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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, May 28, 2009

पहाड़ के पत्थरों में भी प्राण हैं

बेसुध पड़े पहाड़ पर पत्त्थर,
लगते निष्प्राण हैं,
लेकिन, ऐसा नहीं है,
उनमें बसते भगवान हैं,
जरा, जा कर तो देखो,
जहाँ चार धाम हैं?

पर्वतों के पेट में,
या पीठ पर,
पत्थरों का राज है,
अतीत के गवाह हैं,
क्या हुआ था पहाड़ पर,
पहाड़ों के उठने से पहले,
और बाद में,
जहाँ प्यारा उत्तराखंड आज है,
जानता है हर पहाड़ का पत्थर,
यही तो एक राज है.

देवप्रयाग का रघुनाथ मंदिर जहाँ,
पत्थर पर ब्राह्मी लिपि में लिखा,
अतीत का राज है,
मूक हैं कहते नहीं,
लेकिन, पहाड़ के पत्थरों में,
आज अदृश्य प्राण है.

सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसु"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
28.5.2009

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