डांडी काँठ्यौं ऐंच ऐगि,
देखा हे चुचों घाम,
खड़ु उठा बिजि जावा,
करा कुछ काम.......
ऊजाळु ह्वैगि सबक लेवा,
फन्सोरिक कतै नि सेवा,
बिंगा दौं हपार,
डांडी कांठी बिजिग्यन,
पनेरा पाणी चलिग्यन,
ह्वैगि ऊदंकार..........
घंटा शंख बजणा छन,
जख, देवतों का धाम,
सब्बि मनखी लेणा छन,
बद्रीविशाल कू नाम......
ऊंचा डांडा बोन्ना छन,
खड़ु उठा, ऊब उठा,
अळगसि होन्दा छन,
दुनिया मा झूठा.......
खड़ु उठा हे लाठ्याळौं,
तुम सुणि लेवा,
ऊजाळु ह्वैगि पहाड़ मा,
फंसोरि नि सेवा......
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास: संगम विहार, नई दिल्ली
21.8.2009 दूरभास:9868795187

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