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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, August 17, 2009

क्या बुन तब ?

उछेदी गौ ---- ( जाथो नाम तथो गुणाः ) माँ उन त कई उछेद छा ! एक से बड़कर एक ! आस पास अर तिख्डी , पट्टी यख तक की गढ़वाल माँ उकी हाम छै हाम , अर ख़ास कर घनतु अर सन्तु की बात त कुछ औरी है छै ! घन्तु सन्तु थै भीतरी -भीतर एक हैंका थै काला बखरा बराबर दिखदा छा ! अर भैर उ इना लागुदु छो जन बुलंद एक दुसरा एक ही गाल पानी जाणु हो ! पर ..
जनी संतुल बोली __ " आज हमने सिलकुंतु ( ) मारी ! वे थै मना का वास्ता हमन पुरनी तरकीब अपनाई " बस या बात घन्तु थै चुभी गे ! पुराणी कन पुराणी ? कनु कैथै मना का वास्ता तराकीब .. कन तराकीब ! "
वेल पंचैत बिट्टाई ! यु कन क्वाई हुवै सकद ? अगर संतुल सचमा सिल्कन्तु मारी ही च, त , वो उदाहरण का द्वारा हम थै बतये की , १. आया ----, उन कुकर छुलैन या ना ? २.---, अगर वो कई पोड का पेट घुस्सी त क्या आपन मुव्वार पर धुई भी दे की ना ? ३. क्या अपन कुई जानकार बुजर्ग दगड भी रखी की ना ? आदि आदि ! अगर ये सब नि कारी त कन पुरनी तरकीब .. एकु मतलब ये ह्वै की आप थै सालू अर वे थै मना की तरकीब नि आंदी .. मी राही जी जाऊं शोली घररै घुर दगड्या वालू गीत गे उ से बिनती करदू की उ बतैनी की मई टीक छो बुनू या सन्तु ?

नोट .. कृपया व्यकितगत ना ले .. ले भी तो हसी मजाक में ?

Copy Right@परासर गौड़

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