Satire by Narendra Kathait
दूधौ पराण त् वे दिन हि खट्टू ह्वे ग्ये छौ जै दिन ‘दै’ जमौणू रख्येे.’
दूधै हमेसा कुगत ह्वे। ‘दूध’ सांजी ‘दै ’ जमी, दै कि छाँछ छुळे त् ‘नौण’ निकळि। नौण फूकी ‘घ्यू’ बणी। चट्वा लोग्वा बीच घ्यू कु स्वाद फैली त् घ्यू कि कीमत बढ़ी । तैं बढ़ीं कीमतन् दूधौ स्वाद दब्ये दे। पर अज्यूं तलक बि, कै माई का लालन् इन निबोली, कि तै ‘घ्यू’ पर ‘दूधै’ कीमत बि दौं पर लगीं छ।
भैजी! दूधौ पराण त् वे दिनी खट्टू ह्वे ग्ये छौ जै दिन ‘दै’ जमाणू रख्येे। पर जमीं दै तैं बि मनखी कतोळी झणि क्य खुजाण चाणू छौ। दै पर्या उन्द खणेकि मन्खिन् रौड्यू बोली- ढूंढ ? तंैन उल्टां फरकी पूछी- क्य ढुंढ़ुण? पर बिना बतलयां मनखी रौड़ि तैंबार-बार गुर्त्याणू रै- ‘ढूंढ़! ढूंढ़!’ वा पुछणी राई- ‘क्य ढुढु़ण?’ बिचारि पर्या उन्द मनख्या हथू पर नच्दि रैगी। पर हंैंकै कांधिं मा बन्दूक रखी मनखी तैं क्य मिलुण छौ। आखिर दौं मन्खिन् थकी हारी सुसकरा भरि आवाज निकाळी- ‘छाँछ’ छुळेगी।
पर्या उन्द निरभै खट्टा पाण्या बीच नौ रखणू क्वी चीज निकळी त् मन्खिन नौ रखी ‘नौण’। छाँछ छुळदि दौं मनखी अगर ताकतै जगा दिमाग बि लगान्दु, त् ह्वे सक्दू छौ, नौ रतन न् सै त् द्वी-चार कौड़ी जरुर निकळ्दि। पर सब्यून् बोली नौण बरोबर क्वीचीज नी।
कुछ टैम तलक नौणौ बोलबाला रै। पर नौणै चिफलैस जादा दिन नि चली। जब मनखी तैं नौण सि बिगळछाण ह्वे त् वेन नौण भवसागर मा तपौण सुरु कर दे। हमुन् क्य सब्यून् देखी तपौन्द दौं नौण पर चिफलैसा तिड़का उठणा-दबणा रैनी पर आखिरदौंनौण पिघळि हि छ। पर नौणै चिफलैस प्येकि ज्वा चीज निकळी वा दिखण लैक छै। इनू बहुरुप्या मन्खिन् अज्यूं तलक नि देखी छौ। मौसम देखी तैन सकल बदळ्न सुरू कर दे। गरम देखी पिघळ जावु अर ठण्डा देखी जम जावू। जन्कि गंगा दगड़ागंगादास अर् जमुना दगड़ा जमुनादास। मनखी यीं चीजो जन-कन नौ नि रखण चाणू छौ। खोळा-खोळौं ‘कमोळी’ पर नचैकि मन्खिन् पुछुण सुरु करी- भयूं! बता धौं क्य नौ रखला? जैन बि तारिफ सूणी वेनी बोली- माण ग्यां ब्यट्टा! येन प्ये ब्वेकु दूध। नौपड़ी ‘घ्यू’।
अब चर्रि तिरपां घ्यू कि चराचरी छै। जरा-जरा करी सब्यूं पर घ्यू कि संगतौ असर प्वड़ण बैठी। जु पैली एक गफ्फा खाणू छौ वू र्वट्टि चबौण बैठी। जु र्वट्टि खाणू छौ वु कुण्डी चट कन बैठी। कुठार- कुन्नों की बरकत हर्चिगी। जु घुण्या अन्न पौन-पंक्ष्यूं कुछुट्यूं रौन्दु छौ, वे अन्न मनखी उकरी लौण बैठी। मन्खिन् घ्यूकि भगलोणिम् ‘गळा-गळा तक अन्न ठूंसी अन्नै असन्द गाड़ दे’। पर प्वटगि भ्वरेणा बाद बि मनखी ‘धीत’ नि भ्वरे।
जै मनखी पैली दूध प्येकि छाळि बाच छै वु गरगुरू रौण बैठी। कामा थुपड़ों का ऐंच कुम्भकरण सियां दिखेण लग गेनी। राबण अपणा जूँगो पर घ्यू कि मालिस कर्दू दिख्येे। मनखी घ्यू सूँघैकि अपड़ा पित्रू सान्त कन बैठी। मन्खिन् ‘द्यू’ सि लेकी ‘धुपणा’तक घ्यू घुसै दे।
अब सब्बि कागजू पर घ्यू बैठ्यंू दिख्येन्दु। योजनो मा घ्यू टपकुदू। दै की जलड़यूं उंद मट्ठा डाळी घ्यू ‘नेता’ बण गी। किताब्यूं मा घ्यून् आखर लिखण सुरु कर यालिन। आज जख देखा घ्यू कि चराचरी छ। घ्यू डाॅंगधर, घ्यू इंजीनैर, घ्यू प्रधान, घ्यूसौकार, घ्यू ठिकादार, घ्यू गुरु, घ्यू चेला।
‘लछमी’ घ्यू का कब्जा मा छ अर् ‘दूध’ बिधवा पिन्सन पर गुजारु चलाणी छ। पर हे लोळा करमकोढ़ी घ्यू! दूध नि होन्द त् तू कख बिटि होन्दि।
कोख्यू दुःख दर्द अज्यूं तलक बि कैन नि पछाणि।
Copyright@ Narendra Kathait
Thanking You with regards
B.C.Kukreti
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