पथिक जी की गढ़वळि साहित्य का निब्त लगायिं ‘धै’ साख्यूं तक सुण्ये जालि, गुणै जालि !
गढवळि साहित्यकार बड़ा भै पूरण पंत‘पथिक’ जी का भग्यान होणै दुखद खबर मिली। वुन त पथिक जी कु सरेर लम्बा टैम बिटि वूंकु दगड़ु नि निभौणु छौ।फिर्बि हमतैं य उम्मीद कतै नि छै कि कड़क मिजाज पथिक जी इथगा जल्दि हमसि दूर जाला। पर क्य कन उम्मीद हमतैं आखिरी तक इनी झुठू दिलासुदिलौणि रौंदि। बिधि का बिधान का ये मामला मा हम सबि बेबस ह्वे जंदां।
पथिक जी दगड़ा आखरी मुलाकात २०१२ मा एक कार्यक्रम मा देहरादून मा ह्वे छै। टेलीफून पर कबि-कबार बातचित बि होणी रौंदि छै। ब्वल्ये बि जांदु किदुख बांटी तैं हल्कु ह्वे जांदु। पर पिछला लम्बा टैम बिटि पथिक जी ब्वन-बचल्योण मा बि दिक्कत मैसूस कना छा। यिं बात तैं हम बि समझणा रयां। हमतैं यिंबातौ अफसोस च कि वु अपड़ि वीं पिड़ा अफ्वी प्येणा रैनी। साणा रैनी। अब जबकि पथिक जी हमारा बीच ससरेल नीन त गढ़वळया पैथर हमारा आंखा खुलुणसि पैलि अर पथिक जी का आंखा बंद होण तकै सर्रा तस्बीर हमारा ऐथर जरा-जरा कैकि घुमणी च।
पथिक जी ब्वल्दा छा- ‘भुला! भाषा मा हमारि संसकिरति च अर साहित्य मा संस्कार। इलै दुयूं पर आंच नि औण चऐणी।’ अर ये हि ध्ये लेकि पथिक जीआखिर तक अपड़ि भाषा ठडयोण मा लग्यां रैनी।
पर सच बात त या च कि हम मा पथिक जी कि प्रतिभा तैं तोलुण लैक ‘बाट’ हि नि रैनि। अपड़ि ‘वाह-वाह’ मा हमुन वूंकि ‘आह’ बि नि सूणी।
फिर्बि य फकत एक ‘धै’ नि एक सचै बि च कि पथिक जी की गढ़वळि साहित्य का निब्त लगांिय ‘धै’ साख्यूं तक सुण्ये जालि, गुणै जालि ! परमेसुर सि यिप्रार्थना च कि यिं दुखै घड़ि मा पथिक जी की आत्मा तैं शान्ति अर सब्बि आपस मित्रू तैं धीरज रखणै सग्ति मिलु।
पथिक जी तैं विनम्र श्रंद्धाजलि!
Tribute to late Puran Pant Pathik by Narendra Kathait , Tribute to Garhwali Language satirist Puran Pant Pathik,
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