बोल्दा छन,
झील जनि आँखी,
पर आंख्यौं सी निकल्दा छन,
दुःख का आँसू,
जौन त्यागि घर बार अपणु,
तरबर च्वीन ऊँका आँसू,
साक्यौं पुराणी जैजाद छोड़ी,
ह्वे होलु पराण भारी क्वांसू.
पुराणी टीरी अर,
डूब्यां गौं का लोखु का,
जाँदी बग्त टूटि होला मन,
हेरि होलु घर बार अपणु,
भ्वीं मा च्वीं होला,
दण-मण दुःख का आँसू,
जख आज बणि छ,
बड़ी पाणी की झील,
फैलीं छ कै मील,
जू विस्थापित ह्वेन,
उंकी नजर मा आज,
वछ ऊँका अर भागीरथी का,
"आंसू की झील".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, यंग उत्तराखंड और मेरा पहाड़, हिमालय गौरव उत्तराखंड, पहाड़ी फोरम पर प्रकाशित)
दिनांक: १६.६.२०१०
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