में भी अपने संग एक कलि और देखना चाहती हूँ, ओ कहते है, एक से भले दो और दो से भले चार,
में बड़ी होई जब फिर मुझे समझ आया, क्या कमी थी मेरी में जो सीचे गये चार ना मुझे मिला ना ऑरों को फिर में अपने खुशियों को तोड़ती गई में अकली खुशी मागती तो और देखते रह जाते,
मुझे मालूम ही नहीं था क्या होगया है, मुझे मालूम ही नहीं था क्या होगया है,
क्या था, कौन था, मुझे कुछ पाता नहीं था, मुझे पूछ गया टीक है, मुझे मालूम नहीं था टिक क्या होता है, सर हिला दिया है उनके सामने ओ समझ वैठे खुश है,
में सोचती गई और दिन बड़ते गये, मेरा सोचना पूरा नहीं होवा और ओ दिन आ गये में भी थोडी खुश होई, फिर देखा और भी तीन थे फिर सोचा में तो आपने दिन गिन रही हूँ, तुम भी गिनो
ना जाने क्या हो गया में समझ ना सकी, अभी तो में खिलती होई कलि हूँ, क्यों मुझे मुरझा रहे हो,
फिर याद आया यही कसूर था मेरा "बेटी"
रचिता: गायत्री दिनक: २६.०२.२००९
----------------------------- लोकतंत्र
मैने देखा है उसे, अधिकारियों द्वारा शोषित होते हुए हर शिकायत पर प्रताड़ित होते हुए फिर भी खुद को वह काम मे व्यस्त रखता रहा।
मैने देखा है उसे, पुलिस से बर्बरतापूर्वक पिटते हुए बदन पर जख्म आंखों से खून बहाते हुए फिर भी वह हर ज़ुर्म को सहता रहा वह नियति समझकर।
मैने देखा है, सियासी झंडों को उसकी छाती मे गते हुए, कभी उसके कफ़न को झंडे की शक्ल लेते हुए मगर वह ख़ामोश रहा, क्योंकि उसे बेजान कर दिया गया था।
ये सब देखकर मै चुप न रह सका, पूछ बैठा कौन हो तुम और क्यों इतने सशक्त होकर भी मजबूर हो खुद को मिटाने के लिए? बोला, मै लोकतंत्र्र हूं पर राजनीति के हाथों मै भी मजबूर हूं।
हेमचन्द्र कुकरेती
विपणन प्रभाग भारत इलेक्टॉनिक्स लि. बलभद्रपुर, कोटद्वार246149 पौड़ी ग़वाल उत्तराखंड
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औंण वाला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर याद करा नौंनी (भ्रूण हत्या)
औंण द्या बाबाजी, मैं बी हीं दुनियाँ मा
खेलण द्या बाबाजी, मैं बी माँ का गोद मा।
जनी भैजी खेलदा, गौं-गल्यों मा
खेलण द्या बाबाजी, मैं बी गौं-गल्यों मा।
जोलु बाबाजी, मैं बी स्कूल
कबी न जोलु क्वी काम भूल
करलु बाबाजी, तुमारी पूरी मदत
रौलु बाबाजी,सदानी तुमारा साथ
बंटौलु हमेशा हर-काम मा हाथ
करलु मेहनत जीवन सफल बंणौंण मा
औंण द्या बाबाजी, मैं बी हीं दुनियाँ मा।
न समझ्या बाबाजी , मैं तें पराया धन
लगाला जु थोड़ा बी मैं पर अफड़ू मन
त करलु तुमारू नौं उज्जवल समाज मा
औंण द्या बाबाजी, मैं बी हीं दुनियाँ मा।।
देवेन्द्र कैरवान (शोध सहायक , आई.आई.टी , मुम्बई) -----------------------------
‘‘यनु हो मेरु उत्तराँचल’’
चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौला दुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला लोगू मा प्यार–मोहब्बत हो जख दुःख–विपदा मा इक दूसरा कू सारु हो जख चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौला दुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला फूलू मा कान्डा न होन जख भूखों गरीबों तैं क्वी न सतौं जख चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौला दुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला इक–दूसरा तै पुछण वाला हो जख गाली–गलौच़ लडै–झगड़ा कू नौवूं न हो जख बेटी–ब्वारी तैं पूरु सम्मान मिलु जख चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौला दुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला पढ़ियां –लिख्यां लोग़ अनपढ़ौं तैं शिक्षा बांटू जख रोजगार की कमी न हो जख बेरोजगार दग्गड़या न भटकू जख चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौला दुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला गौवूं –खोला मा दीदी–भूलि मिलिजुलि काम करु जख सुख–सर्मिधि कू उजालू हो जख चला अपणा उत्तराँचल तैं हम प्यारु बणौला दुनिया मा हम भी अपणी इक पहचाण बणौला
विपिन पंवार "निशान"
----------------------------- मेरु और मेरी जन्मभूमि कु दर्द (गढ़वाली भाषा में कविता)
मन च आज मेरु बोलंण लग्युं जा घर बौडी जा तौं रौत्याली डंडी कांठियों मा
मेरु मुलुक जग्वाल करणु होलू कुजणी कब मैं वख जौलू कब तक मन कें मनौलू
अपणा प्राणों से भी प्रिय छ हम्कैं ई धारा किलै छोड़ी हमुन वु धरती किलै दिनी बिसरा
इं मिट्टी माँ लीनी जन्म यखी पाई हमुन जवानी खाई-पीनी खेली मेली जख करी दे हमुन वु विराणी
हमारा लोई में अभी भी च बसी सुगंध इं मिट्टी की छ हमारी पछाण यखी न मन माँ राणी चैन्दि सबुकी
देखुदु छौं मैं जब बांजा पुंगडा ढल्दा कुडा अर मकान खाड़ जम्युं छ चौक माँ, कन बनी ग्ये हम सब अंजान
याद ओउन्दी अब मैकि अब वु पुराणा गुजरया दिन कन रंदी छाई चैल पैल हर्ची ग्यैन वु अब कखि नी छिंन
याद बौत औंदन वू प्यारा दिन जब होदू थौं
काली चाय मा गुडु कु ठुंगार पूषा का मैना चुला मा बांजा का अंगार
कोदा की रोटी पयाजा कु साग बोडा कु हुक्का अर तार वाली साज
चैता का काफल भादों की मुंगरी जेठा की रोपणी अर टिहरी की सिंगोरी
पुषों कु घाम अषाढ़ मा पाक्या आम हिमाला कु हिंवाल जख छन पवित्र चार धाम
असुज का मैना की धन की कटाई बैसाख का मैना पूंगाडो मा जुताई
बल्दू का खंकार गौडियो कु राम्णु घट मा जैकर रात भरी जगाणु
बुलाणी च डांडी कांठी मन मा उठी ग्ये उलार आवा अपणु मुलुक छ बुलौणु हवे जावा तुम भी तैयार
Vijay Butola -----------------------------
पहाड़ का दर्द कौन करेगा दूर, जिस उत्तराखण्ड को लिया था पहाड़वासियों ने, देखो और पढो इस कविता को, उनके और अपने सपने हो रहे हैं चूर-चूर.........
"छुटदु जाणु छ"
लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू, हाथु सी छुटदु जाणु छ......
बित्याँ बीस सालु बिटि, बारा लाख उत्तराखंडी, पलायन करि-करिक, रोजगार की तलाश मां, देश का महानगरू जथैं, अपणी जवानी दगड़ा लीक, बग्दा पाणी की तरौं, कुजाणि क्यौकु सरक-सरक, प्यारा उत्तराखण्ड त्यागि, आस अर औलाद समेत, कूड़ी पुन्गड़ि पाटळि छोड़ि, कूड़ौं फर द्वार ताळा लगैक, कुल देवतौं से दूर देश, नर्क रूपी नौकरी कन्नौ, दूर भाग्दु जाणु छ.
बलिदानु का बाद बण्युं, प्यारु उत्तराखण्ड राज्य, हाथु सी छुटदु जाणु छ.....
आंकडों का अनुसार बल, राज्य विधान सभा मां, पलायन की परिणति का कारण, पहाड़ की आठ घट्दि सीट, घट्दु पहाड़ कू प्रतिनिधित्व, हम तैं, यनु बताणु छ. लड़ि भिड़िक लिनि थौ जू, हाथु सी छुटदु जाणु छ......
खान्दि बग्त टोटग उताणि, मति देखा मरदु जाणी, बिंगि लेवा हे लठ्याळौं, छौन्दा कू भि होयिं गाणि, अब नि जावा घौर छोड़ि, जख छ, छोया ढ़ुंग्यौं कू पाणी.
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल-२४९१२२ 2.3.2009 को रचित दूरभाष: ९८६८७९५१८७ -----------------------------
कवि तो कवि होता है... सोच लेता है "भौंकुछ" ...तुमारी नजर मां.... पर यू ही होण....जू कि कविता मां लिख्युं छ...अनुभूति का रूप मां....
"अनुभूति"
अपनी कलम से, कालजयी रचनाएँ लिखकर, काल को कैद करने वाला, कवि एक दिन अचानक, गिर पड़ा धरती पर, बेजान होकर.
लेखनी लिखती थी उनके, मन के भाव समझ कर, छूट गई हाथों से, जो कि है बेखबर.
शोक में डूबे परिजन, आँखों में अश्रु की धारा, कवि मित्र अर्थी को उनकी, दे रहे कंधे का सहारा.
शमशान में चिता सजी, धधक उठि जलती ज्वाला, पंचतत्व में विलीन हुए, सूनी हुई "कविशाला"
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल-२४९१२२ 2.3.2009 को रचित दूरभाष: ९८६८७९५१८७ ----------------------------- दोस्तों मैं इस कवि सम्मेलन में दूसरी रचना स्वरुप पुनः एक और अपनी गढ़वाली हास्य कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ | जिसका शीर्षक है दूसरा ब्यो कु विचार|
दूसरा ब्यो कु विचार (गढ़वाली हास्य कविता )
एक दिन दगडियो आई मेरा मन माँ एक भयंकर विचार की बणी जौँ मैं फिर सी ब्योला अर फिर सी साजो मेरी तिबार ब्योली हो मेरी छड़छड़ी बान्द जून सी मुखडी माँ साज सिंगार बीती ग्येन ब्यो का आठ बरस जगणा छ फिर उमंग और उलार
पैली बैठी थोऊ मैं पालंकी पर अब बैठण घोड़ी पकड़ी मूठ तब पैरी थोऊ मैन पिंग्लू धोती कुरता अब की बार सूट बूट बामण रखण जवान दगडा ,बूढया रखण घर माँ दरोलिया रखण काबू माँ न करू जू दारू की हथ्या-लूट
मैन यु सोच्यु च पैली धरी च बंधी कै गिडाक खोळी माँ रुपया दयाणा हजार नि खापौंण दिमाक फेरो का बगत अडूनु मैन मांगण गुन्ठी तोलै ढाई पर डरणु छौं जमाना का हाल देखि नहो कखी हो पिटाई
पैली होई द्वार बाटू ,बहुत ह्वै थोऊ टैम कु घाटू गौं भरी माँ घूमी कें औंण, पुरु कन द्वार बाटू रात भर लगलू मंड़ाण तब खूब झका-झोर कु चतरू दीदा फिर होलू रंगमत घोड़ा रम पीलू जू
तब जौला दुइया जणा घूमणा कें मंसूरी का पहाडू माँ दुइया घुमला खूब बर्फ माँ ठण्ड लागु चाई जिबाडू माँ
ब्यो कु यन बिचार जब मैन अपनी जनानी थैं सुणाई टीपी वीँन झाडू -मुंगरा दौड़ी पिछने-२ जख मैं जाई कन शौक चढी त्वै बुढया पर जरा शर्म नि आई अजौं भी त्वैन जुकुडी माँ ब्यो की आग च लगांई
नि देख दिन माँ सुप्नाया, बोलाणी च जनानी दस बच्चो कु बुबा ह्वै गे कन ह्वै तेरी निखाणी मैं ही छौं तेरी छड़छड़ी बान्द देख मैं पर तांणी अपनी जनानी दगडा माँ किले छ नजर घुमाणी
तब खुल्या मेरा आँखा-कंदुड़ खाई मैन कसम तेरा दगडी रौलू सदानी बार बार जनम जनम
रचनाकर :- विजय सिंह बुटोला
----------------------------- ‘‘देख रहा हूँ मैं’’
आज देख रहा हूँ मैं उन्नति पर उन्नति कर रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं अवन्नति की ओर भी जा रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं समन्दर की गहराईयों तक पहुँच रहे है लोग आज देख रहा हूँ मैं आसमाँ की ऊँचाईयों में उड़ रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं अन्य ग्रहों में जीवन की खोज कर रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं खुले आसमाँ के नीचे भी सो रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहें हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं पानी की बूँद के लिए भी तड़प रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं देश को उन्नति की ओर ले जा रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं देश को कंगाल करने की कोशिश कर रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं प्यार-मोहब्बत, भाईचारे की बात कर रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं पर्दे के पीछे बुराईयों की दुकान चला रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं अपनी संस्कृति, समाज को भूल रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं झूठ को सच्च साबित कर रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं आपस में झगड़ रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं खून की नदियां भी बहा रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं भूख से तड़प रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं सुख की खोज में भाग रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं दुःख को भूल गये हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे जा रहे हैं लोग आज देख रहा हूँ मैं भगवान के घर को भी तोड़ रहे हैं लोग आज लिख रहा है ‘‘निशान’’ कितना बदल गया है इन्सान
विपिन पंवार ‘‘निशान’
----------------------------- मेरा अपना ये अनुभव है कि ईश्वर न ही किसी मंदिर-मस्ज़िद कि बपौती है और न ही किसी पूजा-नमाज़ का मोहताज़. ईश्वर हमारे चारों तरफ मौजूद है, हर तरफ बिखरा पड़ा है...बस हमारे दृष्टि बदलने कि देर है! मैंने ईश्वर को कहाँ - कहाँ महसूस किया है उसी पर यह कविता!
नादां है वो ये जिसने कहा है मंदिर-ओ-मस्ज़िद में ख़ुदा है लाल है फूलों में वही वही पेड़ों में हरा है छाँव के सुकूं में वो वही सूरज में जला है दरिया की रवानी है वो वो पहाड़ों में खडा है बच्चों में खेलता है वही वही पसीनों में बहा है खनक है चूडियों की कहीं कहीं हया में छिपा है वस्ल1 के एहसास में है वही जुदाई में छिपा है बाप के माथे की शिकन मां के होटों की दुआ है आहत2 के नाद में वो वही अनाहत3 में बजा है दैर4-ओ-हरम5 में ही नहीं सब ख़ुदा, सब में ख़ुदा है
-सतीश पन्त
[1.वस्ल : मिलन 2.आहत नाद : सांसारिक ध्वनियाँ (in brief) 3.अनाहत नाद : ॐ, आमीन, अल्लाह (in brief) 4.दैर : मंदिर 5.हरम : मस्ज़िद]
----------------------------- और यह ग़ज़ल जिसका पहला और आखिरी शेर ईश्वर की तलाश को समर्पित है, और दो शेर इंसान की खुद की क्षमताओं की अनभिज्ञताओं पर:
ख़ुद को किया तलाश तो उसका पता मिला दैर-ओ-हरम1 में था ही नहीं वो ख़ुदा मिला
अपने ग़म-ओ-ख़ुशी भी बाहर ढूँढता फिरे हरेक शख्स क्यों ख़ुद से ख़फा मिला
है रास्ता नहीं, न मन्ज़िल का ही पता ख़ुद क़ायनात होके क्या ढूँढता मिला
ऐलान-ए-उपनिषद हो या मंसूर की सदा* बन गया ख़ुदा वो जिसे भी ख़ुदा मिला
- सतीश पन्त
(1.दैर-ओ-हरम: मंदिर व मस्जिद 2.क़ायनात : सृष्टि *ऐलान-ए-उपनिषद here refers to the mahavakya of the upanishads अहम् ब्रह्मास्मि...मैं ही ब्रह्म हूँ... mansoor was a muslim faqir who used to say अनल हक़ ...मैं ही सत्य हूँ...मैं ही अल्लाह हूँ... so ऐलान-ए-उपनिषद = अहम् ब्रह्मास्मि मंसूर की सदा = अनल हक़)
----------------------------- आज अचानक दिल ने दस्तक दी,
आज अचानक दिल ने दस्तक दी, पुरानी यादो को ताज़ा कर एक हवा दी, कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए, क्या सोचा और क्या कर गए? वादियों की गोद में जो बचपन बीता था, शहर की भीड़ में वो आज गुमनाम है, जिनसे बिछड़ने में कभी डर लगता था, आज उन्ही के लिए हम अनजान हैं, अपना प्रदेश छोड़ा , छोड़ी अपनी माटी, उनसे हम दूर हुए, जहाँ से सीखी परिपाटी, आज भावः विभोर मन उदास हो आया है, बीती यादो में आज अपना बचपन याद आया है, याद आता है वो बचपन जब पाटी पर लिखा करते थे, और बात बात पर रूठ कर माटी से लिपटा करते थे, बढ़ते बच्चे जब पड़ने लगे अ आ बाराखडी, फ़िर वही एक उदासी मन में आने लगी , की पढ़ लिखकर जायेंगे कहाँ, और कहाँ करेंगे नौकरी, इसी सोच और पीड़ा ने न जाने कब बड़ा बना दिया, और गाँव की माटी ने परदेश के लिए विदा कर दिया, शहर के हालत भी देखे और देखि यहाँ की ज़िन्दगी, पर रस न आई वो बानगी और बन्दिगी, अब तो बस रह रह कर यही विचार आता है, की कब लौट चले अपने पहाडो पर, जो मेहनत की और पसीना बहाया है यहाँ पर, अपने मुल्क में जाकर उसी को बनाये अपना सहारा I Vivek Patwal
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Syad Tum
Sayad tere bina mere jindage main koie nahi, Eshi ehsaas se jiye jate hain. Tumhi to fal ho mere achaiyeion ka, Eshi viswaas per jiye jate hain. Kuch tum maaf karna, kuch log maaf karenge, Sayad eshi ahsaas per galtiyanaa kiye jate hain. Moot aaye to en galtiyoon se dur hoon, Per tum se dur ho jayenge, eshi ehsaas se dar jate hain. “Tanhanaa“ ki jindage kati tanhanaa, sayad inhi galtiyoon ke karan, Per saath tum ho es dům per hi, Hum hamesaa galtiyanaa kiye jate hain.
Wo, Wo Dil ki gahraiyoon se ejhaar karte hain, Har tesree ko apna payar kahte hain.. Wo (tesra) marta he aapke mohabat ko' Wo har baar nayaa khail samaj kar suru karte hain.....
Humne jab rang deke es muhabaat ke, Dar lagne laga payar se, Ab halat ye hai, Har kinare (konee) main ek pyaar panapta dikta hai, Aaj kahin or, kal kahini or, or apani hi sadi ke din kahini or dikte hain ............
कैन तख खाणु खायी, कैन पकोड़ी और चा, कैन भुटवा कु मजा लिणी, त कैन ठंडी हवा ।
सबुन खायी पेट भर, फ़िर शुरु हुवेगी गौं कु सफ़र ।
चम्बा मा हिमाल देखी , मन और गुदगुदाई , फ़िर पता नि कब औलु यख, सोचण लग्यु भाई ।
टिहरी पहुँची देखी बदल्युँ थौ नजारु, जख तक थौ राजा कु महल, सब जल मा समाई ।
थोड़ी ही देर मा, मेरु गौं भी ऎ ग्यायी, बस सी उतरयुँ मी, और ली जोर की अँगड़ाई ।
पहुँची ग्यों मैं देवभूमी, पहुँची ग्यों मैं स्वर्ग मा पहुँची ग्यों मैं अपड़ा गौं, यख बिटी जाण अब कखी ना ।
नि चांदा भी , जाण पड़लु खैर , फ़िर औलु कन्नु कु तै, मी "अपड़ा गौं की सैर" ।
सन्दीप काला -----------------------------
मेरे अपने
जब मैं सोचता हूँ मेरे अपनों के बारे में
तो उलज जाता हूँ मैं इसी प्रश्न में,
कौन हैं मेरे अपने?
जो अपना लेते हैं मुझे दुःख में भी
या जो लगे रहते हैं मुझे रौंदने में।।
प्रश्न दर प्रश्न मेरे मन में उत्पन्न होते हैं
क्या खून के रिश्ते वाले ही अपने होते हैं?
या होते हैं वे सभी अपने
जो छुपा रखते हैं मुझे हर पल अपनी पलकों में।।
क्या एक ही माता के पेट से जन्मा भाई
अपना होता है?
जो लगा रहता है मुझे हर दम कुरेदने में,
सोचता हूँ कभी
क्या वे मोहल्ले के लोग अपने नहीं हैं?
जो बिछा देते हैं खुद को मेरे रास्ते में ।।
देवेन्द्र कैरवान ( शोध सहायक आई.आई.टी ,मुम्बई)
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प्रिय मित्रो,
अभी अभी मैंने एक और कविता की रचना की है, जिसमे मैंने अपने कवि मन की व्यथा को पहाड़ से हमारे पलायन के प्रभाव को के रूप में प्रस्तुत किया है | आशा है आप को पसंद आयेगी ?
प्रस्तुत है मेरी कविता जिसका शीर्षक है ---------------है धरा तुम्हे पुकार रही |
है धरा तुम्हे पुकार रही
जन्मभूमि निरंतर तुम्हे तुम्हारी है रही पुकार सूने पड़े है खेत-खलिहान खाली है गौं-गुठियार
हैं निर्जन वो गलियाँ जंहा पथिको को थी कभी भरमार राहें जाग रही है बाट जोहे है उन्हें पदचिन्हों का इंतजार
गिने चुने जन ही शेष है सन्नाटा पसरा हुआ है चहूँ और ताक रही है धरती ऐसे मानो की जैसे रुग्ण व्यक्ति ताके भोर
अविरल बहते नदी-नाले भी मुड़ गए अनजान राहों पर जंगल-पहाड़ भी मौन खड़े है आँखे उनकी भी हैं तर
खेतों-खलिहानों में भी अब बाँझपन कर चूका है घर ये इनके वक्षो पर नमी नहीं है ये अशरुओ से तर-तर
फूलो ने भी महकना छोड़ा साथ ही फलों के वृक्ष भी हुए बाँझ ये धरती भी करती है प्रतीक्षा तुम्हारे आने की प्रात: हो या साँझ
घुघूती भी अब नहीं बासती आम की डालियों पर कलरव छोड़ा चिडियों ने जैसे ग्रहण लगा हो इस धरा पर
जंगल और पहाड़ की आँखे लगी है उन राहों पर घसेरियां जहा खुदेड़ गीत लगा याद करती थी अपना प्रियवर
चैत महीने के कोथिगो व् मेलों की न रही वो पहिचान धुल-धूसरित हुई संस्कृति खो गया कही लोककला का मान
काफल-बुरांस के पेड़ अब लाली नहीं फैलाते नहीं हो रहे प्रतीत सोचो तो जरा कभी क्योँ बिसराया हमने पहाड़ क्यों छोड़ी वो प्रीत
हे शैलपुत्रो बुला रही है ये धरती तुम्हे आओ करो इसका पुन: श्रंगार चार दिन के इस जीवन में कभी तो समय निकालो दो इसको अपना प्यार
ये जन्मभूमि हमारी माता है इसका हमसे अटूट नाता है बिसरे तुम उसे जो तुम्हे बरबस बुलाये क्या ये तुमको भाता है ?
जगा इच्छाशक्ति, आओ लौट चले इसकी जीवनदायिनी गोद में यही तो हमारी माता है ले संकल्प करो सृजन इस धरा का अब कर्ज चुकाने का समय शुरू हो जाता है
Written By: Vijay Singh Butola Dated: 04-03-2009 @ 11:00
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अपना देश अपना गांव
बहुत दिनों बाद एहसास हुआ चेहरे पर खुशियों का मन में नई–नई उमंग का बहुत दिनों बाद एहसास हुआ गांव की सोंधी–सोंधी ठंडी हवा का अमृत जैसे साफ़ स्वच्छ जल का बहुत दिनों बाद एहसास हुआ घने जंगलों में पक्षियों के मधुर स्वर का चारों तरफ़ खुला आसमां, उन बर्फ़ीली चोटियों का गांव में अपने बचपने का मां के आंचल में ममता का मां के हाथों बने हुए खाने का बहुत दिनों बाद एहसास हुआ बीते दिनों के हर इक लम्हों का बहुत दिनों बाद एहसास हुआ बगीचे में पेड़ों की ठंडी–ठंडी छांव का उन मीठे–मीठे रसीले फलों का बहुत दिनों बाद एहसास हुआ गांव की मर्मस्पर्शी मिट्टी का बचपन की हर इक जगह का दोस्तों के संग खेलने का बहुत दिनों बाद एहसास हुआ परदेश से देश लौटकर बीते उन हर इक पहलुओं का।
JO KIA PRAN TUMNE MUJHKO KI DHAARAN TUMNE IS PRAVAAHINI KO TIYAG KAR US SAAGAR ME MIL NA JAANA DEKHO KANHI TUM MUJHE BHOOL NA JAANA
TUMHARE HI VISHVAS PAR AUR TUMHAARE UTSAH PAR ME JAATA HU LENE TAARE TUM CHAND ME KHO NA JAANA DEKHO KANHI TUM MUJHE BHOOL NA JAANA
MERI POOJA MERE PUSHP TUM KISI DEV PAR NAA CHADHANA KIYUNKI TUM HEE HO MERE AARADHIA TUM MERE LIYE VARNIYA TUM MUJHKO NA THUKRANA DEKHO KANHI TUM MUJHE BHOOL NA JAANA
Naveen Payaal -----------------------------
PAYA HE TUMHE
ATHAK PARYAS KE AUR BAHUT PARITAP KE ANANTAR PAYA HE TUMHE
JEEVAN BHAR DHUNDA LEKAR DEEP MAN ME TUM MILE RASHMI BAN AAYE SUDHA BAN JEEVAN ME KAI SADIO KE BAAD PAYA HE TUMHE
TUM POONAM TUM JIYOTSNA TUM HEE HO MERE MANTHAN AUR CHAH NAHEE NAVEEN MIL GAYAA SAB JEEVAN ME EK JEEVAN BITAAKAR PURA PAYA HE TUMHE
ATHAK PARYAS KE AUR BAHUT PARITAP KE ANANTAR PAYA HE TUMHE
Naveen Payaal -----------------------------
Nari sakti ko samarpit This poem is dedicated to Kalpana Chawala
"Kalpana"
Har kalpana ki kalpana main dundte hain kalpanawon ko, Or har kalpana se ek naye kalpana janam lete hai, Ek “Kalpana” nai kalpana ki, Or sakar kiya kalpana ko, Apni kalpana se naow kalpana ka adahar diya “ Kalpana” nai, Kal kaya thaa, Aaj kaya hai, Sab kalpana hi to hi hai, Es kalpana ki kalpana main naow sanchar kiya “Kalpana” nai, Ab “Kalpana” ka naam hoga ab sabki kalpanaoow main, Jo jite hain kalpanaoow ke liye, Wo to mare v to sirf apni kalpanaoow ke liye.
Main sochta hoon wo ek kalpana hi thee, Jo aab sirf kalpana ban ka rah gayee, Kaash jo jita hai sirf kalpanaoow ki liye, Wo mare v to kalpanaoow ke liye.
He kudaa us “Kalpana” ki kalpana ko, ab sirf kalpana hi maat bana denaa, Uski kalpana ko saakar karne ko, ab har wakat sakti hamko kalpanaoow main dena.
“ JO PASS THAA, WO DUR HO JAYE TO HAMKO GAAM NAHI, PASS THA MOTI, GUM HO JAYE, TO UMEED HO KAM NAHI, DUND LENGE HUM SAHARA, SAHARA TERA KAM NAHI.......”
जागो उठो म्यरा उत्तराखान्दियो, यो करमु देवी तुमुके पुकारना छ, घर छोड़ी बे प्रदेश भाजी गया, क्या यो धर्तिम तुमर लिजी नौकरी नि छ, आँख खोलिबे देखो, हाथ चले बे देखो, थ्वद मेहनत कबे ले देखो, यो चन्द्र सिंह और मलेथा को जनम भूमि छ, य हथम हाथ धरी बे सुन्ये न देखो, जो धर्तिम कभे आनाजो बोरी पैद हंछि आज ऊँ तुमर उदेखल बंजर ह्वेगी, जो जन्गोऊ में कभे डंगर पलिछी, आज ऊँ कन्क्रीतो शमशान बनी गी, बिन मेहनते ये सड़क बॉर्डर तक नि नहा गे, और बिन मेहनते यो बिजुली पैद नि हगे, को कून्छ की इन पहाडो में रोजगार नि छ, जरा हाथ बड़े बे देखो, सब द्वार खुली छ. जागो उठो म्यरा उत्तराखान्दियो, यो करमु देवी तुमुके पुकारना छ, घर छोड़ी बे प्रदेश भाजी गया, क्या यो धर्तिम तुमर लिजी नौकरी नि छ,
Vivek Patwal
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रफ़्तार
रफ़्तार की भी कुछ अलग ही बात होती है विकास की बात आये तो रफ़्तार "मंत्री" होती है या तो विकास रफ़्तार से होता है या विकास की रफ़्तार धीमी होती है
अभी कुछ दिन पहले एक सज्जन हमसे टकराए रफ़्तार कुछ ज्यादा थी इसलिए क्षमा भी न कह पाए
ए गए हर दिन ये सब तो होता ही है इस शहर की रफ़्तार भी कुछ अजीब सी हो गयी है गावों से पलायन रफ़्तार से हो रहा हैं उन्ही गांवों में सूनापन रफ़्तार से बढ़ रहा है
रफ़्तार से जंगल शहर बन रहे हैं इंसान नमक प्राणी रफ़्तार से नदी नालों को गन्दगी दूषित कर रहे हैं
रफ़्तार से सड़कों पर वाहनों की की जमात बढ़ी है इसी जमात के चलते हर चौराहे पर हमने जिंदगी जीने की कहानी गढ़ी है
आज दुनिया की हर अवाम हैरान है बढती हुई इस रफ़्तार से परेसान है सुनाने में तो आता है के पानी कभी कहानी बन जायेगी बिन पानी के उसी की कहानी जानते हुए हर जिम्मेदार नागरिक आज कहाँ है.
रचनाकार. धीरेन्द्र सिंह चौहान॥ "देवा"
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शौणु भाई जी कु ब्व्ग्ठया !!!
शौणु भाई जी कु ब्व्ग्ठया आज बल बाघ न मारी खुजौण लाग्यां छीन भाई बंध सभी देखा आज सारियों का सारी...
यखनि मिली तख नि मिली बवन लाग्यां छन सभी भाई रुमुक पव्डी गे अर खुज्योरू के वे घर माँ परेशां पुरी कुटुम्दारी ...
शौणु भाई जी की ब्वे भट्याणी घर अवा सभी रात पव्डी ग्यायी मेरा शौणु का बखरा यानि गैन नि के होली हमुन कभी कैकी भल्यारी॥
अब ता ब्व्ग्ठया मिली गे घर भी ल्ये गैनी सची मरयूं पाई। झटपट जगे आग अर सजे गैनी परात। भली करी भाडयायी।
पडोश माँ प्रधान जब तोन सुंणी अपुदु थैलू भी लीक आयी ब्व्ग्ठया देखि और सोची बिचारी तब बीस बाँट लगाई
में थे भी क्या चेनू छो मिन भी दौड़ लगाई एक बाँट उधार करी की चुपचाप अपुडा घर आयी
यन भी होन्दु च दग्द्यों कभी सोचिदी सोचिदी बखरू पकाई प्वेटीगी भरी की टुप स्ये गयों आज इनु बखुरु खाई॥
रचनाकार. धीरेन्द्र सिंह चौहान॥ "देवा" -----------------------------
"उसके जाने के बाद"
उसका गुड्डा आज भी मेरे कमरे की दीवार पर लटकता है, उसे देखने को मन आज भी भटकता है, उसकी चाँदी के पायल की रुन-झुन, आज भी सुनता है मन, भटकता है मन, भटकता है मन. महसूस करता हूँ आज भी अपनी तोंद पर गर्मी उसके गालों की, और, उसके कान पकड़ मेरे, मरोड़-२ कर सो जाने की, याद आती है उसकी, उसकी जिद की, उसके हठ की, उसके गले मैं बांहें डाल झूल जाने की, और, मेरे न चाहने वाली चीजों को दिलवाने की, उसके दोनों होंठ सिकोड़ रूठ जाने की, और, फिर मेरे मनाने की, मुझे ये चाहिए, मुझे वो देना, देना सितारों जड़ा घाघरा और देना चन्द्रहार, मुझे विदा करने के बाद भी योंही करना प्यार, हा! याद आती है, उसकी हर बात बार-बार.
आँगन की मैनाएँ हैं ये बेटियाँ, एक दिन उड़ जाती हैं. बहुत याद आती है, सच बहुत याद आती हैं.
सचमुच अनमोल है विधाता तेरा उपहार, पर प्रभु इतना और कर उपकार, बेटियाँ दे जिनको, दे उनको धन, धान्य और सामर्थ अपार.
मोहन सिंह भैन्सोड़ा बिष्ट, ग्राम-भैन्सोड़ा वाया सोमेश्वर, अलमोड़ा, उत्तराखण्ड निवास:सेक्टर-९/८८६, रामकृष्णा पुरम, नई दिल्ली-1100२२. रचना: स्वरचित
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“शब्दु की कमी”
कविता लिखणू छौं। लिखणूं छौं पर कुछ शब्दु की कमि चा कविता कुछ बांजि लगणीं चा कख छिन शब्द?
कुछ त कमि च! शब्द कख्वे लौं? क्या शब्द हरचि गैनि? ह् वे सक्द।
पर कख हरचिनि शब्द? दबे गे होला कखि!
हांऽ अब याद आणि चा! शब्द दबेणां छिन डंडळयूं, तिबरियूं, कुछ शब्द चौका तीर, कुछ कुलणा पैथर, अर कुछ शब्द दै-ददों दगड़ चलि गैनि।
हांऽ अब आ याद! कुछ शब्द अभि बच्यां छिन! गौं कि कुछ तिबरी अभि भी सजीं छिन मीं ऊं शब्दु खौज्यांदु जु बच्यां छिन फिर नई कविता सजांदु। मि जरा शब्द लयांदु
बहुत समय पहले मैंने अपने मन के भावों को तुकबंध करने की कोशिश की और वही कविता/गीत आज मैं आप पाठकों के सामने रख रहा है. निजी ब्यास्तता के कारण आज मैं तो न तो बोर्ड को अपना समय दे पा रहा हूँ और न ही अपनी कविता के लिए.
तो जनाब एक छोटी सी पेशकश मेरी तरफ से, आशा है कि आप इस कविता के माध्यम से समझ जायेंगे कि मैं क्या सन्देश इस कविता के माध्यम से देना चाहता हूँ .
हाथ जोड़ीक करले पूजा, मुंड झुके दे आज तू कुछ नि होलु ए मनखी, छोड़ी दे घमंड तू II
यखी तेरी माया रोली, धन सगुणी पुंगणी हे मुटठी बोटीक आयी इख, हाथ पसारी जोलु हे II
ना बडू यख ना छोटु कोई, देह सब समान च धर्म सबका अपना अपना, खून सबको लाल च II
पंच तत्त्वौं की काया तेरी, ना कर अभिमान तू इक भी त्त्वैते छोड़ी दयोली, ह्व्वे जालु हे खाक तू II
भूखे की भूख मिटे दे, प्यासे की प्यास तू दुखियारौं को दुख मिटे दे, कमैं ले इ पुन्या तू II
ना कर तू ईश्या द्वेष, वाणी को हराश तू चार घड़ी की सांस तेरी, बांट ले खुशियां तू II
धन्यबाद आपका बन्धु सुभाष काण्डपाल
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meri taraf se bengali mai kavita
प्रतिख्खा
जानी ना कोथाय गिये पौड्बो आमी सुकन पातार मतौ कौबे आकाशे कौबे धूलाये आमी कौरबो विचरण आमी प्रतिख्खा करबो से पलेर जे पल हौबे आमार यात्रार
पूनम चौहान -----------------------------
बोर्ड मा कविता लिखणू छौं अच्छी चा त धन्यवाद पर हां यु कुछ म्यारु ही कर्यूं चा :-)
ईं बात पर एक कविता प्रस्तुत कनु छौं ज्वा कि म्यारा स्वर्गीय पिताजी श्री सुरेन्द्र पाल जी की प्रकाशित कविता संग्रह "चुंग्टि" बिटि चा. "कविता" (रचना - स्वर्गीय श्री सुरेन्द पाल)
एक श्रीमान जि मीं थै पुछण बैठिन् हे भै! कविता क्यांकु ब्वदन? तुम कवि छौ, कविता लिख्दां मी बि बता, कविता कन्कै लिख्दन्?
मिन् बोलि - भुला! न त म्यार् बुबन् कविता लिखि न म्यारा ददा हि कवि छा पर हाँ! वूं बाब्-दादों कै मुख बटि झड्यां उ शब्द जु हर्चान साक्यूं बटि अर् दबे गेनि वूं खंद्वरु पुटग जु कबि नौ खम्भा तिबरि हुदि छै
"Lalit, Yogesh, Hem Pant, M S Mehta, खीमसिंह रावत, Himanshu Pathak and Mukesh Joshi"
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एक कर्णप्रिय गीत :- उत्तराखंड स्वर सम्राट श्री नरेन्द्र सिंह जी (Narendra Singh Negi) मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक
मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२ हैर बण मा बुराँसि का फूल, जब बण आग लगाण होला.. पीता पखों थैं फ्योलिं का फूल, पिन्ग्ला रंग मा रंग्याण होला .. ळाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना-२, होलि धर्ति सजि देखि ऐइ … बसन्त रितु म जैयि… मेर डांडि....
रन्गील फागुन होल्येरोन कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि... कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि.. किर्मिचि केसरि रंग कि बाढ-२, प्रेम क रंगों मा भीजि ऐइ... बसन्त रितु म जैयि…. मेर डांडि....
बिन्सिरि देय्लिओं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत... चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत... मस्त बिग्रैला बैखुं का ठुम्का-२, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ.... बसन्त रितु म जैयि... मेर डंडि....
सैणा दमला र चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि... खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि.. वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बच्पन, -२ ऊक्रि सक्लि त ऊक्रि कि लैयि... बसन्त रितु म जैयि...
मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२ -------------------------------------
बेटी ब्वारी फ़िल्म का ……
पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे.. मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ.. तन मा क्यफ़णि सी क्यफ़णि झणि क्यँन हूंद मन मा कुतगली सी कुतगाली से झणि कु लगांद कुछ ह्ववे गे मी थे, कुछ ह्ववे गे मी थे ह्वाई क्याच…ह्वाई क्याच समझ मा नि आई…. मन आपदा बस मा नि राई.. ….हो. हो हो.. मन आपदा बस मा नि राई तेरी जीकुड़ी धक धक धक धक़दीयाट के कु कनि न…….. तेरी आंखि रक रक रक रक्रियट केन कनि न बैध बुला ज़रा, दारू दवे करा.. सदनी कु….सदनी कु रोग लगी ग्याई.. मन आपडा बस मा नि राई….हो. हो हो.. मन आपदा बस मा नि राई. मन मा बनबनी का बनबनी का फूल खिलिया न… सुपीन्या बन बनी का बन बनी का रंगों मा रंगीया न.. सुपीन्यो का रंग मा मायादार संग मा.. धरती-आ.. धरती आकाश रंगी ग्याई … मन आप डा बस मा नि राई.. हो हो…. पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ.. --------------------------------------------------------------------
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण प्राप्ति के संघर्ष के दौरान लोगों के दिलों में एक आदर्श राज्य का सपना था. राज्य की प्राप्ति के लिये लगभग 40 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किये. अन्ततः राज्य तो बन गया, लेकिन 7 साल बीतने पर भी आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य एक सपना ही बना हुआ है.शराब के ठेकेदारों, भू माफियाओं और एन.जी ओ. के नाम पर चल रहे करोड़ों के व्यवसाय के बीच आम उत्तराखण्डी मानस ठगा सा महसूस कर रहा है.सपना देखा गया था ऐसे राज्य का जिसमें चारों ओर खुशहाली हो. समाज के हर वर्ग की अपनी अपेक्षाएं थीं. नरेन्द्र सिंह नेगी जी की इस कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की आक्षांकाएं स्पष्ट होती हैं. भगवान से यही प्रार्थना है कि राज्य के नीतिनिर्धारकों के कानों तक नेगी जी का यह गीत पहुँचे, और वो हमारे सपनों का राज्य बनाने के लिये ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से काम करें.
बोला भै-बन्धू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् हे उत्तराखण्ड्यूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् जात न पाँत हो, राग न रीस हो छोटू न बडू हो, भूख न तीस हो मनख्यूंमा हो मनख्यात, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला बेटि-ब्वारयूँ तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला माँ-बैण्यूं तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् घास-लखडा हों बोण अपड़ा हों परदेस क्वी ना जौउ सब्बि दगड़ा हों जिकुड़ी ना हो उदास, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला बोड़ाजी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला ककाजी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् कूलूमा पाणि हो खेतू हैरयाली हो बाग-बग्वान-फल फूलूकी डाली हो मेहनति हों सब्बि लोग, यनूं उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला भुलुऔं तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला नौल्याळू तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् शिक्षा हो दिक्षा हो जख रोजगार हो क्वै भैजी भुला न बैठ्यूं बेकार हो खाना कमाणा हो लोग यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला परमुख जी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् बोला परधान जी तुमथैं कनू उत्तराखण्ड चयेणू छ् छोटा छोटा उद्योग जख घर-घरूँमा हों घूस न रिश्वत जख दफ्तरूंमा हो गौ-गौंकू होऊ विकास यनू उत्तराखण्ड चयेणू छ्!!
नेगी जी सैकडों गानों को अपनी आवाज दे चुके हैं. लेकिन उनका यह गाना अपने आप में अनूठा है. एक आदमी अपनी बिमारी का इलाज कराने डाक्टर के पास पहुंच गया है. बिमारी के लक्षण बताने के साथ ही वह यह भी बताना नहीं भूलता कि वह इसके इलाज के लिये वैद्य से लेकर देवपूजा तक सब उपाय अपना कर हार चुका है और अब डाक्टर के हाथ से ही उसका इलाज होना है.लेकिन मरीज जी चाहते हैं कि इलाज शुरु करने से पहले डाक्टर उनका मिजाज समझ ले. वो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि चाय, तम्बाकू और मांसाहार नहीं छोड पायेंगे और दलिया वगैरा खाना उनके वश की बात नहीं है. गोलियां, कैप्सूल, इंजेक्शन और ग्लूकोज वाला इलाज भी वो नहीं करवायेंगे. उनकी पाचन शक्ति ठीक नहीं है लेकिन वो बिना खाये भी रह नहीं पाते हैं.दवाई के स्वाद बारे में उन्हें पहले से ही अहसास है कि डॉक्टर मीठी दवाई तो देगा ही नही, लेकिन डॉक्टर को वो खुले शब्दों में कहते हैं कि कड़वी दवाई वो पियेंगे ही नही..इसके साथ ही वह बार-बार डॉक्टर से यह भी कहते रहते हैं कि मेरा इलाज अब तुम्हारे हाथों ही होना है…सामान्य आदमी के मनोविज्ञान को दर्शाने वाला यह गाना लगता तो एक व्यंग की तरह है, लेकिन असल में यह एक कड़वी सच्चाई को उजागर करता है.. गाने के अंत में मरीज अपने रोग का कारण स्वयम ही बताता है… असल में वह इस बात से व्यथित है कि उसके मरने के बाद सारे रिश्तेदार और संपत्ति छोड़कर उसे जाना पड़ेगा…
परसी बटि लगातार, बार-बार कू बुखार, चड्यू छ रे डाग्टार, मर्दु छो उतार-तार-2 कुछ ना कुछ त कर जतन तेरे हाथ छ बच नै मन-2 जै कुछ कन आब तिने कन, तिने कन, तिने कन परसी बटि लगातार………………. बैध धामि हारि गैनि, खीसा बटुवा झाडि गैनि-2 मेरि मारि खाडु कचैरि, खबेस पूजि देवता नचे हरक फरक कुछ नि पडि-2 एक जूगु तक नि छडि झूट त्वै में किले ब्वन, तेरे हाथ छ बचनै मन, जै कुछ कन आब तिने कन, तिने कन, तिने कन परसी बटि लगातार………………. तब करि इलाज मेरु समझि ले मिजाज मेरू-2 चा कु ढब्ज टुटदु नि, तंबाकु मैथे छुटदु नि दलिया खिचडि खै नि सकदु-2 शिकरि बिना रै नि सकदु झूट त्वै में किले ब्वन, तेरे हाथ छ बचनै मन, जै कुछ कन आब तिने कन, तिने कन, तिने कन परसी बटि लगातार………………. सफेद गोलि खपदि नी, लाल पिंगलि पचदि नी-2 ग्लुकोज शीशि चडदि नी, पिसी पुडिया लडदि नी कैप्पसूल खै नि सकदु-2 इंजक्शन मैं सै नि सकदु झूट त्वै में किले ब्वन, तेरे हाथ छ बचनै मन, जै कुछ कन आब तिने कन, तिने कन, तिने कन परसी बटि लगातार………………. खान्दु छौं पचै नि सकदुं, बिना खाया मि रै नि सकदुं-2 उन्द, उब्ब बगत-बगत, गरम-ठण्ड मैं नि खबद मिठि दवै तैलें दैणि नी, कडि दवै मिल पैणि नि झूट त्वै में किले ब्वन, तेरे हाथ छ बचनै मन, जै कुछ कन आब तिने कन, तिने कन, तिने कन परसी बटि लगातार………………. नाती-नातिना माया ममता, जर जजैता फैलि संगदा, कूडि-पुंगदि गौरु भैंसा, यख्खि छुट्दा रुप्या-पैसा मन को भैम त्वै बतांदु, डाग्टर मैं बोल नि चांदु झूट त्वै में किले ब्वन, तेरे हाथ छ बचनै मन, जै कुछ कन आब तिने कन, तिने कन, तिने कन परसी बटि लगातार……………….
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सुतरा की दौन्ली
सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली बल सुतरा की दौन्ली ch.. मुखडी बताई दे छोरी, मुखडी बथई छोरी गोरी छै की सौन्ली गोरी छै की सौन्ली मेरा जोग जानी, मेरा जोग जानी जोग जानी, मेरा जोग जानी-२(ch..) नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो बल नथुली को मुंगो ch.. तू कखन आई छोरा छोंदाडा सी धुंगो, छोंदाडा सी धुंगो मेरा जोग जानी मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch. डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद बल डाली काट्या फेद ch.. जाखी लायी माया मिन, जाखी लायी माया मिन तखी नाडी भेद तखी नाडी भेद मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. मटखानी माटू बल मटखानी माटू बल मटखानी माटू मटखानी माटू बल मटखानी माटू बल मटखानी माटू ch.. कै बैरी न बताई त्वेयी कै बैरी न बताई त्वेयी मेरा गों कु बाठो मेरा गों कु बाठो मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो बल भण्डार को तालो ch.. ससे ससे मारो दिल ससे ससे मारो दिल दुधी को सी बालो दुधी को सी बालो मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. छातकायो रुन्वा बल छातकायो रुन्वा बल छातकायो रुन्वा छातकायो रुन्वा बल छातकायो रुन्वा बल छातकायो रुन्वा ch.. सदानी पितौन्या हवे तू सदानी पितौन्या हवे तू ओबरौ सी धुंवा ओबरौ सी धुंवा मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. लाठी लायी मुंद बल लाठी लायी मुंद बल लाठी लायी मुंद लाठी लायी मुंद बल लाठी लायी मुंद बल लाठी लायी मुंद मैन फाँस खान छोरी मैन फाँस खान छोरी तेरी धौंपेली उन्द तेरी धौंपेली उन्द मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. आगि को अगेलो बल आगि को अगेलो बल आगि को अगेलो आगि को अगेलो बल आगि… बल आगि को… ch.. आन्गास थेकुली लगौन्दी आन्गास थेकुली लगौन्दी कैंयी मौकू ह्वेलु कैंयी मौकू ह्वेलु मेरा जोग जानी जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch.. जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch. जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch. जोग जानी मेरा जोग जानी-२ ch. ------------------------------------------------------------------- ऐजदी भग्यानी,
चिठ्युं का आखर अब ज्यू नि बेल मोंदा, बुसील्या रैबार तेरा आस नी बंधौन्दा -२ ऐजदी भग्यानी, ऐजदी भग्यानी -२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ रांका बाल बाली काली रात नि ब्याणी, मेरी रात नि ब्याणी । रात नि ब्याणी, मेरी रात नि ब्याणी । उंसी का बुंदुन चुची तीस नि जाणी मेरी तीस नि जाणी । तीस नि जाणी मेरी तीस नि जाणी । पंद्रह पचिस्या दिन सदानि नि रौंदा -२ ऐजदी भग्यानी अर..र..र..र..र.र..र..रा.. ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ रुड्युं का घामुन खैरया आंसूनी सुखदा, भगी आंसूनी सुखदा । आंसूनी सुखदा, भगी आंसूनी सुखद । जेट की बरखा न पाडु छोयां नी फ़ुटदा भगी छोरि छोयां नी फ़ुटदा । छोयां नी फ़ुटदा छोरि छोयां नी फ़ुटदा । बारमास फ़ूल खिल्यां डाल्युं मां नि रौंदा-२ ऐजदी भग्यानी छांटो रे छाटो रे छांटो छाटो.. ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ ऐजदी भग्यानी ईं ज्वानि का छौन्दा-२ आस को आसरो तेरी खुद ज्यूणो सारो, भगी खुद ज्यूणो सारो । खुद ज्यूणो सारो, भगी खुद ज्यूणो सारो । जथा हिटूं त्वे जथैईं बाटु फारु-फ़ारु, चुची बाटु फारु-फ़ारु । बाटु फारु-फ़ारु, चुची बाटु फारु-फ़ ------------------------------------------------------------------- न उकाल न उन्दार
न उकाल न उन्दार सीधू सैणु धार धार गौ कू बाटू मेरा गौ कू बाटू ऐ जाणू कभी मठु माठु मठु माठु भला लोग भलु समाज गोऊ पिठाई कू रिवाज खोली खोलियो म गणेश मोरी नारेयण बिराजे मेरा गोऊ मा देवी दय्बतो का थान धरम करम पुण्य दान छोटू बडो सबो मान पोणु दय्बता समान मेरा गोऊ मा बन खेती हो खल्याँ मिल बाटी होंदी धानं कुई फोजी कोई किसान एक जि इकि प्राण मेरा गोऊ मा सेरा ओखाड्यु मा नाज वन हरयाली कु राज बाडी सगोड्यु मा साग जख तक तारकजी मेरा गोऊ मा-2 नोला मागरियो को पानी छ्खी अमृत जनि लेनी पेनी पीनी खानि राखी मन मा न सयानी मेरा गोऊ मा गौड़ी भैस्यु का खरग घ्यु दूधो का छरग म्यारो रोतेलो मुलुक मकु एखि छ स्वर्ग मेरा गोऊ मा कोथीग बिरेना की देर बेटी ब्वारी कोथिगेर दानं नचाद गितेर जवान माया का स्वदेर मेरा गौ मा काफल बुरांश का बोण काकू हिलाश की धोन् मीठी बोली मीठी भाषा लिजा ऍच समलोंण मेरा गौ
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गोपाल बाबु गोस्वामी जी यह गाना ! एक सेना का जवान जो अपनी दो महीने कि छुट्टी काट कर घर से जाता है और अपने पत्नी कि कैसे समझाता है ! देखिये !ओह मेरी कमला तो रोये ना
ओह सुवा घर उना में चम् ( जल्दी ) ओह सुवा जाण छो जरुर ओह सुवा आंस खेडू तू झन तख - तख न कर सुवा ना घुरायो आँख तेरी मुखडी सुवा मेरी कलेजी काख यो सार डानो मा ओह सुवा झन रो तू झनओह मेरी कमला तो रोये ना ओह सुवा घर उना में चम् ( जल्दी ) ओह सुवा जाण छो जरुर ओह सुवा आंस खेडू तू झनतेरी हाथो घर की लाज, मेरी हाथ देश कि दिना रिये राजी खुशी, अपुन घर की बाटा घाटा मे, ओह सुवा झन रोये तो झन ओह मेरी कमला तो रोये ना ओह सुवा घर उना में चम् ( जल्दी ) ओह सुवा जाण छो जरुर ओह सुवा आंस खेडू तू झनद्वी महीना छुट्टी सुवा, जब उना घर देवी का मन्दिर हम चदूना छतर तू लागी रे ये काम मा ओह सुवा घर उना चामओह मेरी कमला तो रोये ना ओह सुवा घर उना में चम् ( जल्दी ) ओह सुवा जाण छो जरुर ओह सुवा आंस खेडू तू झनओह मेरी कमला तो रोये ना ओह सुवा घर उना में चम् ( जल्दी ) ओह सुवा जाण छो जरुर ओह सुवा आंस खेडू तू झन
------------------------------------------------- गोपाल बाबु गोस्वामी के यह गीत जिसमे एक आदमी अपनी पत्नी की सुन्दरता की बडाई करता और उसे अभिनेत्री हेमा मालिनी से तुलना करता करता है! कहा जाता है इस गाने में हेमा मालिनी ने गोस्वामी जी के लिए मुकुदामा किया था !
छैला ओह मेरी छबेली ओह मेरी हेमा मालिनी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२ छैला ओह मेरी छबेली ओह मेरी हेमा मालिनी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२ घरवे आज आगे, आकाश जूना रूप गगरी जसी यो सिया बाना फर -२ निशान जसी, लथ की थान जसी रसली आम जसी, मिश्री डयी डयी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२............ छैला ओह मेरी छबेली ओह मेरी हेमा मालिनी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२ हाई रे हिट्नो तेरो हाई रे मिजाता कमर तेरी हाई रे लटाका तू हाई पलँग जसी, दाती दाती आखोडा जसी चमकी रे सुवा मेरी कांस की थाय - २ आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२............ छैला ओह मेरी छबेली ओह मेरी हेमा मालिनी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२ खिल रे गुलाब जसी, सोलवा साल में खिल रे कडुवा जसी, भरी जवानी में चंदा चकोर जसी हाई रे कात्कोरा मेरी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२............ छैला ओह मेरी छबेली ओह मेरी हेमा मालिनी आँख तेरी कायी - २ नशीली हाई .२
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अहा रे ज़माना, ओहो रे जमाना
अहा रे ज़माना, ओहो रे जमाना त्वील आपुन रंग में रंगा, कि बुढा कि ज्वाना
आहा रे, ओहो रे, आहा रे जमाना आहा रे जमाना..
सबु है बे ठुल है गो दुनी में जी पैस सबु है बे ठुल है गो दुनी में जी पैस
पैसा की जागर लगे रे छे नाच रई मेंस पैसा की जागर लगे रे छे नाच रई मेंस
ने के ईमान रोय, ने के ईमान रोय, ने कैकी जुबान
अहा रे ज़माना, ओहो रे जमाना त्वील आपुन रंग में रंगा, कि बुढा कि ज्वाना
बिकास को पैस बगी जानी छू थ्येक में बिकास को पैस बगी जानी छू थ्येक में
बची कुची दफ्तरों में हजम बची कुची दफ्तरों में हजम
बाकर है गयी चार टांग गों को छो पधाना
अहा रे ज़माना, ओहो रे जमाना त्वील आपुन रंग में रंगा, कि बुढा कि ज्वाना
सबु की जिंदगी है गये कि हाई फाई सबु की जिंदगी है गये कि हाई फाई
माथ माथ खानि सब दूध की पराई माथ माथ खानि सब दूध की पराई
साच घटी गये भय चली रे साच घटी गये भय चली रे झूठो की दुकान...
अहा रे ज़माना, ओहो रे जमाना त्वील आपुन रंग में रंगा, कि बुढा कि ज्वाना
नेगी जी ने इस गीत में प्यार का वर्णन किया है की किसकी माया ज्यादा है नेगी जी के इन बोलों मैं ओ मिठास है जिसको सुनकर ,दो दिलों की तार झनझनाते है , यही है दो दिलों की दास्तान ,इन बोलों को अपने सुरीली आवाज दी है नरेंद्र सिंह नेगी और रेखा धस्माना ने
हे गंगा जी की औत हे गंगा जी की औत , तराजू न तौली लेण ,कैकी माया भौत तराजू म तौली लेण हो
हे झंगौरा की घाण, जैकी माया घनघोर अंखियों मा पछाण, जैकी माया घनाघौर हो
हे सड़कों का घूमा ,हे सड़कों का घूमा , सदानी नि रेंदू सुवा , सदानी नि रेंदू सुवाजवानी की धुमा , सदानी नि रेंदुं सुवा हो
भैरा रींगी भैराक भैरा रींगी भैराक तरूणी उमर सुवा ,बथोंसी हराक, तरूणी उमर सुवा हो हे घुघूती कु घोल , घुघूती कु घोला , मनखी माटु हेवे जांदू रही जांदा बोल , मनखी माटु हेवे जांदू हो हे गौडी कु मखानम हे गौडी कु मखान दुनिया न मरी जाण दुनिया न मरी जाण, क्या लिजाण यखान, दुनिया न मरी जाण हो
हे गंगाजी की औन्त , कैकी माया घनाघौर, तराजू म तौली लेन कैकी माया भौत तराजू म तौली लेन... हो
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नेगी जी ने इस गीत में एक बुजुर्ग के मन के दशा का वर्णन किया है जो अपने बेटे को चिठ्ठी के द्वारा ये संदेश भेज रहा है .........
अबारी दाँ तू लम्बी छुट्टी लेकी आई अबारी दाँ तू लम्बी छुट्टी लेकी आई ऐगे बगत अखीर टेहरी डूबाण लग्यु चा बेटा टेहरी डूबाण लग्यु चा बेटा डाम का खातिर अबारी दाँ तू लम्बी छूटी लेकी आई
भेंटी जा , यूं गौला ग्विनडो ज्यू मा , खेल की सयाणु हवे तू -2 गवाया लगेनी , जे डैनडेली , जे चौक , जो बाटों आनु जानू रे तू जो बाटों आणु जाणु रे तू
कखन द्येखन लाठायाला ट्वेन , जन्म भूमि या फ़िर टेहरी डूबाण लग्यु चा बेटा............ डाम का खातिर
लहसन प्याजे की बाडी सगोडी , सेरा दोख्री फुंगुडी -2 डूबी जाली पानी मा भोल , बाब दादों की कूड़ी बाब दादों की कूड़ी
आंखयों मा रींगनी राली सदानी , हमारी तीबारी सतीर टेहरी डूबाण लग्यु चा बेटा डाम का खातिर
पितृ ओ कु बसायुं गौं , सैंत्युं पालयुं बाण -2 धारा मंगरा , गोठ्यार, चौक , कन कवे की छुडन कन कवे की छुडन कंठ भोरिक आंदु उमाल कंठ भोरिक आंदु उमाल , औ बंधे जा धीर टेहरी डुबन लग्यु च बेटा , डाम का खातिर टेहरी डुबन ...
हे नागराज , हे भैरों तुम्हारू , हमुं क्या जी ख्वायी -2 हे बोलांदा , बदरी त्वेना , कख मूक लुकाई कख मूक लुकाई
हे विधाता कन रूठी नी हम्कू , देब्तों का मन्दिर टेहरी डुबन लग्यु च बेटा , डाम का खातिर टेहरी डुबन ...............................
राज्जा को दरबार , घंटाघर , आमों का बागवान -2 कन डूबलों यो टेहरी बाजार , सिंघोरियुं की दूकान सिंघूरियों की दूकान सम्लोंया रह जाली भोला , साखीयो पुरानी जागीर टेहरी डुबन लग्यु च बेटा , डाम का खातिर
अबारी डान तू लम्बी छूटी लेकी आई , ऐगी बगत अखीर टेहरी डुबन लग्यु च बेटा , डाम का खातिर डाम का खातिर डाम का खातिर डाम का खातीर
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हाथन हुसुकि पिलायी - उत्तराखण्ड के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर नेगी जी ने मजाकिये लहजे में गहरी चोट की है. चुनावों में पैसे और शराब बांट कर वोट बटोरने वाले नेताओं को निशाना बनाया गया है. गाने के अन्त में पूर्व मुख्यमन्त्री तिवारी जी व वर्तमान मुख्यमन्त्री खण्डूरी जी के Look-alike दिखाते हुए दोनों की कार्यप्रणाली पर भी नेगी जी ने अपने विचार रखे हैं इस साल चुनावो में मजे ही मजे
हाथन हुसुकि पिलायी
हाथ न whisky पिलाई, फूल न पिलायो रम छोटा दल, निर्दलीय दिदो न कच्ची मा टरकाया हम ऐसु चुनुओ मा मजा ही मजा हो हो हो हो हो ऐसु चुनुओ मा मजा ही मजा दारू भी रूपया भी ठम-ठम हाथ ..........................................................
सुबेरा पैक पे घड़ी दगडी, दिन का पैक साईकिल मा चडी बियाखुन कुर्सीम टम-टम पड़ी रात म हाथी मा बैठी की तड़ी ऐसु चुनुओ मा ठाठ ही ठाठ हो हो हो हो हो ऐसु चुनुओ मा ठाठ ही ठाठ प्रत्याशी पैदल अर घोड़ा मा हम हाथ ..........................................
आज ये दल मा, भोल वे दल मा दल बदलिन नेतौन हर पल मा हमरी भी दारू की brand बदलिन कभी soda coke मा कभी गंगा जल मा ऐसु चुनौ मा ठाठ ही ठाठ हो हो हो .....हो ऐसु चुनौ मा ऐस ही ऐस देशी विदेशी local हजम हाथ ..........................................
मुर्गो की टांग च बखरो की रान च हाथ मा सिगरेट मुख मा पान च जुगराज रया मेरा लोकतन्त्र तेरा प्रताप गरीबो की शान च पहली नि छो पता अब चलिगे हो हो हो हो हो पहली नि छो पता अब चलिगे Vote की चोट मा कथगा दम हाथ ..........................................
हवेगे चुनोऊ सरकार बणीगे क्वी मवशी बणी क्वी उजड़ी गे अब नि दिखेणा क्वी ल्योण वाला खाली ह्वे बोतल नशा उडिगे चिफला का राज कै मौज मरेन हो हो हो हो हो चिफला का राज कै मौज मरेन जुंगो का राज मा ठम -ठम
हाथ न whisky पिलाई, फूल न पिलायो रम छोटा दल, निर्दलीय दिदो न कच्ची मा टरकाया हम ऐसु चुनुओ मा मजा ही मज़ा
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चदरी यो चदरी - पारम्परिक लोकगीत है, गांव के ग्वालों के साथ एक महिला गाय चराते हुए अपनी चादर सुखाने को डालती है. तेज हवा से सूखती हुई चादर उङ जाती है. इसी पर गाय चराने वाले लङके हंसी-मजाक करते हैं.
चदरी यो चदरी
चदरी यो चदरी तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां कनी भली छै चदरी तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां -२ जान्दरी रूणाई बल जन्दरी रूणाई पल्या खोला की झुप्ली गए डांडा की वणाई डांडा की वणाई.......तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां चदरी यो ..............................................
झंगोरे की घाण बल झंगोरे की घाण धार ऐच बैठी झुपली चदरी सुखाण चदरी सुखाण.......तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां चदरी यो ..............................................
किन्गोडा का कांडा बल किन्गोडा का कांडा -२ चदरी उडी -उडी पोहुची खैरालिंगा का डांडा खैरालिंगा का डांडा ..............तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां चदरी यो ..............................................
कान्गुला की घांघी बल कान्गुला की घांघी ढाई गजे की चदरी उडी तेरी मुंडली रेगी नांगी तेरी मुंडली रेगी नांगी.........तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां चदरी यो ..............................................
पाली पोडी सेड बल पाली पोडी सेड चदरी का किनारा झुपली बुखणो की छै गेड-2 बुखणो की छै गेड...........तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां चदरी यो ..............................................
बाखरी का खुर बल बखरी का खुर पैतु जन चलिगे चदरी झुपली का सैसुर झुपली का सैसुर ................... तेरी चदरी फ्वं फ्वां फ्वां चदरी यो ..............................................
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एक युगल गीत फ़िल्म - घस्यारी का स्वर दिया है नरेंद्र सिंह नेगी और शशि जोशी ने
ऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे ! तेरु गोंउ गौला अब छुटी जाण तिन भी मेरी माया अब भूली जाण -2 भूली जाण ...भूली जाण ...भूली जाणssssssssss
माया की ज्योति जगीं बुझी जाण सुपन्यो की माला अब टूटी जाण -2 टूटी जाण .. टूटी जाण ...टूटी जाणssssssssssssss
तेरु गैल -छैल मैथे प्यारु लगदु छो तेरु घोर -वोण मैथे न्यारु लगदु छो -2 वो हेसणु -हंसाणु वो नाचणु -नचाणु सज -धजी की आणु तेरु प्यारु लगदु छो ऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !
आँखी यू न बचियाणु तेरु कनु कै भूली जों छवी बथा लगाणु तेरु कन कै बिसरी जो वो रूठणु- रुसाणु वो सुपनियु मा आणु गुस्सा मा मनाणु तेरु कनु कै भूली जो ऐजा -ऐजा ऐजा हे ,न जा नजा नजा हे !
तेरा खातिर कनी- कनी गाणी करी छै अब क्या बतोऊ क्या -क्या स्याणी करी छै
रोलूं बाटी औलू, धारा धारी जौलूं --------------------------------
हीरा सिह राणा जी यह गीत जो की रंगीली बिंदी एल्बम से है पहाड़ के ब्यथा पर यह गाना
घाम गयो धारा मा , ब्याखुली को तार मा ..
रुमझुम बिनाई बाजी , जब हरिया श्यार मा. म्यार ही भरी आयी , म्यार ही भरी आयी
नान गया स्कूल मा .. इज बीजू का कानी मा .. लेखी ननु ले पाती ... अपन अपन बाटी .. काके भागम कलम चली , काले खानिछा माती .. म्यार ही भरी आयी , म्यार ही भरी आयी
गया घसियार श्यार मा , ज्योद दठुला हाती मा , शुर मुरूली बाजी... रोल गढ़यारा गाजी .. रुमझुम बिनाई बाजी , जब हरिया श्यार मा. म्यार ही भरी आयी , म्यार ही भरी आयी
घाम गयो धारा मा , ब्याखुली को तार मा .. -------------------------------
याद औंदी तेरी मन मा ज्यू नि लगदु काम कन मा, याद औंदी तेरी मन मा ज्यू नि लगदु काम कन मा,
माया का सुपिनिया आंख्युं मा, बिंगदुं नि छौं सारी रात्यूं मा ।
मेरा भी हाल तनी छन, मेरा भी हाल तनी छन,
माया की मुँदंड़ी मेरी आंगुली मा पैरीं च, माया की मुँदंड़ी मेरी आंगुली मा पैरीं च ।
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च
तेरी दिनि समोण सची मेरी खिसा मा रखीं च ।
परदेश मा बिसरी ना जै रण-सेण मा नौ लेन्दो रै, परदेश मा बिसरी ना जै रण-सेण मा नौ लेन्दो रै
सेणी खाणी हो या काम काज बडुली लायी खुटियुं पराज ।
मेरी पराणी छै तू सची, मेरी पराणी छै तू सची ,
तेरी गौली मा हाथ धरी मेरी कसम करीं च,
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च ।
तेरी दिनि समोण सची मेरी खिसा मा रखीं च ।
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च ।
रंग ढंग अर ढाल चाल सानुन करदी मालामाल, रंग ढंग अर ढाल चाल सानुन करदी मालामाल,
मुल हैसुणु मिजाज मारन्दी, स्वाणी मुखड़ी मन मा दिखेंदी
तेरी छुँयुं सुणीक सची, तेरी छुँयुं सुणीक सची
मेरी जिकुड़ी मा हे लठयाला कत-मत सी लगीं च
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च ।
तेरी दिनि समोण सची मेरी खिसा मा रखीं च ।
मेरा बिलोज मा खिसा सिल्युं च, वैपर तेरु ही फ़ोटु धरयुं च, हाँ मेरा बिलोज मा खिसा सिल्युं च, वैपर तेरु ही फ़ोटु धरयुं च
पली माया जिकुरी क घौर तू ही भँवर तू ही चितचोर
मन भरेक ऐगी मेरु, मन भरेक ऐगी मेरु
यकुली ब्यकुली माया सुवा तेरी खुद मैं लगी च
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च ।
तेरी दिनि समोण सची मेरी खिसा मा रखीं च ।
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च ।
तेरी दिनि समोण सची मेरी खिसा मा रखीं च ।
तेरी दिनि रुमाल सुवा मेरी सिराणा धरीं च ।
मेरी खिसा मा रखीं च , मेरी सिराणा धरीं च ।
मेरी खिसा मा रखीं च , मेरी सिराणा धरीं च । ---------------------------------------
एक बहुत ही प्यारा गीत जो श्री नरेंदर सिंह नेगी जी ने गाया है. एक नारी की १२ महीनों की आत्म ब्यथा को इस गीत के माध्यम से बहुत मार्मिक ढंग में वर्णित किया गया है. जरा गौर फरमाए इन शब्दों पर
बारा मैनो की बारामास गायी घगरी फटीक घुंडियों माँ आयी २
चैत का मैना दिशा भेट होली तेरी ब्येटुली ब्वे डब डब रोली बैसाख मैना कोथीग कुरालु बिना स्वामी जी का प्राण झुरोलू बारा मैनो की.....
जेठ का मैना कोदू बूती जालू मेरी पुन्गरियों ब्वे कु बूती आलु आषाढ़ मैना कुयडी लोकैली बिना स्वामी जी का कनु के कटीली बारा मैनो की.....
सोंड का मैना कूडो चुयालो जो पाणी भैर, भीतिर भी आलो भादो का मैं संगरांद आली मेरु कु च ब्वे जु मैत बुलाली बारा मैनो की..... अशूज मैना शरद भी आला पितर हमारा टुक टुक जाला कार्तिक मैना बग्वाल आली स्वामी जौंका घौर पकोडा पकाली बारा मैनो की.....
मंगसीर बैख ढाकर जाला मर्च बिकैक गुड ल्वोन ल्योला पूष का मैना झाडु च भारी बिना स्वामी कि कु होली निर्भागी नारी बारा मैनो की.....
माघ मॉस बीच मकरेण आली कन होली भग्यान जु हरद्वार जाली फागुण मैना होरी खिलेली रसीला गीतों सुणी जिकुडा झुरोली बारा मैनो की.....
बारा मैनो की बारामास गायी घगरी फटीक घुंडियों माँ आयी २
सुदर्शन रावत...... -----------------------------
फ़िल्म - घर जवै
तू दिख्यांदी.......................जन जुन्ल्याली ....ई .... सची .........त्यार ....सौ .. सची .........त्यारा... सौ तू दिख्यांदी जन जुनियाली सची त्यारा सौ ऊ जब होदीन छुई रूपा की पहली त्यार नोऊ पहली त्यार नोऊ ओ त्यारा रूप देखि की लोग जली गेनी बौल्या बणी गेनी -२ फूल बिचारा डाली -डालीयुमा जलेण लगीन भौरा त्वे देखि -देखि की नौलेण लगीन नोलेण लगीन तेरी ज्योति देखिकी फूल शर्मे गेनी , भोरा भ्रमे गीनी तू दिखियंदी ...........................
बांदू मा बान्द त्वे मा सभी ल्गोंदीन माया चाँद ऊ मा चाँद बोल तिन क्या जादू काया तिन क्या जादू काया तेरी ज्वानी देखिक हो तेरी ज्वानी देखि की बुड्या खोल्ये गेनी ज्वान बौले गेनी -२ तू दिख्यांदी .............................. ---------------------------------------------
सभी धाणी देहरादून
सभी धाणी देहरादून होणी खाणी देहरादून छोड़ा पहाड़ीयु घोर -गोऊ मारा ताणी देहरादूण सभी ............................
सेरा गोऊ म बंजेणा-२ सेरा गोऊ म बंजेणा बिस्वा लाणी देहरादून छोड़ा पहाड़ीयु घोर -गोऊ मारा ताणी देहरादूण सभी ............................
जल्डा सुखण पहाड़ उ मा -2 जल्डा सुखण पहाड़ उ मा टुकु टहनी देहरादून सभी ..........................
छोड़ा पहाड़ीयु घोर -गोऊ -2 मारा ताणी देहरादूण
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महंगाई से त्रस्त आम जनता का दर्द दर्शाता नेगी जी का गाना, उनकी नयी एल्बम "मायाकु मुन्दार" से
कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी. ना भै हमारा बसै नि इथगा महंगि जिन्दगी..
आटो,चौंल मैंगो हैगे मैंगि दाल तेल, चाहा, चिनी, दारु महंगि कन क्वै बचोलु सरैल कै दिन सूणी लिया बल फांस खैगे जिन्दगि ना भै हमारा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी.. कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी.
आवत जावत महंगि, महंगि झगुलि टोपलि खीस निखानि निसैणि करणा छि गरिबों कि, मैंगै का ये झीस झीस तुमरो बिरान्दि झणान्दि रैगे जिन्दगी ना भै हमारा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी.. कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी.
सैरा बजार बणाग लांगीछ, चीज-वस्तु मां करन्ट जों पर जनता को भारी भरोसो छो, वों भि हुया छन सन्ट यूं नेतों की झूटी बातों में ऐगे जिन्दगी ना भै हमारा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी.. कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी.
जमाखोर, मुनाफाखोर चलोणा मनमर्जी सरकार जनता बिचारि कन कणि सौणि, मैंगै की ई मार सस्ता जमाना को बाटो हैरदि रैगी जिन्दगी ना भै हमारा बसै नि रै या महंगि जिन्दगी.. कन क्वै खेचण अब भारी गरि ह्वै गै जिन्दगी ---------------------------------------
नरेन्द्र नेगी जी की नई एलबम "मायाकु मुन्दार" का एक और गाना...
देवभूमि को नौं बदलि, बिजली भूमि कर्याली जी उत्तराखण्ड कि धरती यून डामुन डाम्यालि जी डामुन डाम्यालि जी, सुरंगुन खैण्यालि जी उत्तराखण्ड कि धरती यून डामुन डाम्यालि जी.....
नदि-नयाल, खाल, धार, हवा-पानि बेच्यालि जी जल जंगल जमीनु का पुश्तैनी हक छिन्यालि जी... उत्तराखण्ड कि धरती यून डामुन डाम्यालि जी.....
व्योपारि ह्वै गैनि नेता सरकार सौकार जी कर्ज कि झीलों मां यूं न जनता डुबा ह्यालि जी उत्तराखण्ड कि धरती यून डामुन डाम्यालि जी.....
गंगा, जमुना गोमति कोसी जीवन देण वालि जी बिजली का तारो मां हमरो जीवन टांगि हालि जी उत्तराखण्ड कि धरती यून डामुन डाम्यालि जी.....
हमारा घर, कुङि-पुंगङि, बणों मां बिजलि घर बणालि जी जनता बेघरबार होलि सरकार रुपया कमालि जी उत्तराखण्ड कि धरती यून डामुन डाम्यालि जी..... ----------------------------------------
This is latest song of Heera Singh Rana's album " Hasani Mukhim"
हीरा सिंह राणा जी हसनी मुखिम से यह गाना.
हसनी मुखिम कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई
कैकी बाटी चा रेछे आखी आयी वाई !!!!
हसनी मुखिम कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई
जोड़..
कैकी लीजी फूली रेछो होठो मा बुराश तू घटिया धिकायी मा हिरज क पास
हा .. हिय की तय मे कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई
हसनी मुखिम कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई .............. जोड़.
हाँ... ह. लुट्पुती पीठा मा यो बटिया धमेली धमेली का संग हुना कैकी हिया धर की
हा.. को छो तेरो दार जैकी रूप लियो बलाई
कैकी रूप लियो बलाई . -२
हसनी मुखिम कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई
जोड़..
पिगली रसली मुखी रस को भानार .. २.
कैकी दियो अनवार मुखी यो यदि रंग्वार त मुखी देखी पूरब उजाई पूरब उजाई सुवा, सुवा पूरब उजाई
हसनी मुखिम कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई
जोड़.
पकिया हिसालू जसी कै है रे उमर .. २ नान बाड लागुछी की कुंछी नि कर उनकी हिय मे कैले छो यो बात दबाई .
किले छू यो बात दबाई.. २.
हसनी मुखिम कैकी लागी रे नराई कैकी लागी रे नराई, कैकी लागी रे नराई -----------------------------------
इस लोरी को मै सुनते हुवे लिख रहा था तो मेरी आँखों में पानी आ गया और आप सुनोगे तो जरुर आपका मन भी उन यादों में खो जायेगा, मा अपने बच्चे को सुला रही है वो उसे बोल रही है हे मेरी आँखों के रतन सोजा उसे अभी घर के बहुत सरे काम करने हैं सोजा उसके साथ की सहेलियों ने सरे काम कर दिए हैं और उसके सरे काम ऐसे ही पड़े हुवे हैं
हे मेरी आंख्युं का रतन बाला स्ये जादी,बाला स्ये जादी दूध भात दयोलू मी ते तैन बाला स्ये जादी-२ हे मेरी आंख्युं का रतन बाला स्ये जादी-४ मेरी औंखुडी पौन्खुड़ी छै तू, मेरी स्याणी छै गाणी मेरी स्याणी छै गाणी मेरी जिकुड़ी उकुड़ी ह्वेल्यु रे स्येजा बोल्युं मानी स्येजा बोल्युं मानी न हो जिधेर ना हो बाबु जन बाला स्ये जादी दूध भात दयोलू मी ते तैन,बाला स्ये जादी तेरी घुन्द्काली तू की मुट्ठ्युं मा मेरा सुखी दिन बुज्याँन मेरा सुखी दिन बुज्याँन तेरी टुरपुरि तों बाली आंख्युं मा मेरा सुप्न्या लुक्याँन मेरा सुप्न्या लुक्याँन मेरी आस सांस तेम ही छन बाला स्ये जादी हे मेरी आंख्युं का रतन, बाला स्ये जादी हे पापी निंद्रा तू कख स्येंयी रैगे आज स्येंयी रैगे आज मेरी भांडी कुण्डी सुचण रै ग्येनी, घर बोण कु काम काज घर बोण कु काम काज कब तै छनटेलु क्या बोन क्या कन, बाला स्ये जादी दूध भात दयोलू मी ते तैन,बाला स्ये जादी घात सार सारी की लै ग्येनी, पंदेरों बटी पंदेनी पंदेरों बटी पंदेनी, बाणु पैटी ग्येनी मेरी धौडया दगडया लखड्वेनी घस्येनी लखड्वेनी घस्येनी क्या करू क्या नि करू जतन बाला स्ये जादी हे मेरी आंख्युं का रतन,बाला स्ये जादी घर बौडू नि व्हायु जू गै छौ झुरै की मेरी जिकुड़ी झुरै की मेरी जिकुड़ी बिसरी जांदू वीं खैरी बिपदा हेरी की तेरी मुखड़ी सम्लौ न वो बात वो दिन बाला स्ये जादी दूध भात दयोलू मी ते तैन,बाला स्ये जादी बाला स्ये जादी-4
(Providved by Mukesh Joshi) ----------------------------------
नेगी जी एक बहुत सुंदर रचना
न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटा उन्दारीयु का बाटाssssss
उन्दरी कु सुख द्वि -चार घड़ी को उकळी को दुःख सदनी को सुख लाटाsssss
सौन्गु (आसन ) चितेंद अर दोडे भी जांद पर उन्दरी को बाटा उन्द जांद मनखी खैरी त आन्द पर उत्याडू (ठोकर) नि लगदु उबू (उपर) उठ्द मनखी उकाल चडी की
न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटा उन्दारीयु का बाटाssssss
ऍच गोंउ मुख मा ज्वा गंगा पवित्र उन्दरियो मा दनकीक कोजाल ह्वे गे
गदनीयू मा मिलगे जो हियूं उन्द बौगीssss जो रेगे हिमालय म वी चमकणुच आsssss
न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटा उन्दारीयु का बाटाssssss
बरखा बातोणियो मा भी उन्द नी रडनी जू तुक पहुची गनी खैरी खै-खै की जोल नी बोटी धरती माँ पर अंग्वाल उन्द बौगी गनी अपणी खुशीयून
न दोड़sss - न दोड़ तै उन्दरी का बाटा उन्दारीयु का बाटाssssss --------------------------------
छबीलो गढ्देश मेरो, रंगीलो कुमाऊं by गोपाल बाबू गोस्वामी
हेलो हाय कर भे तेरो चाल भी कमाल हो.. चाल भी कमाल हो..
बुन्द ना मारदा स्टाइल . बबली तेरो मोबाइल..
कोरस.. होए.....
कोरस.
बबली तेरी मोबाइल वहां भे तेरी स्माइल लस धस के हिटेछे लसका धसका का मारीछे.
गजेन्द्र राणा. :
सानद की ठेकी हो बबली सनाद की ठेकी हो.. ..२
कोरस :
सानद की ठेकी हो बबली सनाद की ठेकी हो.. ..२
कोरस.. होए.....
गजेन्द्र राणा.
बिंद छुयाल नि हो बबली नि जानो की सेकी हो.. . नि जानो की सेकी
गजेन्द्र राणा :
लंब चौड़ अन्दो बिल.. बबली तेरो मोबाइल..
कोरस.. होए.....
बबली तेरी मोबाइल वहां भे तेरी स्माइल लस धस के हिटेछे लसका धसका का मारीछे ---------------------------------
गोपाल बाबु गोस्वामी जी यह गाना.
रंगीली चंगली पुत्यी कसी फूल फटना ज्यूना कसी ओह मेरी किसाना उठ सुवा उजाओ हेगियो चम् चम् का घाम
ले पीले चहा गिलास गुड का कटक उठ मेरी पुनियो की जियूना उठ वे चमा चामा
रंगीली चंगली पुत्यी कसी फूल फटना ज्यूना कसी
उठ भागी नखार ना तेली खेडो खतरा उठ मेरी पुनियो की जियूना उठ वे चमा चामा
रंगीली चंगली पुत्यी कसी फूल फटना ज्यूना कसी ओह मेरी किसाना ------------------------------ स्वर नरेन्द्र सिंह नेगी एवं अनुराधा निराला कैसेट - ख़ुद
तेरी पीडा मा द्वि आंसू मेरा भी तोरी जला पीडा ना लुकेई-२ * ज्यूँ हल्कू हवे जालु तेरु भी द्वि आखर चिठ्ठी मा लेखी देई तेरी पीडा मा द्वि आंसू मेरा भी तोरी जला पीडा ना लुकेई-२ कखी तेरी कलेजी कांडो दुपी हो यख रो मी फूलो मा हिटणो न हो कभी अजाण म न हो न हो *कखी तेरी आँखी आंसूं भरी हो यख रो मी खित -खित हैसूणो न हो कभी अजाण म न हो न हो तेरी पीडा मा द्वि आंसू मेरा भी तोरी जला पीडा ना लुकेई-२ कखी तेरा चुलुन्द आग न जगी हो यख रो मी तेका चढाणो न हो कभी अजाण म न हो न हो कखी तेरी गोली हो तिसल उबाणी यख रो मी छामोटा लगाणों न हो कभी अजाण म न हो न हो दुःख हलकू हवे जालु तेरु भी बाटी लेई दुःख ना लुकेई *तेरी पीडा मा द्वि आंसू मेरा भी तोरी जला पीडा ना लुकेई-२ कखी तेरी स्याणी हो मै थे खोज्याणी,यख छोड़ी दियू आस पलणु न हो कखी अजाण म न हो न हो तेरी पीडा मा द्वि आंसू मेरा भी तोरी जला पीडा ना लुकेई-२ *कखी तेरा हाथ बटी छुटी जाऊ कलम यख रो मी चिठ्ठी यू जग्वाल्णु न हो कखी अजाण म न हो न हो तेरी पीडा मा द्वि आंसू मेरा भी तोरी जला पीडा ना लुकेई-२ ----------------------------------------------------------------
चाय की घूंट पीकर के अब जा रही है दुर्गा और उसका पति द्वाराहाट के स्याल्दे बिखौती के मेले में रास्ते में छेड़ छाड़ करते हुए मस्त होकर पग डंडियों पर दोनों पति और पत्नी और वहा जाकर के दुर्गा खो गयी है भीड़ में और बेचारा पति उसे ढूंढ़ रहा है और पूछ रहा है लोगो से:
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे अले म्यार दगाड छि यो म्याव में, अले जानी कॉ छटिक गे| येल म्यार गाव गाव गाड़ी है, मी कॉ ढूंढ़उ इके इदु खूबसूरत छो यो, क्वे छटके लही जालो| क्वे गेवारिया या द्वार्हटिया तो म्यार खवाड फोड़ है जाल दाज्यू देखो ढाई तुमिल कति देखि?
दाज्यू तैल बजार मैल बजार द्वाराह्ता कोतिक में तैल बजार मैल बजार सार कोतिक में सारी कोतिक ढूंढ़ई हाय दुर्गा तू का मर गे छे पाई गे छे आंखी हाय दुर्गा तू का मर गे छे पाई गे छे आंखी मेरी दुर्गा हरे गे
अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना कोतिका सब घर ल्हे गये कोतिका सब घर ल्हे गये धार लहे गो दिना म्येर आंखी भरीं लेगे दाज्यू किले हसन नै छ
चीने इ भड़ेती, चीने इ भड़ेती मेरु रश्मि रूमेला चीने इ भड़ेती -2 तू याखुल्या डोरू मी दियुलू आडेती मेरु रश्मि रूमेला मी दियुलू आडेती
पाणी को गाजर पाणी को गागर मेरी रश्मि रूमेला पाणी को गागर कन भालू लगादु नोगाऊ बाजार -2 मेरु रश्मि रूमेला नोगाऊ बाजार ------------------------------------
ना बैठ चरखी माँ
ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा -2 बोल्युन्न मा मेरो , बिंदी ना बैठ चरखी मा ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा -2
बनजा को अछानो बिंदी, बनजा को अछानो -2 चरखी वालों मेरो भाई जी तेरु लगदा जिठानू , बिंदी ना बैठ चरखी मा -2 ना बैठ, ना बैठ, बिन्दी ना बैठ चरखी मा -2
दही की परोठी बिंदी, दही की परोठी -2 चरखी टूटी जाली बिंदी, तू छे भारी मोटी बिंदी ना बैठ चरखी ना ना बैठ, ना बैठ, बिंदी ना बैठ चरखी मा बोल्युन्न मां मेरो, बिंदी ना बैठ चरखी मा
दयेबतों कु भोग बिंदी, दयेबतों कु भोग -2 उजिया सरेला तेरो , क्या बोलला लोग , बिंदी ना बैठ चरखी ना-2 क्या बोलला लोग , बिंदी ना बैठ चरखी ना-2
रोटी को फाफु दो बिंदी, रोटी को फाफु दो -2 बिदेशी मुलुक चोरी, कवी नि च अपुनो , बिंदी ना बैठ चरखी मा -2 बोल्युं मान मेरो, बिंदी ना बैठ चरखी मा ना बैठ चरखी मा हे ना बैठ चरखी मा ------------------------------------------
Ghuguti Ghuron Lagi ~ Narendra Singh Negi
घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की
डांडी कांठियों को हूए, गौली गए होलू म्यारा मेता को बोन , मौली गए होलू चाकुला घोलू छोडी , उड़ना हवाला -2 बेठुला मेतुदा कु , पेताना हवाला घुगुती घुरोण लागी हो ...................... घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
डान्दियुन खिलना होला , बुरसी का फूल पथियुं हैसनी होली , फ्योली मोल मोल कुलारी फुल्पाती लेकी , देल्हियुं देल्हियुं जाला -2 दग्द्या भग्यान थडया, चौपाल लागला घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
तिबरी मा बैठ्या हवाला, बाबाजी उदास बतु हेनी होली माजी , लागी होली सास कब म्यारा मैती औजी , देसा भेंटी आला -2 कब म्यारा भाई बहनों की राजी खुशी ल्याला घुगुती घुरोण लागी म्यार मैत की बौडी बौडी आयी गे ऋतू , ऋतू चेत की ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की
ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की ऋतू, ऋतू चैत की, ऋतू, ऋतू चेत की ------------------------------------------
सुन रे दीदा
सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला घौर अवा झट्ट अपुरु सैंती कर सम्हाला
सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला सुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा
पैमासी मा गैनी फांगी पैमासी मा गैनी फांगी रै गनी बस द्वी ढांगी
पैमासी मा गैनी फांगी रै गेनि बस द्वी ढांगी
धुर्पाली को द्वार टुटे धुर्पाली को धुर्पाली को द्वार टुटे मैल्या कूडो पाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला
सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला सुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा
कोदू मैना पोर नि गै-२ खानी पेनी होन कखै
कोदू मैना पोर नि गै खानी पेनी होन कखै
लैंदी गौडी छट छुटे लैंदी गौडी लैंदी गौडी छट छुटे जन हथौ रूमाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला
सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला सुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा
जिठाजी ओर बिग्ल्ये ग्येनी-२ दयूर बांट्टू खोज्दी रैनी
जिठाजी ओर बिग्ल्ये ग्येनी दयूर बांट्टू खोज्दी रैनी
ससुराजी की एखारी बर्डी ससुरजी की ससुराजी की एखारी बर्डी खग्दी चा उमाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला
सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला सुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा
सासुजी की स्वांस चलद-२ पाल बीटी द्वार हलद
सासुजी की स्वांस चलद पाल बीटी द्वार हलद
घौर अवा झट्ट अपुरु सैंती कर सम्हाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला घौर अवा झट्ट अपुरु सैंती कर सम्हाला
सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला सुन रे दीदा तेकू आयूँ चा बौजी को सवाला सुन रे दीदा हे दीदा हे दीदा ----------------------------------------------
ये बहुत ही पुराना गाना है वैसे ये गाना जीत सिंग नेगी जी का है पर इस गाने को दुबारा नेगी जी ने अपना स्वर दिया है और ये गाना उन भाइयों को समर्पित है जो अपना घर गों छोड़ के पैसे कमाने के खातिर यहाँ परदेश आते हैं और फिर उनको अपने घर गाँव की जो याद आती है उसी का जिक्र इस गाने में किया है उन सभी भाइयों के दर्द को नेगी जी ने गीत का रूप दिया है
कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मा
ऊँची निसी डांडी गाड गद्न्या हिसर अर किन्गोड़ ला छुल बुल बन ग्ये होली डाली ग्वेर दगडया तोडला घनी कुनाल्युन का बिच अर बांज की डाली का छैल मा बेटी ब्वारी बैठी होली बैख होला याद मा लटुली उडनी होली ठंडी हवा न डांडा की पर मी मोरनू छौं घाम अर तीस न ये देश मा
खुद मा तेरी सड़कयूँ पर मी रोनू छौं परदेश मा कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मा रोनू छौं परदेश मा
गौडी भैंसी म्वा म्वा करदी रमदी लैंदी जब आली वुंकी गुसैन भांडी लेकी गौडी भैंसी पिजाली श्रौन भादौ का मैना लोग धाणी सब जाला वुनका जनाना स्वामी कु अपड़ा स्यारों रोटी लिजाला मूला की भुज्जी प्याज कु साग दै की कटोरी भोरी की कोदा की अफुकू स्वामी कु ग्यून की रोटी खलल चोरी की पर मी भुखू सी छौं अपड़ा स्वाद बिना ये देश मा
खुद मा तेरी सड़कयूँ पर मी रोनू छौं परदेश मा कु होली ऊँची डांडीयूँ मा बीरा घस्यरी का भेस मा खुद मा तेरी सड़कयूँ पर में रोनू छौं परदेश मा रोनू छौं परदेश मा ---------------------------------------------
नेगी जी के गाये गये गानों में यह संदेशपरक गाना एक विशिष्ट स्थान रखता है... युवा पीढी को कङी मेहनत करने और बुरी आदतों से बचते हुए जीवन में नयी ऊंचाइयां छूने को प्रोत्साहित करते हुए इस गाने को अपनए जीवन का उद्देश्य बना कर उत्तराखण्ड की युवा पीढी अपने जीवन को सार्थक बना सकती है...
उठ गरिबी कु रोणु न रो, खूट त टेक खङ त हो ग्वाया लगैलि सारु खोजैली, कब तलक अब बडुत हो हिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कला देर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..
नि चलि कैकि नि चलिणि रे, मातबरु कि समिणि रे तौंकि छाया माया का निस, हमारि बिज्वाङ नि जमिणी रे हिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कला देर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..
कर्ज पगाळि कि स्याणि नि कर, अपुङ भोळ गरिबि न धर राख विश्वास अफु फरें, कनि नि होंदि गुजर-बसर हिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कला देर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा..
क्येकु फंसे छ दुरमति मा, तमाखु दारु जुव्वा-पति मा सैरा मुलुक कि आस छ त्वे पर, ज्वनि गवों न कत्ता मती मा हिट भुला हाथ खुटा हला, खाण कमाणै छि कला देर पस्यो बगौणे जा, फुल खिलाला हरा-भरा, हरा-भरा ------------------------------------------------------- गायक : नरेन्द्र सिंह नेगी एलबम: बुरांश
चम चमा चम, चम चम , चम चम,चम चमकि , चमकि , चम चमकि घाम काँठीयूं मा हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी बणी गैनी, बणी गैनी हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।
शिब का कैलाशु ग्यायी पैली पैली घाम , शिब का कैलाशु ग्यायी पैली पैली घाम सेवा लगौणु आयी बदरी का धाम , बे बदरी का धाम, बे बदरी का धाम सर.. फैली , फैली , सर.. फैली घाम डाँडों मा भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि बिजी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि बिजी गैनी बिजी गैनी , बिजी गैन हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।
ठण्डु-मठु चड़ी घाम , फूलु कि पाखियुं मा, ठण्डु-मठु चड़ी घाम , फूलु कि पाखियुं मा लगि कुतग्यली तौंकी नाँगि काख्युं मा बे नाँगि काख्युं मा, बे नाँगि काख्युं मा खिच्च हैसिनी, हैसिनी, खिच्च हैसिनी फूल डालियुं मा भौंरा पोथला रंग-मत बणी गैनी, भौंरा पोथला रंग-मत बणी गैनी बणी गैनी , बणी गैनी हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।
डांडि-काँठि बिजाली , पौंछि घाम गौं मा, डांडि-काँठि बिजाली , पौंछि घाम गौं मा सु-निंद पौडि छै, बेटी ब्वारी डेरों मा बे ब्वारी डेरों मा, बे ब्वारी डेरों मा झम्म झौल , झौल , झम्म झौल लगी आखियुं मा मायादार आंखियुं का सुपिन्या उड़ी गैनी, मायादार आंखियुं का सुपिन्या उड़ी गैनी उड़ी गैनी , उड़ी गैनी हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।
छुँयुं मा मिसे गिन पंदेरो मा पंदेनी, छुँयुं मा मिसे गिन पंदेरो मा पंदेनी भाँडी भुरेगिनी तौंकी छुँई नी पुरेनी बे छुँई नी पुरेनी, बे छुँई नी पुरेनी खल्ल ख़ते , ख़ते, खल्ल ख़ते घाम मुखडि़युं मा पितल्याणा मुखड़ी सोना की बणी गैनी, पितल्याणा मुखड़ी सोना की बणी गैनी बणी गैनी , बणी गैन हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।
दोफ़रा मा लगी जब बणु मा घाम तैलू, खोपरा मा लगी जब बणु मा घाम तैल बैठि गिनी घसेनी बिसै की डाला छैल बिसै की डाला छैलु , बिसै की डाला छैलु गर्र निंद , निंद , गर्र निंद पोडी़ छैलु मा आयि पतरोल अर घसेनी लुछे गैनी, आयि पतरोल अर घसेनी लुछे गैनी बणी गैनी , बणी गैनी हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी, हिंवांली काँठी चांदि कि बणी गैनी ।
ब्यकुनी को सिलु घाम पैटण बैठी गे, ब्यकुनी को सिलु घाम पैटण बैठी गे डाडियुं का पेछेडि जोन हैसण बैठी गे बे हैसण बैठी गे, बे हैसण बैठी गे झम्म रात , रात , झम्म रात पोडी़ रौलियुं मा भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी सेयी गैनी, सेयी गैनी भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी, भौन, पंक्षि, डांडि, डालि वोटि सेयी गैनी...... ----------------------------------------------------------------------- नरेन्द्र सिह नेगी जी का यह मधुर गाना ... के बोल देखिये
त्यारा रूप की झौल म
त्यारा रूप की झौल म नौनी सी ज्यों मयारू गौली भिगियाई , जौली भिगियाई गौली भिगियाई , जौली भिगियाई
ना हैस ना हैस, दंतुदी दगेली भंवारू ना बैठु , ऊंठुदी दखेली ना हैस ना हैस, दंतुदी दगेली भंवारू ना बैठु, ऊंठुदी दखेली रंग देखि की त्यारु , हूऊऊओ रंग देखि की त्यारु, बुरांस बेचारु खोले खोले भिग्याई , गुले भिग्याई खोले भिग्याई , गुले भिग्याई
दयेब्तों की तक तवे मा, मंखियुं को ज्यू छ मुखडी का मुखदी , चकोर लग्यु छ दयेब्तों की तक तवे मा, मंखियुं को ज्यू छ मुखडी का मुखदी , चकोर लग्यु छ
Twe देखि हेय राम हूऊऊऊऊओ त्वे देखि हे राम स्यु दोफेरी कु घाम सैल भी सैल भिग्याई, अच्लाए भी ग्याई सैल भिज्ञायिलो, अच्लाए भी ग्याई
जे कै मा क्वी सुधि, माया नी लांद कौजाल ma, छाया नियांदी जे कै मा क्वी सुधि, माया नी लांद कौजाल ma, छाया नियांदी तेरा छाला मन बीच हऊऊ तेरा छाला मन बीच, तस्वीर कैकी ये जानी भि ये जानि भियाली पहचान i भियाली ये जानि भियाली पहचान i भियाली ---------------------------------------
गोपाल बाबु गोस्वामी जी यह प्रसिद्ध गाना .. घुघुती ना बासा अ अ अ ...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा
"घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा
"घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा घुघुती ना बासा अ अ अ ...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा
तेरी घुरु घुरु सुनी मई लागु उदास स्वामी मेरा परदेस ..बर्फीलो लादाखा ..घुघुती ना बासा .. घुघुती ना बासा अ अ अ ...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा
ऋतू आगे भांगी भांगी गरमी चैते की याद मुकू भोत एगे अपुन मैते की ..घुघुती ना बासा .. घुघुती ना बासा अ अ अ ...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा
त्यर ज्यास मैं ले हूनोन उडी बे ज्युनो स्वामी की मुखडी के मैं जी भरी देखुनो ..घुघुती ना बासा .. घुघुती ना बासा अ अ अ ...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा
उडी जाओ घुघुती नही जा लादाखा . हल मेरा बता दिया मेरा स्वामी पास ..घुघुती ना बासा .. घुघुती ना बासा अ अ अ ...घुघुती ना बासा ...आम- की डाई मा ---------------------------------------------------------
गोपाल बाबू गोस्वामी जी का ये कर्ण प्रिय(चहा चूसा चूस) गीत के बोल:
घर घर आज देखो चहा चूसा चूस घर घर आज देखो चहा चूसा चूस
हे नान्तिना बीच, घर घर देखो आज चहा चूसा चूस डोकुआ बिराई ब्ये रे, ठ्येकी भानी मूस
दस पाँच पड़ी च्येल ब्वारी कूनी हम ज़िम्दारी ने कूना च्येली च्येला पगली रई नोकरी पछिला फैशनु व्यसनु माजा आजकल जोरा बिगदन लागी आजकल लौंडा टीवी ऐ गे पहाड़ मे, अब गोनु कोनु माजा टीवी का सामणि बैठी, तानि रूनी आँखा टीवी का सामणि बैठी, तानि रूनी आँखा
रे घर घर आज देखो चहा चूसा चूस रे घर घर आज देखो चहा चूसा चूस ऐ डोकुआ लाछुली ब्ये रे, ठ्येकी भानी मूस ऐ डोकुआ पुसुली ब्ये रे, ठ्येकी भानी मूस
यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस यो ठ्येकी भानी मूस ------------------------------------------
माछी पानी सी जियु तेरु मेरु हो माछी पानी सी जियु तेरु मेरु हो
माछी पानी सी जियु तेरु मेरु हो , बिना तेरो नि जियेंदु , नि रायेदु तवे बिना ,
दियू बाटी सी जिए तेरु मेरु हो , बिना तेरो नि जियेंदु , नि रायेंदु तवे बिना ,
दिन डूबी धारु पोर , ख़ुद खेवायीं ऐ घोर , फिर अन्खियुं बस्ग्यल , फिर उमाली उमाल , फिर उमाली उमाल सुवा हो ............... बिना तेरा नि थम्देदु , नि थामेदु तवे बिना
माछी पानी सी जियु तेरु मेरु हो....................
ऋतू मोल्यार की औन्दी , फूल दालियुं हैसौन्दी , भन्दया बरसुं मा एस्न्सू , मन बोडा मी भी हंसू मन बोदु मी भी हंसू सुवा हो ........... बिना तेरा नि हैसंदु , नि हैसंदु तवे बिना ,
दियू बाटी सी .........................
पांडा सुचानी सिलोती , उबर उन्घनी ज़नदारी , चौक ताप्रानु उर्ख्यालू , बातु हैराणु चुल्खंदु , बातु हैराणु चुल्खंदु सुवा हो ............... बिना तेरा नि गयेंदु , नि गयेंदु तवे बिना
माछी पानी सी जियु तेरु मेरु हो ,
मोअरी चैत्वाली गुम्दोदी , गीत माया का सुनोदी , मन बोदु मी भी गौण , गौण ख़ुद बिस्रौं गौण ख़ुद बिस्रौं सुवा हो ................ बिना तेरा नि गयेंदु , नि गयेंदु तवे बिना
पैदल पहाडी रास्तों पर जाता एक युगल दूर कहीं से आती हुयी बांसुरी की मधुर ध्वनि सुन कर मंत्रमुग्ध हो जाता है.... युवती उस ग्वाले के बारे में जानने को उत्सुक है जो इतनी दिल को छूने वाली बांसुरी की धुन बजा रहा है... युवक को वह बांसुरी बजाने वाला अपनी ही तरह किसी रूपवती के प्यार में डूबा हुआ प्रेमी प्रतीत होता है….
नेगी जी के सुरसागर का एक और अनमोल मोती है यह युगल गीत
फूल हमथें देख-देखि, पोतलो सन कांडा छीन पोतलो सन कांडा छीन भौंरा दीखा दिजा कैंमा, छुई हमरि लगाना छीन को बेशर्म होलू तो सणी तेरि-मेरि माया बिगाणू बिगाणू रेsssss..... होलू क्वी बिचारू मैं जनू…. होलू क्वी
ये डांडी बचानि होली कि, डालि बोटी गाणि होली डालि बोटी गाणि होली रसीला गीतों की भांण, कख बटि आणि होली को घस्यार होली रोल्यू मां, अपना सौंजर्या थे बत्याणि बत्याणि रेsssss…. होली क्वै बिचारी मैं जनी…. होली क्वै
मन मां बसायी मेरी, क्व होली दुन्या से न्यारी क्व होली दुन्या से न्यारी आंख्यूं मां लुक्याई बोल, को होली हिया की प्यारी कू बेमान होलू बोला जी, लगदू जो आखूं से भी स्वाणूं स्वाणूं रेsssss….. होलू क्वी बिचारू मैं जनू…. होलू क्वी