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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, April 20, 2011

ब्वे की खैर :पलायन फर आधारित एक गढ़वाली व्यंग कथा

एक खाडू और एक खडूणी दगडी छन्नी का स्कूल मा पडदा छाई, धीरे-धीरे दुयुं मा प्यार व्हेय ग्याई ,सौं करार व्हेय ग्यीं की अब चाहे कुछ भी व्हेय जाव पर जोड़ी दगडी नी तोड़णी,
साहब धूम धाम से व्हेय ग्या बल ब्यो खाडू और खडूणी कु , और कुछ साल मा व्हेय ग्यीं उन्का जोंल्यां नौना लुथी और बुथी |

अब साहब लुथी और बुथी रोज सुबेर डांड जाण बैठी ग्यीं खाडू और खडूणी दगडी चरणा खूण ,हूँण लगीं ग्यीं ज्वाँनं दुया ,

लुथी और बुथी छोटम भटेय देख्दा आणा छाई , दिक्का दद्दी थेय ,बिचरी सदनी खैरी का बीठगा ही उठाणी राई ,लुथी और बुथी सदनी वीन्का आंखों मा अस्धरा ही देख्दा अयं पर बिचरा कब्भी वींकी खैर नी समझ साका आखिर उंल अब्भी सरया दुनिया देखि भी ता नी छैयी ,उंनकी दुनिया त बस गुठियार भटटी रौल और डांड तक ही बसीं छाई |
एक दिन लुथी ल बडू जिकुडू कैरी की खडूणी मा पूछ ही देय की माँ या बुडढी दद्दी क्वा च और सदनी रुन्णी ही किल्लेय रेंद यखुली यखुली ?

खडूणी ब्वाल म्यार थौला व दिक्का बोडी चा ,हमरा सो-सम्भल्धरा ,दिक्का बोडी कु एक नौनु चा ,जेथेय बोडी ल भोत ही लाड प्यार से भोत खैर खैकी की सैंत पालिकी अफ्फु भूखु रैकि अप्डू गफ्फ़ा खिल्लेकी बडू कार,फिर अपड़ी कुड़ी पुंगड़ी धैरी की, कर्ज -पात कैरी की पढ़ना खूण दूर प्रदेश भ्याज़ ,नौनु पड़ी लेखी की प्रदेश मा साहब बणी ग्या और प्रदेश मा ही ब्वारी कैरी की वक्खी बसी ग्या ,पर माँ या मा रुणा की क्या बात चा या ता दिक्का दद्दी खूण खुश हुण की बात चा ? बुथी ल खडूणी म ब्वाल ,

ऩा म्यार थौला तिल पूरी बात नी सुणि मेरी अब्भि ,नौनु ब्वे थेय मिलण खूण आई छाई एक बार और बोलण बैठी ग्या बोडी खूण " ब्वे त्यारू नौनु आज बडू साहब व्हेय ग्या प्रदेश मा और तू छेई की आज भी यक्ख घास कटणी ,मुंडम पाणि कु कस्यरा ल्याणी छेई और मोल लिप्णी छेई,कुई द्याखलू ता मेरी बड़ी बेज्ज़ती हूण या ,तू चल मी दगडी प्रदेश म़ा छोडिकी ये कंडण्या पहाड़ थेय,अब येल तिथेय कुछ नी दिणु ,ठाट से रैह प्रदेश म़ा अपडा नाती -नतिणु दगडी "

बोडी गुस्सा मा पागल सी व्हेय ग्या और एक झाँपट नौना पर लगाकि बोलंण बैठ "अरे निर्भगी जै धरती ल त्वे सैंति-पाली की ,लिखेय पड़ेय की यु दिन दिखाई आज त्वे वीन्ही धरती खूण ब्वे बुलंण मा भी शर्म चा आणि ,ता भोल तिल मेरी क्या कदर करण ? थू तेरी और थू च तेरी अफसर-गिरी खूण और थू च तेरी वीन्ही पडेय खूण जैंल त्वे थी थेय यु नी सिखाई की ब्वे सिर्फ और सिर्फ ब्वे हुन्द "

बस व्हेय का बाद भट्टेय बोडी गौं मा छेंदी -कुटुंब दरी मा यखुली रैन्द ,नौनु छोड़ी दियाई पर घार नी छ्वाडू,अप्डू पहाड़ नी छ्वाडू , धन्य हो बोडी और बोडी कु पहाड़ प्रेम

लुथी और बुथी चम् -चम् जवान हुणा छाई फिर बहुत दिनों बाद एक दिन खडूणी ल खाडू खूण ब्वाल " जी बुनेय आज यूँ थेय पल्या छाल कु बडू डांड दिखाई द्यावा , वक्ख खाण -पीणा की भी खैर नी चा ,और यूँ थेय सिखणु खूण भी सब्भी धाणी की सुबिधा रैली "

बस इतगा बात सुणिकी लुथी और रूण लग्गी ग्यीं और बुथी ल ब्वाल " माँ हम नी चाह्न्दा की प्रभात हम दुया भी दिक्का दद्दी का नौना जन व्हेय जौं र तू दिक्का दद्दी जन धरु धरु म़ा रुन्णी रै,माँ हम खूण ता हमर यु छोटू और रौन्तेलु डांड ही स्वर्ग बराबर चा और हमर गुठियार ही सब कुछ चा ,जख हमल जलंम धार ,दुसरा का डांड जैकी अपड़ी माँ थेय बिसराणं से ज्यादा हम अपडा ही डांड म़ा भूखी मोरुण पसंद करला "

बस इतगा सुणि की खडूणी और खाडू खुश व्हेय ग्यीं और लुथी- बुथी और खडूणी और खाडू सब दगडी मा प्यार प्रेम से फिर से रैंणं लगी ग्यीं |

]रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड [/size]

Source: म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " व " पहाड़ी फोरम " मा पूर्व-प्रकशित

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