हमारा मुल्क प्यारा पहाड़,
जख छ गंगा यमुना कू मैत,
जख बगदा छन गाड गदना,
पेन्दा था मनखि ठण्डु पाणी,
लोठ्या, गिलास, छमोट भरिक,
गदना मा बगदा धारा बिटि,
मूळ अर सिळ्वाणि फर.
पर ऐंसु यनु निछ,
जू पहाड़ प्रेम वश,
अपणा प्यारा गौं गैन,
गौं का सुख्याँ धारा देखिक,
मन ही मन भौत पछतैन,
ऊ पुराणा दिन भि याद ऐन,
कख हर्चि होलु पाणी?
देखि उन द्योरा जथैं,
दूर कखि ऊड़दु-ऊड़दु
चोळी तीसन त्रस्त ह्वैक,
जोर-जोर सी बासणी,
"सरग दिदा पाणि-पाणि".
क्या ह्वै होलु यनु?
हर्चिगी पहाड़ कू ठण्डु पाणी,
द्यो देवता रूठिग्यन,
या लोग ऊँ भूलिग्यन,
जू भि ह्वै, भलु निछ,
वरूण देवता बरखौ,
प्यारा पहाड़ मा पाणी,
ह्वैगि आज अनर्थ,
लोग बोन्ना छन,
"सरग दिदा पाणि-पाणि".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित.मेरा पहाड़, यंग उत्तराखंड, हिमालय गौरव उत्तराखंड, पहाड़ी फोरम पर)
दिनांक:२४.६.२०१०, दिल्ली प्रवास से.....(ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी.चन्द्रबदनी, टिहरी गढ़वाल)
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments