उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Wednesday, September 29, 2010

"नाती की पाती"

दादा चश्मा लगैक,
पढ़ण लग्युं छ,
"नाती की पाती",
क्या होलु लिख्युं?

नाती लिखणु छ,
दादा जी क्या बतौण,
तुमारी याद मैकु,
अब भौत सतौणि छ,
बचपन मा तुम दगड़ी,
जू दिन बितैन,
अहा! उंकी याद अब,
मन मा औणि छ.

आज भि मैं याद छ,
जै दिन मैन ऊछाद करि थौ,
तब आपन मैकु,
पुळैक खूब समझाई,
पर मेरा बाळा मन मा,
उबरी समझ नि आई.

अब मैं बिंगण लग्युं छौं,
आपसी आज दूर हवैग्यौं,
पुराणी यादु मा ख्वैग्यौं,
अब मैं जब घौर औलु,
चिठ्ठी मा जरूर लिख्यन,
क्या ल्ह्यौण तुमारा खातिर,
अब ख़त्म कन्नु छौं पाती,
तुमारा मन कू प्यारू,
मैं तुमारु नाती.

रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
२१.८.२००७ को रचित....दिल्ली प्रवास से

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments