कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
जब आती बाहर वो नहाकर
मन ही मन कुछ कहती वो
बिखरे बालों को सुलझाकर
झट-झट झटकार कर वो
बूंदे गिरती बालों से पल-पल
दिखती वो बूंदे यूँ मुझको
ज्यों झर-झर झरता झरने का जल
तिरछी नजर घुमाती वो
होंठों पर हल्की मुस्कान लिए हुए
कभी एकटक होकर निहारती वो
बिना पलकों को झपकाए हुए
'हंसमुख चेहरा' दिखता उसका
वो सूरत दिखती भली-भली
कभी दिखती खिली पुष्प सी
कभी दिखती अधखिली कली
महकता पुष्प सा यौवन उसका
नाजुक कली सी उसकी सुकोमल गात
वो बसंत की झकझोर डाली
जिसके दिखते हरे-भरे पात
जब आती बाहर वो नहाकर
मन ही मन कुछ कहती वो
बिखरे बालों को सुलझाकर
झट-झट झटकार कर वो
बूंदे गिरती बालों से पल-पल
दिखती वो बूंदे यूँ मुझको
ज्यों झर-झर झरता झरने का जल
तिरछी नजर घुमाती वो
होंठों पर हल्की मुस्कान लिए हुए
कभी एकटक होकर निहारती वो
बिना पलकों को झपकाए हुए
'हंसमुख चेहरा' दिखता उसका
वो सूरत दिखती भली-भली
कभी दिखती खिली पुष्प सी
कभी दिखती अधखिली कली
महकता पुष्प सा यौवन उसका
नाजुक कली सी उसकी सुकोमल गात
वो बसंत की झकझोर डाली
जिसके दिखते हरे-भरे पात
very beautiful poem!!!
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