देवभूमि के दर्द बहुत हैं,
किसी गाँव में जाकर देखो,
कैसा सन्नाटा पसरा है,
तुम बिन,
प्यारे उतराखन्ड्यौं,
अब तो तुम, गाँव भी नहीं जाते,
शहर लगते तुमको प्यारे,
जो उत्तराखंड से प्यार करेगा
पूरी दुनिया मैं उसको सम्मान मिलेगा,
अकेला नहीं कहता है "धोनी",
शैल पुत्रों तुमने कर दी अनहोनी,
अन्न वहां का हमने खाया,
विमुख क्योँ हए,
ये हमें समझ नहीं आया,
लौटकर आयेंगे तेरी गोद में,
जब आये थे किया था वादा,
शहर भाए इतने हमको,
प्यारे लगते पहाड़ से ज्यादा,
उस पहाड़ के पुत्र हैं हम,
सीख लेकर कदम बढाया,
सपने भी साकार हए,
जो चाहे था, सब कुछ पाया,
दूरी क्योँ जन्मभूमि से,
ये अब तक समझ न आया,
हस्ती जो बन गए,
देवभूमि का सहारा है,
स्वीकार अगर न भी करे,
उसकी आँखों का तारा है,
उस माँ का सम्मान करना,
देखो कर्तब्य हमारा है,
मत भूलो, रखो रिश्ता,
उत्तराखंड हमारा है.
(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि,लेखक की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिग्यांसू"
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
10.7.2009
bahut achha laga aap ka kavi hirday mahsoos kr ..aap wakai achhe kavi hai..
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