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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, May 28, 2009

छूटिगि छबिलु रंगीलु पहाड़

जख गोरु चरैन,
खैणा तिम्ला खैन,
देळि देळ्यौं मा चैत,
फ्योंलि का फूल चढैन,
घरया बल्दुन उबरी,
पुंगड़ा भी बैन,
ह्यूंद का मैनों,
कोदा की रोठी खैन,
बग्वाळि का मैना,
रंगमत ह्वैक तब,
जग्दा भैला भिरैन,
बणु बणु मा बैठि,
बाँसुळि बजैन,
चोरी चोरिक कबरी,
काखड़ी मुंगरी भी खैन,
आमू की डाळ्यौं मा,
ढुंग चाड़ु लगैन,
भत्त भ्वीं मा पड्यां,
आम खूब खैन,
ब्वै बाब जब,
बाटु हेरदु रैन,
घौर नि पौन्छ्यौं,
तब ऊ गौं मा भटेन,
अब ऊ दिन कख गैन,
जन्म जू अग्नै भी होलु,
प्यारा उत्तराखण्ड मा,
नि ह्वै सकदी छन,
यी बात........

अहसास होंणु आज भूलौं,
अपणा हाथु सी छट छूटिगी,
पराणु सी प्यारु,
ऊ छबिलु रंगीलु पहाड़.....

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
27.5.2009

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