आग उगलती गर्मी से,
उत्तराखण्ड में पड़ गया सूखा,
मेघ इस बस्गाल में,
क्योँ हो गया है रूखा.
सूखते पहाड़ी प्रदेश की,
उम्मीदें भी टूटी,
न जाने प्रकृति पहाड़ से,
इस बार क्योँ रूठी?
जलते जंगल कटते पेड़,
कर दिया खेल निराला,
बिजली प्रदेश बनाने का सपना,
हो गया है काला.
जनता ने जिन हाथों को,
सौंपा जनमत अपना,
कैसा उत्पात मचा रहे,
पूरा हुआ न सपना.
त्रस्त जनता तो झेलेगी,
बिन बरखा सूखे की मार,
मौज मनाओ लूटो खजाना,
कौन है उनका तारन हार.
कहते हैं दुविधा में,
माया मिली न राम,
उत्तराखण्ड की जनता,
जाए कौन से धाम.
दर्द बहुत हैं देवभूमि के,
कौन पोंछेगा आंसू,
दर्द है दिल में जन्मभूमि का,
दुखी है कवि "जिज्ञासू"
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
14.7.2009
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