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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 15, 2009

बोडान मारी फाळ

रुमक की बात छ, बौडा पिलौणु थौ भैन्सि,
कखिन आई बाग, ऊ बौडा का मुख फर हैन्सि,
फिर क्या थौ बौडा, झट्ट भीतर भागी,
ल्ह्याई बन्दूक अपणी, बाग फर गोळी दागी,
गोळी बाग फर त नि लगि,
पर चोट सुणिक बौडी,
भ्वीं मा लमसठ व्हैगि,
छक्की छकिक अफुमा रवैगि,
वीन समझी बौडा आज बागन ख्यलि,
नाक फर फूली पैनौ कू भाड़ु करयाली,
बौडा झट्ट बोडी का पास गै,
न रो हे चुचि, मैं ठीक ठाक छौं,
नि खयौं मैं बागन,
बचिग्यौं तेरा सौं,
अब तू होश मा औ,
ह्वै सकु त, स्वाळा पकोड़ा बणौ.


(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
11.6.2009

1 comment:

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