छबीलो गढ़वाल मेरु, रंगीलो कुमाँऊ
मेरु पहाड़ छ बडु ही रौंत्यालु
बाँझ बुरांस और देवदार की डाली
ब्यो बाराती मा स्यालियों की गाली
मेरा पहाड़ की निराली छ रीत
घस्यारियौं का सुणेंदा मीठा गीत
फागुण का मैना होलियारों की टोली
मेरा पहाड़ की रसीली छ बोली
घस्यारियों का मुंड मति घास की गडोली
कैकी खुद मा लगणी होली कैतैं बडुली
बेडा - पाखौं फुलीं होली फ्युंली
चैत क मैना औजीयौं कि बोली
डोल - दमौ पर लगदु मंडाण
मेरा मुल्क की निराली पछांण
कोदा - झंगोरा की भली रसांण
रंदा छ जू यख कना छ भाग्यान
बणुं मा गोरु की घंडुली घमणादी
गोरु छोरु कि बाँसुरी मन लूचि जांदी
काफ़ल हिसर मन तरसाँदी
कै तैं परदेशु मा पहाड़ की याद सतांदी
पाणी का पन्यरा मा पन्यारियों का खिखोला
चला भै- बंदु पहाड़ घुमी औला
कौथगेरी दीदी भुल्यो दगडी जौला मेला
पहाड़ सी पलायन अब नि होण दयुला
स्वरचित "गढ़वाल सम्राट" विपिन पंवार , दिनांक: २५/०५/२०१० , नई दिल्ली
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