लूथी दा बोन्नु छ,
बिराळु बण्युं छौं,
बोझ बोकणु छौं,
कपाळ पकड़ी सोचणु छौं,
लटुला अपणा नोचणु छौं,
तितरा की तरौं,
ज्यू जिबाळ मा फंसिक,
जिन्दु रौं या मरौं?
दिन रात,
घंघतोळ मा पड़्युं छौं,
मनखी ह्वैक पिचास बण्युं छौं,
यीं दुनिया का जाळ मा,
देवभूमि गढ़वाल मा,
जै दिन जुड़ी थै जन्मपत्री,
पंडित जी का हाथन,
फोड़ी थै गुड़ की भेल्ली,
बल ह्वैगी मांगण.
भग्यानी यनि छ,
दिन रात करदी झगड़ा,
धैं बिल्क करदी मेरा दगड़ा,
"वे दिन बिटि",
जबरी बिटि बणि,
ज्वानि मा जीवन साथी.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित, हिमालय गौरव उत्तराखंड, मेरा पहाड़, यंग उत्तराखंड पर प्रकाशित १५.६.२०१०)
दिल्ली प्रवास से..(ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी, टेहरी गढ़वाल)
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments