उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, November 2, 2009

जख्या तखी

बुनू , बल हम बडा आदिम ह्वैग्या..... तमीज से , सोच से, अर ध्यली पैसो से भी ! , जब बीटी हम यख, नार्थ अमेरिका ( कनाडा ह्वा या अमेरिका ) अया ! ... सब उत का घसा .. डाल लगली युकी झ्लुडी....., .
बडा आदिम.. ! //////// जसी बल पडया लिखा छी अर सात समन्दर पार भी ऐगीनी पर टाग़ खिचैई ,चुगली जानी आदत अभी तक भी नि गे अर जैल भी कने ..! छा त हम पहाडी ना ?
बड़ी मुश्किल से , नेगी दाद्ल , कोशिश करी की याखा का तमाम पहाडियु थै कठा कराइ जों ! उन सब्यु थै
चिठ्ठी भ्यजिनी ! फोन करी ! एक मायन्म खुदी, ओर्गानैजर बणी ! कलर्क व चपडसी भी ! सिर्फ एका बाना की हम लोग एक जगह कठा हुला अर , .. ह्वैइ भी छन ! हे भै , ... बांज पोड्ली युकी जागा ... शुरुवात अच्छी भली ह्वै पर बीचम तबरी , कैल च्युली माने की कोशिश कई दे .. आदत जू ठैरी !
" मेरी य सम्झ्म यनि आणी च की, एकी जरूरत क्या च ? अर किलै चैद हम थै ? अछा .. , चला माना .. ..., एक आर्गानैजेशन बणीगे ! आप त जण्दे छन की, यख , भी, हम गडवाल अर कुमाऊ सा छा ! ई पंचैत से मयारू सवाल यु च की ... एकु अध्यक्ष कु होलू ????? अर कह बिटी होलू ?
द जा .... कख एकता की बात छै हूणी ! यखत यूँ धडा कराणी की कोशिश शुरू कैदे ! कुछ समझदार लुखुल समझाई बुझाई की बात आई गई कै दी , पर , दिमाग्म त एक पिच त डाली दे वेन गडवाल अर कुमाऊ कु ?
संस्था बणी ! पैली कार्य-क्रम माँ द्वी ऐनी ( गड्वाली/कुमायुनी - अमेरिका अर कनाडा वाल भी ) .. हे भै .. सुआर का बचों का पेट माँ इनु डो की पूछा ना ? हैका कार्य -कर्म माँ पैलत उन अमरीकी -कनडियनि कराइ ! द्वी युका बीचमा डालर थै लेकी खीच ताणी ह्वै .. की तुमारु रुपया की कीमत कम च ये वास्ता हम आप क दगड नि ई सकदा ! द ... करा बल बात ... स्यु साब हवाय अलग अलग ... मित बुनू छौ की केकु आई होला साल यख ?
" ठीक ही बोली कैल... पहाडी भी किसके .. डाल /भात खा के खिसके .." चला हमर दगडी याने कनाडा वालो
दगड त करी करी , पर तख क्या ह्वै ... द्वी धडा ! एक न्यू जर्सी अर हैन्कू वाशिंगटन .. पाह्ड्यु का फड़का !
युतक मै चैन नि आयु .. सिकागो म भी द्वी .. हे भै .. यख उत्का पहाडी नीन जतका संथा बणी गीनी !
जब हमल यु काम , अर, इना काम कनी ही छा त वाखी रैलिदा ! के फैदा ह्वै हमरु यथा पैड़ी लेखी..
रैगया ना कूप मंडुप का मंडूप्मा ! जख्या तखी ......

पराशर गौड़
कनाडा अक्तूबर १८ ०९ सुबह १०.०७ पर

2 comments:

  1. Alekh kafi der se padha,dukh hi hua, na padhta to achcha hi hota. Hum log sat samundra par jakar bhi nanhi sudhar paye to phir dosh kiska?
    Garhwal Kumaon ke bhitar to bizog para hi hai par Delhi, Bombay me bhi haal achche nanhi hain. Aur ab apne Kanada ke bare me likha to man ko thes lagi. Parashar bhai hum kanha sudhrenge aur kab?
    Shesh phir.
    Parashar bhai apne bare me bhi kuch likho. Apki creativity aaj bhi jeevit hai, Jagwal wali?
    Shubhkamnaon dagad. Apkaa- Shoorvir Rawat

    ReplyDelete
  2. garhwali bhashak ras parashar jik lekhni si aundu. Bhot anand aayee padik.

    ReplyDelete

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments