कोई देखले यूँ ही
मुस्कराके तो अच्छा लगता है,
कोई पूछले हाल रुक्के तुम्हारा तो अच्छा लगता है.
बस की भीड़-भाड़ में जब कोई किसी बहन बेटी को सताता है,
हिचकोलों का बहाना कर उन पर चढा आता है, और
बस मैं बैठे सभी अंधों पर मुस्कराता है,
तभी कोई बंकुरा निकल के आता हैं,
दो मार उसे नीचे की राह बताता है,
तो, अच्छा लगता है.
लाठी लिए सड़क पार करने को
कोई बूढा जब-जब आगे जा तब-तब पीछे आता है,
इधर-उधर से आंधी बन दौड़ रहे यम वाहनों को रोकने को विफल हाथ उठाता है,
तभी वो निकल के आती है,
बीच सड़क खड़ी हो, स्वर्नाद कर,
गाडियां रूकवाती है,
बैंत पकड़ बाबा की सड़क पार करा चुपके से,
निकल जाती है
तो, अच्चा लगता है.
तपती दोपहरी में,
पटरी पर गिरे बूढे को तमाशदीनों के बीच से उठा,
और मुंह से निकलती झाग को मिटा,
उसे अस्पतान पहुंचता है,
तो अच्चा लगता है.
सचमुच कहाँ है वह व्यवहार , इन्सान का इंसानियत से प्यार,
वो दोस्ती, वो त्याग, वो आत्मीयता,
अपने देश के लिए वो सोच
बस जब कहीं तेरे शहर मैं नजर आता है,
तो, सचमुच अच्चा लगता है,
है न अच्चा लगता है.
मोहन सिंह भैंसोरा बिस्ट
सेक्टर-९/८८६ राम कृष्णा पुरम,
न्यू दिल्ली-22
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments