सब्यौं की लगिं रन्दि,
अपणा पाड़ मा,
कुजाणि के के फर,
जनु दादा दादी की,
नाती नतणौ फर,
ब्वे बाब की,
बाल बच्चौं फर,
अंत समय मा लंगि संगि,
अर अपणौ फर.
यनि भि होन्दि छ "टक्क",
उंकी, जू छन परदेश,
जन, लैन्दा फर,
आरू, तिम्ला, बेडु फर,
पक्याँ काफळ, हिंसर, किनगोड़,
अर काखड़ी, मुंगरी फर,
पहाड़ का ठण्डा पाणी,
बण मा बगदा ठण्डा बथौं फर,
रौंत्याळी डांडी काँठ्यौं फर,
पहाड़ की हरेक,
नखरी-भलि चीज फर,
अपणा प्यारा गौं अर,
भै बन्धु फर.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, उत्तराखंड गौरव पर प्रकाशित)
दिनांक: १७.६.२०१०, दिल्ली प्रवास से....
(ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड)
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