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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, November 6, 2017

ढांगू क्षेत्र में गढ़ीयां

Garhis in Garhwal (history aspects)
 ढांगू क्षेत्र  में  गढ़ीयां  
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आकलन – भीष्म कुकरेती
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       गोरखा  और ब्रिटिश शासन के आरम्भिक  में ढांगू क्षेत्र में  व्यापक इलाका आता  था. स्वतंत्रता पश्चात भी द्वारीखाल ब्लौक को ढांगू ब्लौक कहा  जता था . डबरालस्यूं ढांगू पट्टी में आता  था इसलिए इस क्षेत्र  को आज  भी ढांगू उदयपुर क्षेत्र  ही कहा जाता है .
   मै इस आलेख में केवल  ढांगू पट्टियों की ही चर्चा करूंगा .
   अधिकतर आम लोग समझते हैं कि पंवार वंशी राजा से पहले गढ़वाल में केवल 52 गढ़ थे . डा डबराल के अनुसार 100 से अधिक गढ़ रहे होंगे .
   ढांगू में भी कुछ स्थलों के नाम गढ़ से हैं जो इस बात  के द्योतक हैं  कि ढांगू  में भी छोटी छोटी ठकुराइयां रही  होंगी .
                              ढांगगढ़
     ढांगू गढ़ या ढांगगढ़ का गढवाल इतिहास में एक अभिनव स्थान है और ढांगू गढ़ की  डा डबराल सरीखे इतिहासकारों से  भी अवहेलना हुयी . जब जब गढवाल पर हरिद्वार से आक्रमण हुआ होगा तो ढांगू के रजा या जमींदार ने ही आक्रमण रोका होगा . ढांगू गढ़ गंगा किनारे झैड़ गाँव में महादेव चट्टी के पास है . टिहरी गढ़वाल के सिंगटाली के ठीक सामने एक दुर्गम पहाड़ी को ढांगगढ़ कहते है .
    झैड़ व आसपास ढांगू गढ़ के बारे में कई लोककथाएँ जीवित हैं . कहा जाता है इस दुर्गम पहाड़ी पर राजा के जर जेवरात हैं .
        डा डबराल  बताते है कि तैमुर लंग ने सोने की चिड़िया गढवाल को लूटने हरिद्वार से  चंडीघाट पार किया और  गढवाल में प्रवेश किया  तो शिवपुरी या फूलचट्टी  के पास गंगा किनारे , गढ़ राजा ने तैमुर सेना पर पत्थरों की वर्षा की और तैमूर लंग को भारत छोड़ भागना पड़ा था . वह राजा कोई नही , वह राजा श्रीनगर का राजा नही अपितु  ढांगू गढ़ का ही राजा या गढ़पति रहा होगा .
      फिर नाककटी रानी के समय शाहजहाँ भी गढवाल पर कब्जा करना चाहता था . उसका सेनापति सेना लेकर चंडघाट के रास्ते शिवपुरी आया और वहां भी उसे तीरों व पत्थरों  का सामना करना पड़ा और सेनापति को हिंवळ नदी होते हुए नजीबाबाद भागना पड़ा . तो वह  पत्थर बरसवाने वाला जमींदार कोई नही बल्कि ढांगू गढ़ का जमींदार  ही रहा होगा ..
       मैंने एक लेख में सिद्ध किया कि मोहमद बिन तुगलक भी ढांगू गढ़ तक ही पंहुचा होगा http://bedupako.com/blog/2014/03/15/did-muhammad-bin-tughluq-army-capture-dhang-garh-of-dhangu-in-1330/#axzz4xEwGfPsZ
                        नौगढ़
  नौ गढ़ बड़ेथ (मल्ला  ढांगू ) क्षेत्र में एक पहाड़ी में  प्राचीन जसपुर (आज ग्वील ) के पास है . आज  कहीं भी नौ गढ़ों का पता नहीं चलता क्योंकि 1000 सालों में भौगोलिक  परिवर्तन तो हुए ही होंगे . यह गढ़ बिछ्ला  ढांगू व मल्ला ढांगू के मध्य है (पहले बिछ्ला  ढांगू था ही नही ) और इसके ठीक नीचे रिंगाळ पानी का स्रोत्र  भी है . जो इस बात  का द्योतक है कि कभी ना कभी यहाँ ठकुराई  थी . नौगढ़ नाम  से ऐसा  लगता है  कि 9 किले और नौ गढ़ से यह अर्थ भी निकलता है नव याने नया गढ़ . क्या पहले सारे ढांगू क्षेत्र का राजा ढांगूगढ़ का राजा था / और फिर किसी राजा  ने बड़ेथ क्षेत्र में एक नई गड़ी का निर्माण किया ? या ढांगू  गढ़पती ने अपनी गढ़ी बदले और नई गढ़ी को राजधानी बनाया ? इसे गुत्थी को तो इतिहासकार  ही हल कर सकते हैं


                     गढ़कोट या गटकोट
   गटकोट या गढ़कोट मल्ला ढांगू में मंडळ गधेरे के ऊपर है और तीन तरफ से गदन से घिरा क्षेत्र है .
 यहाँ अवश्य ही कोई किला या गढ़ी रही होगी अन्यथा इसका नाम गटकोट नही पड़ता , गटकोट ढांगू , डबराल स्यूं , उदयपुर , अजमेर क्षेत्र के मध्य है तो राजनैतिक रणनीति के हिसाब से अवश्य ही यहाँ कोई गढ़पति रहा होगा

                       सिरकोट
 सिरकोट तल्ला ढांगू का एक गाँव है जो शिवपुरी से नजदीक है . सिर याने श्री . यहाँ  कब किला बना और उसका किल्लेदार या जमींदार कौन था इसकी तह में जाने की आवश्यकता है .

                              गड़बड़ेथ
 उदयपुर पट्टी में गड़बडेथ हिंवल किनारे गटकोट मित्रग्राम क्षेत्र  (कहते हैं मित्रग्राम पहले गटकोट का ही हिस्सा था ) के ठीक सामने याने हिंवळ पार  का एक राजपूतों का गाँव है . क्या यहाँ कोई गड़ी थी ? गटकोट व गड़बड़ेथ का संबंध जानेंगे   तो कुछ इतिहास मिलेगा .
  @आलेख इतिहास लेख नही है

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