व्यंग्य - नरेंद्र कठैत
गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया.
कट्यां दूबलै धौंणि मा कुर्सी डाळी वून बोली- क्य रख्यूं ये पाड़ मा?हमुन् पूछी- क्य नी ये पाड़ मा।
वून एक किनारा थूकी जबाब दे- अजि कुछ नै है।
-हमुन् अगनै तौंकी टोन मा बोली- कुछ क्या नै है इस पाड़ में? क्य सांस लेणू को खुली हवा नै है? छोया-मंगरों को ठण्डु पाणि नै है? माटै कि साफ सुथरी गन्ध नै है? गौं-गौळा नजीक है। आस-पड़ोस, आबत-मित्र है। याँ से बक्कि क्य चैये?
-अजि हवा, पाणि, माटा ही सब्बि धणी नै होता । जिन्नगी बढ़ाणे के लिए हौरि धाणि बि चैये। असली चीज है रुजगार। वो तो है ही नै ।
-किसनै बोला रुजगार नै है?
-काँ है तब?
-क्य नैपाळि अर् बिहारि पाड ़मा तमाखू खैणी चबाणै आता है। सि बि त् रुजगार करता है। खाता है, कमाता है, बच्यूं-खुच्यूं नेपाळ, बिहार भिज्ता है।
-सि त् मिनत मजूूर है।
-हम बि त् भैर मिनत मजूर है। होटलू मा भाण्डा मंजाता है। य पहरा पर डण्डा बजाता है। साब लोग त् इणती-गिणती का है। पर ये बोलो कि खाणे-कमाणे को बि सगोर चए।
-अजि सगोर तबि त् हैगा जब कुछ रस्ता रैगा। बिना रस्ता का सगोर को काँ पैटाओगे।
-अच्छा जेे बताओ संकराचार्य जीले बदरीनाथ अर् केदारनाथ जाके कै करा?
-कन कै करा? उन नै धरम को मजबूत करा। धरम का पाड़ा सिखाया।
-पर ये त् नै बोला था कि भगवान के ऐथर जो रुप्यों कि थुपड़ि दे, वे सणी अगनै गाडो। अमीर अलग अर् गरीब अलग लैन में लगावो।
-तब अमीर अर् गरीब की लैन किनै लगाई?
-रूजगार नै। अर् जरा इन बि बताओ, क्य भगवान के नौ पर होटल ढ़ाबा संकराचार्य जीन् खोला?
-तब वो होटल ढ़ाबा किनै खोला?
-रुजगार ने।
-सूणों ज्यां-ज्यां से सड़क बदरीनाथ, केदारनाथ जाते है वां सि लेके भगवान तक करोड़ो को रुजगार होते हंै। अब त् भगवान जी कु परसाद बिदेसूं बि जाते है।
-कन क्वे?
-रुजगार से।
-अजि ये काम सबका बस का नै है?
-किनै का नै है?
-हमारा बस का त् नै है।
-बस जे ही तो बात है कि पाड़ आधा त् करम कना का बाद बि सरम से नै खाता है। अर् आधा करम से नै धरम सि जादा खाते है।
-पर पाड़ में सब्बि धाण्यूं कि सुबिधा नै है।
-जै दिन तुम गौं छोड़ कै सैर में गये थे तिस दिन बि तुमनें इन्नी बोला था कि पाड़ में सुबिधा नै है। पर सैर मा ऐ के तुमनें क्य फरकाया। सैर मा ऐकी बि तुम गौं पर चिब्ट्यां राया। साक भुज्जी से लेकी चुन्नू झंगर्याळ तक गौं बिटि मेटि-माटि सैर में लाया।अल्लू तुमनंे गौं मा बि थींचा अर् सैर मा बि थींचता है। गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया। अब तुमी जबाब देवो तुमनें सैर में क्य फरकाया?
-भै नौनो को पढ़ाया लिखाया रुजगार लगाया।
-नौनौ को पढ़ाया! क्य पढ़ाया? ऐ बोलो तोता जन रटाया अर् कबोतर जन उड़ाया। नौना तुमारि भोणी छोड़ी दुन्ये भगलोणी मा ग्याया। तुमुन् तो सर्रा जिन्नगी दौड़ लगाया, हाय तोबा मचाया, अर् आखिरी दां क्य कमाया? खप-खप्प जिकुड़ा पर बलगमका कुटेरा।
-पर भुल्ला !गौं मा अबि बि सब्यता नै है। जंगलीपना है।
-भैजी! जाँ तक सब्यता का बात है तो सब्यता तो तुमनंे बि जम्मा नै सीखा। बोलो कैसे?
-कैसे?
-बुरू तो नै माणेगा।
-नै-न !
- अपड़ि फेमिली का बिलौज बिटाळ के कन्धौं तक लिजाणा सब्यता तो नै है। अर् जाँ तक जंगल को सवाल है। चला माण गये गौं मा जंगली लोग रैता है। पर जंगल छोड़ के सैर मा एके बगीचा त् तुमनें बि नै लगाया। हियाँ स्याम-सुबेर तुम दुबलू छंट्याताहै। गौं उजाड़ कै सैर लाया, अब दुयूंकि निखाणी कैके काँ जैंगे।
तौंने बोला- दिल्ली, डेरादूण जैगैं।
झूठ क्यांे कु बुलणा है, सि गये हैं। पर आज बि तख अगर तौं दुन्या के चैबाटे में छौळ लगता है तो पुजाणे घौर आता है। भैजी! सात धारों को पाणि त् हमनंे बि पबित्रर माणा है अर् स्यो हमको खप बि जाता है। पर ताँ से अगनै खरण्यां पाणि पर तोजम्मा बि बरकत नै है। अब अगर सि आता है तो कोई चिन्ता नै है...... तिनके उपर का परोख्या पाणि हमनंे अबि तक समाळी रखा है।
वून एक किनारा थूकी जबाब दे- अजि कुछ नै है।
-हमुन् अगनै तौंकी टोन मा बोली- कुछ क्या नै है इस पाड़ में? क्य सांस लेणू को खुली हवा नै है? छोया-मंगरों को ठण्डु पाणि नै है? माटै कि साफ सुथरी गन्ध नै है? गौं-गौळा नजीक है। आस-पड़ोस, आबत-मित्र है। याँ से बक्कि क्य चैये?
-अजि हवा, पाणि, माटा ही सब्बि धणी नै होता । जिन्नगी बढ़ाणे के लिए हौरि धाणि बि चैये। असली चीज है रुजगार। वो तो है ही नै ।
-किसनै बोला रुजगार नै है?
-काँ है तब?
-क्य नैपाळि अर् बिहारि पाड ़मा तमाखू खैणी चबाणै आता है। सि बि त् रुजगार करता है। खाता है, कमाता है, बच्यूं-खुच्यूं नेपाळ, बिहार भिज्ता है।
-सि त् मिनत मजूूर है।
-हम बि त् भैर मिनत मजूर है। होटलू मा भाण्डा मंजाता है। य पहरा पर डण्डा बजाता है। साब लोग त् इणती-गिणती का है। पर ये बोलो कि खाणे-कमाणे को बि सगोर चए।
-अजि सगोर तबि त् हैगा जब कुछ रस्ता रैगा। बिना रस्ता का सगोर को काँ पैटाओगे।
-अच्छा जेे बताओ संकराचार्य जीले बदरीनाथ अर् केदारनाथ जाके कै करा?
-कन कै करा? उन नै धरम को मजबूत करा। धरम का पाड़ा सिखाया।
-पर ये त् नै बोला था कि भगवान के ऐथर जो रुप्यों कि थुपड़ि दे, वे सणी अगनै गाडो। अमीर अलग अर् गरीब अलग लैन में लगावो।
-तब अमीर अर् गरीब की लैन किनै लगाई?
-रूजगार नै। अर् जरा इन बि बताओ, क्य भगवान के नौ पर होटल ढ़ाबा संकराचार्य जीन् खोला?
-तब वो होटल ढ़ाबा किनै खोला?
-रुजगार ने।
-सूणों ज्यां-ज्यां से सड़क बदरीनाथ, केदारनाथ जाते है वां सि लेके भगवान तक करोड़ो को रुजगार होते हंै। अब त् भगवान जी कु परसाद बिदेसूं बि जाते है।
-कन क्वे?
-रुजगार से।
-अजि ये काम सबका बस का नै है?
-किनै का नै है?
-हमारा बस का त् नै है।
-बस जे ही तो बात है कि पाड़ आधा त् करम कना का बाद बि सरम से नै खाता है। अर् आधा करम से नै धरम सि जादा खाते है।
-पर पाड़ में सब्बि धाण्यूं कि सुबिधा नै है।
-जै दिन तुम गौं छोड़ कै सैर में गये थे तिस दिन बि तुमनें इन्नी बोला था कि पाड़ में सुबिधा नै है। पर सैर मा ऐ के तुमनें क्य फरकाया। सैर मा ऐकी बि तुम गौं पर चिब्ट्यां राया। साक भुज्जी से लेकी चुन्नू झंगर्याळ तक गौं बिटि मेटि-माटि सैर में लाया।अल्लू तुमनंे गौं मा बि थींचा अर् सैर मा बि थींचता है। गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया अर् सैर के पिर्रा प्याज ने तुमको घड़ि-घड़ि रुलाया। अब तुमी जबाब देवो तुमनें सैर में क्य फरकाया?
-भै नौनो को पढ़ाया लिखाया रुजगार लगाया।
-नौनौ को पढ़ाया! क्य पढ़ाया? ऐ बोलो तोता जन रटाया अर् कबोतर जन उड़ाया। नौना तुमारि भोणी छोड़ी दुन्ये भगलोणी मा ग्याया। तुमुन् तो सर्रा जिन्नगी दौड़ लगाया, हाय तोबा मचाया, अर् आखिरी दां क्य कमाया? खप-खप्प जिकुड़ा पर बलगमका कुटेरा।
-पर भुल्ला !गौं मा अबि बि सब्यता नै है। जंगलीपना है।
-भैजी! जाँ तक सब्यता का बात है तो सब्यता तो तुमनंे बि जम्मा नै सीखा। बोलो कैसे?
-कैसे?
-बुरू तो नै माणेगा।
-नै-न !
- अपड़ि फेमिली का बिलौज बिटाळ के कन्धौं तक लिजाणा सब्यता तो नै है। अर् जाँ तक जंगल को सवाल है। चला माण गये गौं मा जंगली लोग रैता है। पर जंगल छोड़ के सैर मा एके बगीचा त् तुमनें बि नै लगाया। हियाँ स्याम-सुबेर तुम दुबलू छंट्याताहै। गौं उजाड़ कै सैर लाया, अब दुयूंकि निखाणी कैके काँ जैंगे।
तौंने बोला- दिल्ली, डेरादूण जैगैं।
झूठ क्यांे कु बुलणा है, सि गये हैं। पर आज बि तख अगर तौं दुन्या के चैबाटे में छौळ लगता है तो पुजाणे घौर आता है। भैजी! सात धारों को पाणि त् हमनंे बि पबित्रर माणा है अर् स्यो हमको खप बि जाता है। पर ताँ से अगनै खरण्यां पाणि पर तोजम्मा बि बरकत नै है। अब अगर सि आता है तो कोई चिन्ता नै है...... तिनके उपर का परोख्या पाणि हमनंे अबि तक समाळी रखा है।
(अड़ोस-पड़ोस -व्यंग्य संग्रह)
Thanking You with regards
B.C.Kukreti
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments