्ष अर प्रगतिशीलता को अच्छो मिळवाक् हुंयुँ च। शोषण , शोषण पद्धतियों अर शोषण का प्रतीकों पर विरोध साफ़ दिखेंद।
कवि की खसियत च कि कवितौं मा कविता खतम हूणों बाद कविता का अहसास अपणी समग्रता मा घनीभूत ह्वे जांद।
कवि की खसियत च कि कवितौं मा कविता खतम हूणों बाद कविता का अहसास अपणी समग्रता मा घनीभूत ह्वे जांद।
गीतों का कवित्व प्रभाव शब्दों से ही ना बल्कण मा ध्वनियों से बि ब्यंजित हूंदन।
संग्रह की सबि रचनाओ की भाषा , मुहावरा , प्रतीक जण्या पछयण्या लगदन अर पाठक तै झकजोरण मा कमि नि करदन।
भाषा बड़ी सरल छन जु आम पाठकों कि जिकुड़ि भितर बैठँण मा सशक्त छन।
कविता , गीत या गजल सब आम पाठको का न्याड़ ध्वार की छन अर अवश्य ही कविता संग्रह गढ़वाली साहित्य पाठक बढ़ाण मा सहायक होला।
मेरी शुभकामना कि जल्दी ही दीन दयाल जी को दुसर कविता संग्रह बी छप्याओ !
पुस्तक प्राप्ति - समय साक्ष्य , देहरादून
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