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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 15, 2019

ज़िन्दगी  को

ज़िन्दगी  को

उन्मुक्त हो जाने दो

प्रेम-गीत 

गाने दो 

बेरोकटोक 

हँस ने दो 

खिल खिलाने  दो

बिखरने दो अलमस्त 

समेटो मत

बह जाने दो 

हवाओं में 

उड़ती है 

उड़ जाने दो

लहर-लहर

तैरती है 

तैर जाने  दो

फूल  सजे हैं 

रंग  बिखरे  हैं 

पग सधे हैं

नूपुर  बँधे हैं

रोम-रोम  सिहरन है 

रग-रग थिरकन है 

मृदंग बज जाने  दो

आने दो 

जिन्दगी को

लय में  आने दो. ....


@ कमला विद्यार्थी 


2 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. सुंदर भाव।
    6ठी पंक्ति में 'हँसने' एक शब्द नहीं होना चाहिए?

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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments