प्रकृति कू सृंगार,
प्रकृति कू प्यार,
गुस्सा ऐगि त,
प्रकृति कू प्रहार,
प्यारी डांडी, काँठी,
गैरी-गैरी सुन्दर घाटी.
घणा बणु का बीच बग्दि,
गदन्यौं की दूध जनि धार,
डाळ्यौं मा बैठ्याँ,
पोथ्लौं कू चुंच्याट,
देवदार, कुळैं का बणु मा,
बग्दा बथौं कू सुंस्याट.
फल फूलू की बयार,
बणु मा हैंस्दा बुरांश,
डाळ्यौं मा बास्दि घुघती,
घोल्ड, काखड़ अर हिल्वांस.
चौखम्बा, केदारकाँठा, त्रिशूली,
बन्दरपूंछ, नंदाघूंटी, पंचाचूली,
चारधाम, देवभूमि, देवतौं कू देश,
जख रन्दन ब्रह्मा, विष्णु, महेश.
हमारा उत्तराखंड "पहाड़ मा",
मिल्दु छ प्रकृति कू प्यार,
जन्मभूमि प्यारी हमारी,
करा वींकू मन सी सृंगार .
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिल्ली प्रवास से..(ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल)
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड, मेरा पहाड़, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
दिनांक: २१.६.२०१०
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments