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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, December 2, 2009

परसी ओंकी चिटटी आइ

परसी ओंकी चिटटी आइ, कि रुडियों माँ मिन घौर औन.
मि त हकोदक छुं, कि ऊकु मिन क्या जू खिलोन.
सावन औंदा भादो औंदा, काखड़ी मुंगरी खे कि जांदा.
सायद च कि नौकरी छूटी, घौर नि औंदा त कख दी जांदा.

ब्यो से पैली खबर छे , कि नौनु बडू होसियार च.
थोड़ा भौत बिग्दियों छो, पर अब त कमोदर च
एनु लेगी द्यो जब ह्वेगी ब्यो, खीसा उंका झाडे गेनि.
रूप्या पेंसा जुलम बात, खीसा भी मिन फत्या पैनी.

लोक्हू भाग्यनु चा, चीनी,चोणी, मिठे लती कपरी.
चूडी, झुमकी, धोति साड़ी जरा दगड़ा माँ नरयूले कत्री.
छट, छटकि जिकुड़ी मेरी, जनि ओंकू झोला खोळी.
अपड़ी लती कपरी, धेरी, अर् मीकू थें मुन्डारे गोळी.

इना देसी चूले त नौंना अपड़ा हौल सिखा.
झूठ मूठे चलक फलक, बेटी वालू थें ना दिखा.
घौर बोण, साळी, खरक, पुन्गीरियों माँ हौल त लगली.
कभी इन आस त रौली कि आज रोटी बणी मिलली.


धन्यवाद
विक्रम सिंह रावत

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