दौड़ि दौड़िक मन्खि देखा,
मारदा छन फाळी,
भाग फर देखा तौंका,
सिर्फ द्वी नाळी.
मन मा दंदोळ भारी,
बण्यां जाळी जंजाळी,
पैंसा मा पराण पड़्युं,
हरचणी मनख्याळि.
भिन्डी खाणौं कु मान्ना छन,
धारु धारु फाळी,
यनु कतै नि सोचदा छन,
करम मा द्वी नाळी.
भटका भटकी मायाजाळ,
देखा कनि नादानी,
यीं दुनियाँ मा सदा नि रण,
कैकि बात नि मानी.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
6.7.2009
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