(झलक:कवि की कलम सी)
आयोजन स्थल परिसर मा,
बज्दि मशकबीन अर ढोल की थाप,
जरूर ह्वै होलु पहाड़ी मन गद-गद,
अर थिरकी होला मन ही मन आप.
लगण लग्युं थौ आज अपणु पहाड़,
दूर बिटि "दर्द भरी दिल्ली" मा ऐगि,
पहाड़ की समूण दगड़ा मा अपणा,
हमारा खातिर गेड़ बान्धिक ल्हेगि.
निर्णायक मण्डल का सदस्यन,
ज्यूरी कू मतलब,
गौळा फर बाध्युं जूड़ू बताई,
कखि क्वी कमी रैगि होलि,
डगर भौत कठिन थै,
आयोजन कक्ष मा बैठ्याँ दर्शकु तैं,
मंच फर यनु ऐना भी दिखाई.
दिल्ली बिटि अयाँ एक उत्तराखंडीन,
प्रवेश द्वार फर खड़ु ह्वैक गुहार लगाई,
पास का बिना प्रवेश वर्जित थौ,
क्या बोलौं मैकु वै फर तरस आई.
यंग उत्तराखण्ड का समर्पित सदस्य,
काम मा जुट्याँ जनु बेटी कू हो ब्यो,
मिलि होलु सकून जब निब्टि होलु,
खुश ह्वै होलु सब्ब्यौं कू समर्पित मन
थकित बेटी का बुबा की तरौं खुश,
जनु प्यारी बेटी का डोला अड़ेथिक.
अनुभव काम करिक आज अपतैं ह्वैगि,
सोच्यन अर संकल्प कर्यन आप अफुमा,
समाज की एक गरीब बेटी का ब्यो कू,
पहाड़ कू श्रींगार अर समाज तैं सहायता,
"यंग उत्तराखण्ड" कु छ संकल्प अर आधार.
कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित १२.५.२०१०)
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