बिश्वास तो करना ही पड़ेगा. इसी को तो समाज में रहना कहते ह
प्रेषक : खुशहाल सिंह रावत मुंबई.
हमारे दादाजी, श्री विजय सिंह कोयराला रावत को खाटली में लगभग पुराने लोग सभी जानते है. उन्हें ' जुवारी' के नाम से ज्यादा जानते है.उनके हाथ में कहते है कानून गो , पटवारी सभी रहते थे व हमारे घर में ए ऊँचे ओहदे वाले हमेशा आते रहते थे. हमारी गाँव में रासन आदि कि दुकान भी थी. बन्दूक, घोड़े तो हमारे दादा जी कि जान थी. और इसी कारण उनकी मौत भी हुई या कहिये गाँव वालों में से किसी ने उनकी हत्या क़ीहम अपने गाँव में re -constructed घर की पूजा करने सपरिवार गए थे. हमने पूजा के साथ साथ देवता भी नचाये यानि जागर ( जगरयुल) भी नचाये.
या कह सकते है अपने कुल देवता/देवी को खुश करने के लिए उनको नचाया या जो कुछ भी कहो. साथ में घरभूत भी नचाये. जयादातर घरभूत हमारे जग्रुएल में नाचे. परन्तु हमारे भाई की घरवाली पर कोई नाच रहा था.वह पहले पहले हमारे घर में नाच रही थी व उसे हमारे घर के पूर्वजो के बारे में ज्यादा पता भी नहीं. था. काफी देर तक पूछने पर भी ज़ब उसने जबाब नहीं दिया कि वह कौन मात लोग आया है या कौन नाच रहा है तो मुझे कुछ गुस्सा सा आ गया. और मैंने उसे नाटक बाज कहने लगा व नाटक बंद करने को कहा. फिर जागरी जो कि उम्र में करीब ८० बरस से भी ज्यादा के होंगे उन्होंने भी काफी कोशिस क़ी आखिर में उन्हें बताना ही पड़ा कि उन पर हमारे पड़- दादा नाच रहे है. जिनका नाम उन्होंने ' गबरू ' बताया व कहा कि उनकी बचपन में किसी ने हत्या कर दी थी.अब वे ही मात लोग आये है हम ने अपने चाचा जो कि हमारे परिवार में सबसे ज्यादा उम्र के है पूछा कि क्या उन्होंने कभी उनका नाम भी सुना तो उन्होंने भी साफ़ मना कर दिया. हम लोग भौचके रह गए. हमने अपने पूरे परिवार के कागजात अभी तक गाँव में रखे है परन्तु हमें ऐसा कोई नाम नहीं मिला.
फिर भी हमने उनके आग्रह पर उन्हें हरिद्वार ले जा कर नहलाया व पिंड दान किये. वापस आकार फिर घर भूत नाचने पर वह नहीं नाचे. वे अपने को
'कोयराला' ख़ानदान के सबसे बुजुर्ग कहलाने लगे थे.
बिस्वास तो करना ही पड़ेगा इसी सहारे तो हमारा समाज बनता है.
खुशहाल सिंह रावत मुंबई.
ग्राम सिन्दुड़ी , खाटली
गढ़वाल , उत्तराखण्ड
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