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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, May 28, 2009

त्रिया चरित्र

खेती पाती सभला का बाद, अक्स्स्रर गौ माँ, लोग बाग़ गौ का पंचैत चोकमाँ , क्वी तासम त , क्वी चोपड त, क्वी गप-सपमाँ बिल्म्या रैदा छा ! बाजा बाजा खडा ह्वे की , तमसागेर बणी , खिलड़यु थै अप्णि अप्णि रिया दिंदा थकदा नि छा ....
" अअबे - ब्बै..., तै ना , तै चुलौ---- तै ...... अब्बै ---, तै फेक तै .. हां.....! "
बाजा बाजा उकी हरकतों देखी , तासु थै गुस्स्म फेकी बुल्दान " हम नहीं खेलते .. ये.. इन्ही भी देखता और उन्ही भी ..!"
एक कुणम फजित्यु , जैकी उम्र लगभग ५० का करीबन राइ होली वो , आगै भुव्वडमाँ और दगड आग छो सिकुणु ! वी चक्डैत मंडलिमा , गौकु हि , एक भारी छटियु चक्डैत इन्दुरु भी छौ बैठियुँ ! बातु बातुमा वेंन फज्युतु से बोली " बुवाड़ा जी आपै उम्र क्या होली "?
" कनु ?" क्युओ छै पुछुणू .... फज्युतुल बोली !
" न ना .. इनी सुदी छौ पुछ्णू .." इन्दुरुल फिर पूछी .." फिर भी ६० -६५ त, हवेल्या हि ! "
" ४९सओ पुरु हवैगि , ५०सो लग्यु च " तभी आगै चिंगारी उतडेकी फजित्यु का कच्छा पेट घुसिगे ! चम्म खाडू ह्वेकि वो , दुई हत्थोंन कच्छा थै झड़दा झड़दा बोली '' ह्या पडी बैईइ का ..., फुकेगे छो रै....?
" सुकर च बोडा ... सरकारी भांडा बचिगिनी ....निथर , बोडिल कयाली छो त्यारु भैर निकाल .. इन्दुरुल चुस्सकी लेकी बोली ... !"
ये सुणी सबी हैसण बैठी गिनी ! जनि फजित्यु बैठी इन्दुरल फिर सवाल कारी ...
" अछ बोडजी य बतावा .. आपो ब्यो कयात , २५ ३० साल त हवे गे होला .... "
फजित्यु बोली .."--- हां"
" त तुमुल , कभी , त्रिया चरित्र भी देखी या सूणी "
" न भै .. मिनत नत सूणी अर ना कभी देखी ..." फजित्युल जबाब दे !
" त एक काम करया , घोर जान्द्ये बोडीकु बुलया ... " मिल खाणु तब खाण, जब तू , मिथै , त्रिया चरित्र देखैली !" बस अप्णि बात पर अडि जाण .. क्या बिग्या ...! " खैर .. फजित्यु जनी घोर गे बोडिल बोली ...
" चला , हत खुटा धवा .. रसोई सिलैणी चा ! "
वैथै इन्दुरु का बोल याद ऐनी .." खाणु तब खैनी जब बोड़ी तिरया चरित्र देखैली ! "
चुलै साम बैठी वेल बोली ..... " मिन खाणु तब खाण जब तू मी थै तिरया चरित्र देखैली ... !"
जनि वींल सुणी .. वा खोली सी रैगी , कि , ये बुड्य थै आज क्या होइगी ! कन छुई च यु कनु ?
" वीं बोली ... चला खाणु खा ...! "
फजित्यु , अपणी जिद पर अकडी बैठी फिर बोली .. " पैली मी त्रिया चरित्र देखो तब खोलू खाणु "
वा बोली .. " अछू.... 2.., भोल बतोलू ! अबरी खाणु खेल्या ...!
फजित्यु बोली .." सच ! "!

" --- हां भै हां " -- भोल जरूर बतोलू .. चला खाणु खा !" सियु साब , वैल खाणु खाई अर सिग्या !

नौनी कु ससुरु याने समधी जू गाड़ का छा , वो दिन मनी , खबर सार लिणु आज ही पहुंचा ! गाड़ का पास हुणा से चार पांच माछा लेकी आया ! रामा रूमी हवे ! बोडिल याने सम्धणील २ माछोकु छोल बाणाई अर ३ अलग रखी देनी ! खाण का बाद समधी त गया अपण गौ ! बोड्ल , बोडी कु बोली ..
" भोल मथी डांड का पुगडो कुव्वादु बोतूणु जाण सब सामान धेरिदे ! "

अर हां ... " याद राखी..., भोल मिन तब खाणु खाण , जब तू त्तिराया चरित्र देखैली ! "

बोड़ील बोली '---- अछु अछु .....दिखौलू दिखौलू ! "
वा बिनसिरिम उठी, डाँडा गे , अर बाकी माछो थै वख खडे एग्या ! फजित्यु सुबर उठी ! बल्दु लेकी डाँडा गे ! उ थै औरी भी गौका ह्ल्या छा... हैल लगाणा ! एक पुगडा बौणा का बाद , जनी घाम आन बैठी , बोड़ी क्ल्याऊ रुवाटी लेकी वख पौंची ! जनी वेल पुग्ड्म हैलै सियु लगाई ......, सियु का दगड घप एक माछु भैर ..... वो चिल्लाई " .---. हे बीरू, .. हे रामू .. हे दर्शुनु अरे , म्यारा पुगडओ माछा निकला छी ... माछा ! "
बोडिल सया माछु लुछी लुकाई चदरा पेट ध्रौरि बोली " --- हैल लगावा हैल ! " फजित्यु हैल लगोण लगी ! कुछ देरा बाद गप हैकू माछु भैर !, दिखदै वे , वो बोली ... " ----अरे हैकू ??.." वेल समणी क ह्ल्यौ थै आबाज दे
" ---हे राजू , हे दर्शुनु अरे यख आवदी यखअ ....!"
जब तक वो आंदा ..., वे से पैली बोडिल , फिर वो माछु लुछी लुकै दे ! फजित्यू चिलै चिलै बुनू राई
" -- ऐ म्यारा पुगड़ोमा माँ माछा निकलणा छन माछा ! "
ह्ल्युन हैल छोडी , सीधा वेका पुगडौमा पोची पूछी "---- कखछिन भै ... माछा ???? "
वो कुछ बुलुदु , वे से पैली बोडी बोली " -- अरे .. हुँदा त, मी नि दिखुदु ... , कख छा लगया ! वो राजू से बोली ......" '-- दुयुराजी ..., तुमारा भैजी , सुबरलेकी यख ऐनी , सैद .. हर्पणा लगी गे !"
तभी ..दर्शुनुल बोली .. "--- हे भै सच बुनू छै..? माछा छाया की कुछ औरी ... "
फजित्युलू बोली " -- हां भै हां .. माछा छा माछा "
'-- पर , कख छना ! हम भी त दिखा ! "
तभी बोडिल बोली ''--- बेटा ..., फिर द्याखा ..., सी छन माछा - माछा लगया .. मेरी माना त यू थै , घोर .... ली चला ! रओखली वोखाली करला तब जैकी सैद कखी .....!."
सुऊ , तौन बल्द ख्वाला अर फजित्यु थै पकड़ी घोर लेकी आया ! बोडिल रखोलया बुलाऊ ! वेल सबसे पैली क्न्डली का मोट्टा मोट्टा टैर मगैनी , फजित्यु थै नगु कै अर दे दना दन २... क्न्डलील सडको !
अर हरबेर बुनू .. "---अब वोल ....,, क्या छाया ? "
फजित्यु बोले ' --- माछा छा..., माछा ..... औरी क्या ? "
फिर बुनु " ... माछा छा माछा ... !" फिर दे क्न्ड्ली ., क्न्ड्ली वेकी पीट पर दम्मला उप्डि गैनी ! वो पीडा क मारी जब कररहाण बैठि त , बोडी बोली "--- अब बस कारा .. बाकि भ्वोल दिखला ..1"

रात जब फजित्यु सीण बैठि त बोडी बोली "--- पीडा हुणीच त ,तेल लगे दियू !"

'--हां" लगे दे "

तेल लगाद ल्गाद व बोली .."------ तुमल अभी भी तिररया चरित्र नि द्याख .. कि औरी दिख्न्णै! "
बोड़ा बोली " ---- समझिग्यु ...समझिग्यु // " जर्रा उन्कुवाई लगो तेल ! तेल लगाना बाद कन्दली का उठया दमला बैठण लगी ! वे थै आराम आण लगी !

पराशर गौड़

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