Garhwali Satire by Narendra Kathait
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इन पक्कू नि बतलै सकदाँ कि ‘हुक्का अर् चीलम’ से पैली बीड़ी छै कि नी छै। पर हुक्का अर चिलामिन् बि बीड़्यू क्य बिगाड़ दे? आज बि हुक्का अर चीलाम्या दबदबा बीच बीड़्यू रुतबाकम नी ह्वे। बीड़ी, गरीब-अमीर हर कैकि, करबट मा बैठ जांदि। बीड़ी तैं कामचोर, बग्त कटणू हत्यार बणांैदन्। पर ठुकरयां अर लाचार लोग ब्वल्दन् कि बीड़्या सारा पर लम्बी रात बिकटे जांदि।
सुदामा प्रसाद पे्रमी जी, बीड़ी नौ कि एक कबिता मा लेख्दन ‘जुुगराज रयां तुम मेरी बीड़्यूं, तुमन सैरी रात कटैनी! एक का बाद हैंकि फंूकी, अपणा मन का भाव जगेनी’! पर बीड़्याभरोंसा पर अपड़ा मना भाव हर क्वी नि जगै सक्दु। अपड़ा मना भाव जगौणू तैं बीड़ी तैं समझुणू जरुरी च।
दुन्या मा, द्वी मनखी बि एक जना कख छन? हिन्दुवों देखा त् बडि़ जाति-छुटी जाति, मुसळमनू मा सिया-सुन्नी, सिखू मा मोना-केसधारी, इसायूं मा कैथोलिक अर प्रोटैस्टैंट। बीड़ी मा बिमसालु एक च, रंग-रूप बि एक, पर बीड़्या पैथर खाण-कमोण वळों कि अकड़ैस अलग-अलग छन। जन्कि, छोटा भाई-जेठा भाई, घोड़ा छाप बीड़ी, टेलीफून बीड़ी, पाँच सौ एक, पाँच सौ द्वीबीड़ी। छोटु भै अर बड़ा भै, नौ कि बीड़ी त् हमारि समझ मा ऐगि। किलैकि, छोटु भै अर बड़ा भै बीड़ी सुलगौंद, हमुन् कै द्यख्नि। कै बार इन बि देखी कि ‘जेठा भैन्’ ज्वा बीड़ी प्येकि फुंडचुटै, ‘छुट्टा भैन्’ वी बीड़्यू टुड्डा प्येकि, अपड़ी जिकुड़ी तीस बुझै। हमतैं क्य, कै तैं बि यिं बात पर बिस्वास नि होण कि गणेश जीन् कबि लुकाँ य ढकाँ बि बीड़ी प्ये होवु। पर एक गणेश बीड़ीवूंको नौ लेकि बि खूब धुवाँ उडोणी च।
खादी सूणी तैं, खाद्यू लम्बू कुरता-पैजामु, आँख्यू मा रिटण लग बैठ जांदु। पर खादी नौ की बीड़ी बि च। एक दिन हमुन् एक पनवडि़ पूछी- ‘दीदा! यिं बीड़्यू नौ, ‘खादी बीड़ी’ किलै रखे ग्येह्वलु’? वेन उल्टाँ पूछी- ‘खाद्यू मतलब तुम क्या बिंग्यां’? हमुन् जबाब दे-‘खादी यनिकि, सस्ती-मस्ती चीज क्या’। ताँ पर हमतैं सुण्ण प्वडि़- ‘बस्स! इलै हि, यिं बीड्यू नौ खादी च।जथगा सस्ती च, वाँं से जादा वाँ मा मस्ती च’।
क्वी ब्वल्दू ‘टेलीफून बीड़ी’ मा बात हि कुछ हौर च। क्वी ब्वल्दू तौं ‘घोड़ा छाप बीड़ी’ प्येकि मजा नि औंदु। एक आद हमुन् परदेस जाण वळांे कु इन ब्वल्दू बि सुणी ‘यार भुला इनासुणदि! इख या... ‘कामिनी बीड़ी’ नि मिल्दी। अगिल दौं जब घौर ऐली त् एक ‘बुरुस’ कामिनी बीड़्यू लै जै वा... टक्क लग्येकि।
(बक्कि फेर कबि)
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