हे दिदौं,
छोया ढुंग्यौं कू पाणी हर्चिगी,
भै बन्ध तिस्वाळा छन,
भटकणा छन, तरसणा छन,
कख मिललु पाणी?
पेन्दा था छकि छक्किक,
गाड, गदना, धारा, मगरा कू पाणी,
किलै हर्चि होलु,
पहाड़ कू ठण्डु पाणी,
यू कैन नि जाणि,
आज ह्वैगिन गाणी.
छोया ढुंग्यौं कू पाणी पीजा,
आज असत्य ह्वैगि,
क्या प्रकृति गुस्सा ह्वैगि?
या बद्रीविशाल जी रूठिगी.
देखणा छन द्योरा जथैं,
कब आलु काळु बस्गाळ,
होलि घर्र घर्र बरखा,
फुटला छोया पहाड़ मा,
फिर बगलु ठण्डु पाणी,
गाड, गदना, धारा, मगरौं फर.
पहाड़ प्रवास मा,
देखि मैन,
"पहाड़ तिस्वाळु छ",
कनुकै बुझलि तीस,
रीता भाण्डौं की,
तिस्वाळा मन्ख्यौं की.
स्वरचित: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं यंग उत्तराखंड पर प्रकाशित)
दिनांक: ७.६.२०१०
हे दिदौं,
ReplyDeleteछोया ढुंग्यौं कू पाणी हर्चिगी,
भै बन्ध तिस्वाळा छन,
भटकणा छन, तरसणा छन,
कख मिललु पाणी?
Thanks dada