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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, April 20, 2011

गढ़वाली कविता (व्यंग ) : २०१० का आंसू

छेन्द स्वयंबर का निर्भगी राखी
बिचरी येखुली रह ग्याई
तमशु देखणा की "लाइव " चुप-चाप
हम्थेय भी अब सैद आदत सी व्हेय ग्याई
भाग तडतूडू छाई कन्नू बल कसाब कु ,
वू भी अब अतिथि देव व्हेय ग्याई
लोकतंत्र की हुन्णी चा रोज यख हत्या ,
इन्साफ अध रस्ता म़ा बल अध्-मोरू व्हेय ग्याई
कॉमन- वेल्थ का छीं आदर्श भ्रष्ट ,
सरकार बल राजा की गुलाम व्हेय ग्याई
मन छाई घंगतोल म़ा की क्या जी करूँ " गीत ",
तबरी अचाणचक से बल शीला ज्वाँन व्हेय ग्याई
घोटालूँ कु २०१० सुरुक सुरुक मुख छुपे की ,
अंतिम सांस लींण ही वलु छाई,
की तबरी विक्की बाबू की हवा लीक व्हेय ग्याई ,
" गीत "आँखों म़ा देखि की अस्धरा लोगों का ,
अब कुछ और ना सोची भुल्ला ?
२०१० कु निर्भगी प्याज जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई
२०१० कु निर्भगी प्याज जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी ( सिंगापूर प्रवास से,सर्वाधिकार -सुरक्षित )
अस्थाई निवास: मुंबई /सहारनपुर
मूल निवासी: ग्राम महर गावं मल्ला ,पट्टी कोलागाड
पोस्ट-तिलखोली,पौड़ी गढ़वाल ,उत्तराखंड
स्रोत : म्यारा ब्लॉग "हिमालय की गोद से " मा पूर्व-प्रकशित

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