पयाश पोखड़ा बहुत दिनों से कविता करते हैं किन्तु फेसबुक से ही उन्हें एकदम प्रसिद्धि मिली। मै अन्य साहित्यकारों के साथ वर्तमान गढ़वाली कविता के विषय पर जब भी बात करता हूँ तो पयाश का नाम आजकल पहले आता है। उसका मुख्य कारण है पयाश प्यास द्वारा वस्तुओं का मानवीकरण , प्यार की नई परिभाषा , नई नई उपमाएं। नेत्र सिंह असवाल ने उनकी कई गजलों का अध्ययन किया और बताते हैं कि मीटर में भी गजलें फिट हैं
देखिये मानवीकरण और उपमा का एक उदाहरण -
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ग्वाया लगांदा चौमासा थैं देळि उगड़णि दे |
लगुलि रितु बसन्त कि ठंग्रि मा चढणि दे ||
लगुलि रितु बसन्त कि ठंग्रि मा चढणि दे ||
फोळि सि हुटण्यूं की डिमडल्यूं थैं ठसोळिक |
दळम्यां का बियौं थैं मुलमुल हैंसणि दे ||
दळम्यां का बियौं थैं मुलमुल हैंसणि दे ||
फीकि मळमळि अर बकळि सि जीभि मा |
हिंसोला किनगोड़ा कि मिठ्ठी बूंद तरकणि दे ||
हिंसोला किनगोड़ा कि मिठ्ठी बूंद तरकणि दे ||
उल्यरा दिनु थैं अभि सौरास नि पैटैई |
दिन चारेक रंगमत मैना थैं मैता मा रणि दे ||
दिन चारेक रंगमत मैना थैं मैता मा रणि दे ||
धगुला झिंवरा ज़िकुड़ि थैं आंख्यूं मा पैजमी |
स्वीणो थैं चूड़ि फूंदा अर बिन्दी पैरणि दे ||
स्वीणो थैं चूड़ि फूंदा अर बिन्दी पैरणि दे ||
क्वीनों ल घचकाणि च या छमना हवा |
मीथैं थड्या चौंफला गीतु दगड़ उडणि दे ||
मीथैं थड्या चौंफला गीतु दगड़ उडणि दे ||
दुख खैरि फर अब खुटळि जिबाळ लगैदे |
बौळ्या बणकै पयाश थैं गौं मा रिटणि दे ||
बौळ्या बणकै पयाश थैं गौं मा रिटणि दे ||
@पयाश पोखड़ा |
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