खड़ा छौं हम सीना ताणिक,
चूमणा छौं आकाश,
सबक लेवा तुम भि हमसि,
कब्बि न होवा निराश.
देख्युं हम बतै नि सकदा,
वीर भडु़ की बात,
राज करि यख गढ़ राजौंन,
सदा नि रै क्वी साथ.
कवि: "जिज्ञासु" कन्नु छ,
अपणा मन मा अहसास,
पंछी बणिक फुर्र उड़ि जौं,
प्यारा पहाड़ का पास.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित-"हमारा पहाड़ कू रैबार" ११.५.२०१०)
(मेरा पहाड़ अर यंग उत्तराखण्ड फर प्रकाशित)
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments